मायावती संघ परिवार की उन कोशिशों के कारण परेशान हैं, जिनके तहत वह उत्तर प्रदेश के दलितों के बीच अपना आधार बढ़ाने पर लगा हुआ है। गौरतलब है कि दलित मतदाता चुनाव के नतीजों को प्रभावित करते रहे हैं और प्रदेश की कुल जनसंख्या में उनका योगदान 20 फीसदी से भी ज्यादा है।
यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले लोकसभा चुनाव मे दलितों के एक हिस्से ने भारतीय जनता पार्टी को वोट दिया था। इसका नरेन्द्र मोदी के प्रति उनका लगाव था। वे उस समय कह रहे थे कि लोकसभा चुनाव मे तो वे नरेन्द्र मोदी को वोट देंगे, लेकिन विधानसभा चुनाव में वोटिंग में उनकी पसंद बदल जाएगी।
अब नरेन्द्र मोदी अपने खेमे में आए दलित मतों को बचाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। उनकी पार्टी के लोगो हर संभव वे कोशिशें कर रहे हैं, जिनसे दलितो का उनके प्रति लगाव बढ़े। वे भीमराव अम्बेडकर को बहुत महत्व दे रहे हैं और संघ परिवार के सदस्यों को कहा गया है कि वे दलितों के साथ भोजन करें।
नरेन्द्र मोदी द्वारा लखनऊ स्थित अम्बेडकर महासभा में उपस्थिति दर्ज करवाने को बहुत ही गंभीरता से देखा जा रहा है।
प्रधानमंत्री द्वारा अम्बेडकर महासभा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के बाद मायावती ने दलित वोटों को अपने पास बनाए रखने के लिए जबर्दस्त अभियान छेड़ रखा है।
वह कह रही है कि भारतीय जनता पार्टी आरक्षण समाप्त करना चाहती है। अपनी बात को सही साबित करने के लिए वह संघ प्रमुख मोहन भागवत के उस बयान का हवाला दे रही हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि आरक्षण की समीक्षा की जानी चाहिए।
हैदराबाद के एक दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के मसले को भी मायावती उठा रही हैं और कह रही है कि भाजपा और उसकी केन्द्र सरकार ने उसे आत्महत्या करने के लिए विवश कर दिया।
मायावती ने अखिलेश यादव सरकार को भी दलित विरोधी ठहराया और कहा कि पिछले तीन सालों में दलित और पिछड़ी जातियों के ऊपर अत्याचार बढ़े हैं।
लेकिन बसपा को इस बात का भी अहसास है कि सिर्फ दलितो के मत से उसकी सरकार नहीं बनने वाली। यही कारण है कि वह अगड़ी जातियों और मुसलमानों के बीच अपनी पहुंच बनाने की जी तोड़ कोशिश कर रही है।
अगड़ी जातियों को लुभाने के लिए वे आर्थिक आधार पर उनके गरीबों को भी आरक्षण देने की मांग कर रही है। वह कहती हैं कि यदि उत्तर प्रदेश में उनकी सरकार बनी, तो इस मसले को वह बहुत ऊंचे स्तर तक ले जाएंगी।
मायावती ने अगड़ी जातियों के लोगों से वायदा किया है कि वे विधानसभा चुनावों मे उन्हें बहुत सीटें देंगी।
मुसलमानों को अपनी ओर लाने के लिए मायावती प्रदेश में बढ़ रही सांप्रदायिकता को मुद्दा बना रही है। वह यह बता रही हैं कि अखिलेश सरकार में मुसलमाना सुरक्षित नहीं हैं, जबकि उनकी सरकार के दौरान वे पूरी तरह सुरक्षित थे।
मायावती अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से मोदी सरकार द्वारा अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा छीनने की कोशिशों के मसले को भी उठा रही हैं।
गैर यादव ओबीसी जातियों का वोट पाने की कोशिश में भी मायावती पूरी तरह लग गई हैं। वह समाजवादी पार्टी को यादवों की पार्टी बता रही है और कह रही है कि अखिलेश सरकार में गैर यादव ओबीसी के हितों को मारा जा रहा है। (संवाद)
उत्तर प्रदेश में माया की चुनौती बेहद कठिन
बसपा प्रमुख कर रही है विशेष तैयारी
प्रदीप कपूर - 2016-02-06 09:36
लखनऊः बसपा प्रमुख मायावती ने अपना दलित वोट आधार बचाने और अगड़े और मुस्लिम समुदाय में अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए जबर्दस्त अभियान छेड़ रखा है। वे चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं और 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी से पराजित हुई थीं।