इस टिप्पणी पर उस वक्त दुनियावालों को विश्वास नहीं हुआ था । अलबत्ता, चेतावनी के बावजूद जल का दोहन तथा पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की मानव समुदाय द्वारा करतूतें जारी रहीं । किंतु जब गत वर्ष १४ मई को भोपाल में पेयजल के लिए एक ही परिवार के तीन लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई तो यह आशंका और भी बलवती हो गई । पिछले दिनों भोपाल में इस तरह की दो-तीन घटनाएं घटित हो चुकी हैं । पानी की कि्वत की वजह से पानी पर आधारित उज्जैन के लगभग आधे उद्योग-धंधे चौपट हो गए । भोपाल ही क्यों ? उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड से लेकर बिहार के कैमूर तक पानी को लेकर हाहाकार है । तकरीबन दो साल पहले बिहार के मुजफ्फरपुर प्रमंडल के भूगर्भ जल सर्वेक्षण विभाग ने मुजफ्फरपुर, वैशाली, समस्तीपुर, पूर्वी चंपारण के कुछेक प्रखंडों में भूजल की उपलब्धता पर सर्वे कराया था। सर्वे से जो तथ्य सामने आए, वे राज्य में बढ़ते जल संकट की ओर इशारा करते हैं। इन प्रखंडों में जितना पानी जमा होता है उससे ७० फीसदी ज्यादा पानी निकल रहा है। यानी पानी के रिचार्ज और ड्राट का अंतर ७० फीसदी का है। समय रहते यदि चेता नहीं गया तो आने वाले दिनों में उत्तर बिहार में भी लोग पानी के लिए तरसेंगे। खेत, हैंडपंप, कुएं सूख जाएंगे। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दि्वी की बात करें अथवा पूर्वोत्तर एवं दक्षिणी राज्यों की, एक बड़ी आबादी पेयजल के लिए तरस रही है । सर्वाधिक बारिश के लिए प्रसिद्ध मेघों के प्रदेश मेघालय का चेरापूंजी भी इस समस्या से अछूता नहीं रहा । यहां गत वर्ष औसत से आधी वर्षा रिकार्ड की गई। फलस्वरूप, यहां का भूमिगत जल विभाग भी भूजल स्तर नीचे जाने की आशंका से चिंतित है। पूर्वोत्तर के सातों प्रांतों यथा-असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नागालैंड को बीते वर्ष औसत से कम बारिश के कारण सूखे का संकट झेलना पड़ा। बेहिसाब बढ़ती आबादी, औद्योगिकीकरण का विकास और इन्द्र भगवान के रूठ जाने से भूजल पर निर्भर हमारी खेती ने पानी की मांग बढ़ा दी है । विश्व में प्रति वर्ष ८ करोड़ लोगों की वृद्धि जारी है । बढ़ती जनसंख्या के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग ६४ अरब घन मीटर स्वच्छ जल की मांग बढ़ रही है । भारत में भी जहां विश्व की कुल आबादी के १६ फीसदी लोग रहते हैं, वहां विश्व के कुल भू-भाग का केवल २.४५ फीसदी भाग ही हमारे पास है । स्वामीनाथन कमिटी का आकलन है कि वर्ष २०२५ में कृशि कार्य के लिए पानी का मौजूदा हिस्सा ८३ फीसदी से घटकर ७४ फीसदी रह जाएगा। क्योंकि तब अन्य क्षेत्रों में पानी की मांग बढ़ चुकी होगी। माना जा रहा है कि तब पानी की कमी के चलते देश में अनाज की पैदावार २५ फीसदी तक घटने का खतरा है। केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, प्रत्येक साल प्रति व्यक्ति जल की कुल खपत १०२२.७ क्यूबिक मीटर है। सन २००० में जल की मांग प्रति व्यक्ति ६३४ क्यूबिक मीटर थी, जबकि २०२५ तक यह बढ़कर १०९३ मीटर हो जाएगी। सन २००४ में स्वीडन में संपन्न विश्व जल सम्मेलन में विशेषज्ञों ने जल संकट से पैदा होनेवाली अकाल जैसी स्थिति के लिए आगाह किया था।

केंद्रीय भूमिगत जल बोर्ड के एक अनुमान के अनुसार, अगर भूमिगत जल के अंधाधुंध प्रयोग का सिलसिला जारी रहा तो देश के १५ राज्यों में भूजल का भंडार २०२५ तक पूरी तरह खाली हो जाएगा। हालांकि कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में जल की उपलब्धता को लेकर की जा रही चिंता उतनी गंभीर नहीं है, बशर्ते असमान जल वितरण एवं घटिया जल प्रबंधन की मानसिकता से हम उबर जाएं। नदी जोड़ योजना पर भी सरकार गंभीर नहीं दिखती है। याद रहे कि इन समस्याओं से लड़ना केवल सरकार के बूते की बात नहीं है। एक-एक व्यक्ति को आगे आना होगा। आनेवाले वक्त में हमारे नल, हैंडपंप, कु एं आदि प्यासे न रह जाएं, हमें आज से ही कुछ उपायों पर पहल शुरू कर देनी चाहिए। जल संकट के समाधान के लिए जल संग्रह करना एवं कंजूसी से पानी खर्च करना सबसे उत्तम उपाय है। वर्षा ऋतु में जो अतिरिक्त पानी बहकर निकल जाता है, इस पानी का संग्रह करना ही जल संग्रह कहलाता है। वर्षा के जल का संचय विेशेष रूप से बताए गए तालाबों, कुओं, बावड़ियों या अन्य जलाशयों में किया जा सकता है। बाढ़ के पानी की विशाल मात्रा समुद्र में समाहित हो जाती है। मिट्‌टी भर दिए गए कुओं व तालाबों का पुनर्ररुद्धार कर बाढ़ के पानी को संग्रहित करने से भूमिगत जल रिचार्ज होगा। जल संग्रह के और कई तरीके हैं, जैसे- मकानों के छतों पर इकट्‌ठा होने वाले जल को एक टैंक में जमाकर पाइप के जरिये उसे जमीन के अंदर जाने दें। इस तरह भूमि के अंदर का पेयजल रिचार्ज होगा। इस विधि को रेनवाटर हार्वेस्टिंग कहते हैं। मेघालय जैसा वर्षा बहुल प्रदेश में पानी का सही प्रबंधन नहीं होने की वजह से पानी की कमी महसूस की जाने लगी है जबकि मरुस्थलीय प्रदेश राजस्थान में सामुदायिक भागीदारी से सैकड़ों जोहाड़ (तालाब) बनाकर उसमें वर्षाजल संग्रह किया गया। फलत मरुस्थल पानी-पानी हो गया। इधर, केंद्रीय भूमिगत जल बोर्ड ने भी प्रशंसनीय कदम उठाते हुए दि्वी तथा अन्य शहरों में स्थित सरकारी भवनों पर जल संग्रह करने का विभागों को निर्देश दिया है। खबर है कि मेघालय में भी रेनवाटर हार्वेस्टिंग पर काम हो रहा है।

बहरहाल, जरूरत है जन भागीदारी की, एक-एक बूंद बचाने का संकल्प लेने की। कहीं भी नल खुले देखें तो बंद कर दें। सब्जी, दाल, चावल धोने के बाद शेष बचे पानी को पेड़-पौधे में डाल दें। बे अपने जन्मदिन पर कम-से-कम दो-चार पेड़ अवश्य लगाएं। गाड़ी धोने के लिए पानी का उपयोग बाल्टी से करें, पाइप से नहीं। ये छोटे-छोटे कदम आने वाली पीढ़ी को प्यास से बिलबिलाने नहीं देगी।(नवोत्थान लेख सेवा, हिन्दुस्थान समाचार)