हरियाणा विधानसभा ने हरियाणा पंचायती राज (संशोधन) विधेयक 2015 पेश किया। उसके तहत पंचायतों में चुनाव लड़ने वालों के लिए न्यूनतम शिक्षा की सीमा तय कर दी। उसमें तय यह भी किया गया कि जिनके घरों में शौचालय नहीं है, वे भी चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। चुनाव लड़ने के लिए कुछ बकायों के भुगतान को भी आवश्यक घोषित कर दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने उस संशोधन को वैध करार दिया। यह अनायास नहीं है कि इस तरह चुनाव लड़ने की बंदिशें सिर्फ हरियाणा और राजस्थान में ही है और इन दोनों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है।

इसमें कोई शक नहीं कि हरियाणा के मुख्यमंत्री देवेन्द्र खट्टर का इरादा इन योग्यताओं को तय करने मे खराब नहीं था। शैक्षिक योग्यता तय करने के कारण युवा लोगो पंचायती व्यवस्था के चुनावो में भारी संख्या में जीतकर आए हैं। इसके कारण बिजली बिल बकायों का भी अच्छा खासा भुगतान हो गया। घर में काम कर रहा शौचालय का होना भी अच्छी बात है। लेकिन इन फैसलों के नकारातमक पक्ष भी हैं।

सबसे पहला तो यह है कि क्या चुनाव लड़ने के लिए शैक्षिक योग्यता तय करना उन संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन तो नहीं है, जिनके तहत सभी को समता का अधिकार दिया गया है। भारत मे एक व्यक्ति को एक वोट का अधिकार मिला हुआ है और जो मतदाता हैं, वे एक आयु के बाद चुनाव लड़ने के योग्य भी है। विधानसभा और लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए तो शैक्षिक योग्यता का कोई न्यूनतम पैमाना नहीं है, लेकिन इस तरह की योग्यता पंचायती चुनावों के लिए निर्धारित करना कहां तक उचित है?

गांवों में अनेक ऐसे गरीब परिवार हैं जिनके सदस्य औपचारिक शिक्षा नहीं ग्रहण कर पाते हैं। इस तरह के मामले दलितों में ज्यादा हैं और महिलाओं में शिक्षा का सबसे ज्यादा अभाव है। इसलिए शैक्षिक योग्यता तय कर उन्हें उनके मौलिक अधिकारो से वंचित कर दिया गया है।

सरकार खुद स्वीकार कर रही है कि पंचायत चुनावों के बाद भी पंचायतो के 2000 पद खाली पड़े हुए हैं और उसका कारण उन पदों के लिए उम्मीदवार नहीं मिल पाना है। जाहिर है, जो लोग उन पदों के लिए चुनाव लड़ सकते थे, नये कानून के कारण उनकी चुनाव लड़ने की योग्यता समाप्त हो गई थी। अमत्र्य सेन ने इस स्थिति पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि जो पहले से ही वंचित हैं, हमें उन्हें और वंचित नहीं करना चाहिए।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह सरकार की जिम्मेदारी नहीं है कि गरीब तबके के बच्चों की शिक्षा को वह सुनिश्चित करे ताकि वे चुनाव लड़ने के लायक बन सकें। उधर खबर यह भी आ रही है कि स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है। सरकारी विद्यालयों से पास होने वाले बच्चों की संख्या भी घटती जा रही है। (संवाद)