दोनों नेताओं के बीच समानताएं भी बहुत हैं। दोनों क्षेत्रीय नेता हैं। दोनों एक दूसरे के दोस्त भी रहे हैं। दोनों की पार्टियों ने एक साथ केन्द्र की सरकार में भी शिरकत की है। दोनों की पार्टियां जीत के लिए उन पर ही निर्भर हैं। इसके साथ साथ दोनो नेताओ ने अपने परिवार के लोगो को राजनीति में आगे बढ़ाया है। जबतक दोनों सक्रिय हैं, तबतक वे दोनों ही अपनी अपनी पार्टियांे का नेतृत्व करते रहेंगे। इतना ही नहीं, दोनो ही अपने आपको आगामी विधानसभा चुनावों में अपने अपने राज्यों मे प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करेंगे। अंतर यह है कि इस समय प्रकाश सिंह बादल मुख्यमंत्री के पद पर हैं, जबकि करुणानिधि इस समय इस पद पर नहीं हैं।
तमिलनाडु में विधानसभा का चुनाव तो इसी साल मई के महीने में होना है। यह स्पष्ट है कि खुद करुणानिधि ही मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। इस बार भी वे अपने बेटे स्टालिन को इस पद के लिए प्रोजेक्ट नहीं करेंगै। उनके परिवार में उत्तराधिकार की लड़ाई चल रही थी और उस लड़ाई ने बहुत ही अप्रिय मोड़ भी ले लिया था, लेकिन अब करुणानिधि ने तय कर दिया है कि उनके छोटे बेटे स्टालिन ही उनके राजनैतिक उत्तराधिकारी होंगे। इसके बावजूद स्टालिन को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट नहीं किया जाएगा। इसका कारण यह है कि स्टालिन ने लोगों के बीच वह स्थान अभी तक प्राप्त नहीं किया है, जो स्थान उनके पिता करुणानिधि का है। यह दूसरी बात है कि यदि डीएमके सत्ता में आई, तो कुछ समय के बाद करुणानिधि उनके लिए यह पद छोड़ देंगे, क्योंकि उनकी उम्र बहुत ही ज्यादा हो गई है। जब वे पिछली बार मुख्यमंत्री थे, तो उस समय भी वे चक्के वाली कुर्सी पर बैठकर चला करते थे। अब तो उनका स्वास्थ्य उस समय जैसा भी नहीं रहा होगा। 94 साल की उम्र में जिस तरह से वे सक्रिय हैं, वह सक्रियता भी बिरलों को ही नसीब होती है।
तमिलनाडु की राजनीति मे करुणानिधि 7 दशको से छाए हुए हैं। 5 दशक पहले डीएमके नेता अन्नादुरै की मौत के बाद वे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पहली बार बने थे। उसके बाद वे 5 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। बीच बीच मे वे विपक्ष में भी रहे हैं। सच तो यह है कि वहां बारी बारी से सत्ता बदलती रहती है। पिछले चुनाव के पहले भी करुणानिधि ही मुख्यमंत्री थे। बदलने की परंपरा को देखते हुए वे इस बार मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद पाल रहे हैं।
लेकिन इस बार वह बदलाव आसान नहीं है। जयललिता की राजनीति अभी भी मजबूत है। 2014 के लोकसभा चुनाव में जयललिता की पार्टी को अभूतपूर्व जीत हासिल हुई थी। वे मुकदमे में सजा पाकर जेल भी गई थीं और फिर सजामुक्त होकर फिर से मुख्यमंत्री बनी हुई हैं। उनके साथ सहानुभूति फैक्टर है। पिछले साल तमिलनाडु में भारी वर्षा के कारण जबर्दस्त बाढ़ आई थी। उसके कारण जयललिता कमजोर लगने लगी थी, लेकिन उसके फायदा विपक्षी पार्टियां उठा नहीं सकीं।
करुणानिधि को भी पता है कि वह अपने बूते जयललिता को हरा नहीं पाएंगे, इसलिए वे गठबंधन की कोशिश में लग गए हैं और कांग्रेस के साथ बातचीत चला रहे हैं। कांग्रेस के साथ गठबंधन उन्होंने ही तोड़ा था। कांग्रेस के अलावा वे अन्य कुछ पार्टियों के साथ भी गठबंधन कर सकते हैं।
दूसरी तरफ पंजाब में प्रकाश सिंह बादल के स्थितियां बहुत ही प्रतिकूल हैं। वे पिछले 9 सालो ंसे वहां के मुख्यमंत्री बने हुए हैं। अगले साल के शुरुआती महीनों मंे वहां चुनाव है। चुनाव में उनकी सरकार के खिलाफ भी असंतोष रंग दिखाएगा और मोदी सरकार के खिलाफ फैलता असंतोष भी उनके खिलाफ ही जाएगा, क्योंकि भाजपा का वहां अकाली दल के साथ गठबंधन चल रहा है। (संवाद)
उत्तर और दक्षिण के दो बुजुर्ग नेता
करुणानिधि और बादल करेंगे चुनावों का सामना
कल्याणी शंकर - 2016-02-05 10:51
दो क्षेत्रीय दलों के दो बड़े नेता अगले 12 महीनो मे दो राज्यों के विधानसभाओ के चुनावों का सामना करते दिखाई देंगे। उनमें से एक उत्तर भारत के हैं, तो दूसरे दक्षिण भारत के। उत्तर भारत के पंजाब के शिरोमणि अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल 88 साल के हैं, जबकि दक्षिण भारत के तमिलनाडु के नेता करुणानिधि 94 साल के हैं। दोनों अपने अपने दलों के प्रमुख भी है। सच तो यह है कि किसी भी राष्ट्रीय या क्षेत्रीय पार्टी का प्रमुख अबतक 94 साल का कोई व्यक्ति नहीं हुआ है। इस मायने में करुणानिधि ने तो एक राष्ट्रीय रिकार्ड बनाया ही है, हो सकता है कि उनका इस उम्र मंे अपनी पार्टी का मुखिया होना एक विश्व रिकार्ड भी हो।