पर रोहित वेमुला ने आत्महत्या हाॅस्टल से निकाले जाने और फेलोशिप रोक दिए जाने के बाद की थी। उस पर हाॅस्टल कैंटिन का 10 हजार रुपये का बकाया भी हो गया था। वह अपने 25 हजार रुपये प्रति महीने के फेलोशिप से अपनी मां और भाई का खर्च भी चलाता था। जाहिर है, आर्थिक तंगी उसकी आत्महत्या का कारण हो सकती है। रोहित की उस स्थिति के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन और केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की जिम्मेदारी को नकारा नहीं जा सकता। मंत्रालय ने उसके और उसके दोस्तों के खिलाफ कार्रवाई के लिए एक के बाद एक 5 चिट्ठियों की बमबारी कर दी और विश्वविद्यालय प्रशासन के पास शायद उसके खिलाफ कार्रवाई करने के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं रह गया था।

इस सारे प्रकरण में नरेन्द्र मोदी का नाम इसलिए आ गया कि उनकी सरकार की ही एक मंत्री उसके खिलाफ विश्वविद्यालय को चिट्ठियां लिख रही थीं और वह मंत्री और कोई नहीं है, बल्कि खुद नरेन्द्र मोदी की पसंद है। गौरतलब हो कि स्मृति ईरानी को मंत्री बनाने का जबर्दस्त विरोध हुआ था और उसके लिए प्रधानमंत्री की खिल्ली भी उड़ाई गई थी। तमाम आलोचनाओं के बावजूद प्रधानमंत्री ने उन्हें न केवल अपने मंत्रिमंडल मे बनाए रखा, बल्कि उन्हें मानव संसाधन विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी से भी अलग नहीं किया। यह संकेत दिए गए कि अमेठी में राहुल गांधी को हराने के लिए स्मृति ईरानी के राजनैतिक कद को बढ़ाया गया है और सुश्री ईरानी ने बार बार अमेठी का दौरा कर उस संकेत पर मुहर भी लगा दी।

पर राहुल गांधी को हराने के लिए नरेन्द्र मोदी ने जिस प्यादे को वजीर बनाया, वह प्यादा हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय के एक छात्र की आत्महत्या के बाद पिट गया है। अपनी राजनैतिक नासमझी के कारण स्मृति ईरानी ने एक प्रेस कान्फ्रेंस बुलाकर यह कहना शुरू कर दिया कि उन्होंने जो कुछ भी किया, वह नियमों के अनुसार ही किया। अपने किए पर उनको कोई पछतावा नहीं था। मंत्रियों की एक फौज उनके उस प्रेस कान्फ्रेंस में थी। सबसे ज्यादा आपत्तिजनक बात तो सुश्री ईरानी ने यह कही कि मरने वाला छात्र दलित नहीं ओबीसी था। सवाल उठता हे कि क्या दलित की मौत ही चिंता का कारण हो सकती है, किसी ओबीसी छात्र की मौत नहीं।

जाहिर है, एक अराजनैतिक व्यक्ति को एक महत्वपूर्ण राजनैतिक पद देकर नरेन्द्र मोदी ने भारी भूल की है और उसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है। लोकसभा में उनकी भारी जीत उनके ओबीसी बैकग्राउंड के कारण ही हुई। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में ओबीसी आंदोलन बहुत मजबूत है और वहां के लोगों को मोदी का ओबीसी होना अपील कर रहा था। यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार वहां जीते। उत्तर प्रदेश में अपने सहयोगी अपना दल के साथ 73 सीटें पाकर भारतीय जनता पार्टी ने वहां एक ऐसा रिकार्ड बना दिया, जो वाजपेयी के नेतृत्व में लड़े चुनाव की अपेक्षा बहुत ही ज्यादा शानदार था।

अब वेमुला की मौत के बाद दलित और ओबीसी वर्ग भारतीय जनता पार्टी से तो नाराज है ही, नरेन्द्र मोदी के प्रति उनका विश्वास डगमगा गया है। बिहार में भाजपा की हार का कारण ओबीसी के एक बड़े हिस्से का भाजपा से अलग हो जाना था और उसके लिए लालू यादव ने अथक मेहनत की थी, जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने उनका साथ दिया था।

इस बार भी ओबीसी और दलितों के बीच मोदी की मिट्टी पलीद करने में संघ परिवार पूरी तरह से सक्रिय भूमिका निभा रहा है। भारतीय संस्कृति में किसी के मर जाने के बाद उसकी आलोचना नहीं करने की परंपरा रही है। लेकिन संघ परिवार पूरे जोर शोर से यह प्रचार करता रहा कि रोहित वेमुला आतंकवादियों का हमदर्द था और वह गोमांस खाता था। आतंकवादियों का हमदर्द था, तो उसके खिलाफ पुलिसिया कार्रवाई होनी चाहिए थी। लेकिन वैसा कोई मुकदमा उसके खिलाफ कहीं दर्ज नहीं था। रोहित पर मारपीट का किया गया मुकदमा भी गलत साबित हो गया। उस पर जितने सारे आरोप लगे, वह एक एक कर गलत साबित होते रहे और उसके साथ ही नरेन्द्र मोदी की ओबीसी और दलित समुदायों मंे मिट्टी पलीद होती रही। संघ के लोग उसको ओबीसी साबित करने पर तुले हुए हैं। अब तक जो खबरें आई हैं, उनके अनुसार उसका पिता ओबीसी और माता एससी है। उसकी मां को उसके पिता ने छोड़ रखा था और वह अपनी एससी मां के साथ ही रहता था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के अनुसार वह एससी ही है। हालांकि उसने विश्वविद्यालय में नामांकन में आरक्षण का लाभ नहीं लिया था।

लेकिन उसे ओबीसी साबित करने का भाजपा का प्रयास नरेन्द्र मोदी की छवि के लिए और भी घातक साबित हो रहा है, क्योंकि भाजपा और नरेन्द्र मोदी का असली वोट आधार ओबीसी ही रहे हैं। दलितों के बीच अभी भी संघ और भारतीय जनता पार्टी को लेकर संदेह का माहौल है और अंबेडकर के नाम पर संस्थान बनाकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार कोशिश कर रहे हैं कि उनकी पार्टी की पैठ उनके बीच पहुंचे।

लेकिन वेमुला ने नरेन्द्र ओबीसी और दलितों के बीच एक लाचार ओबीसी नेता की छवि बना दी है, जो न तो उनकी और न ही उनके हितों की रक्षा कर सकता है। लखनऊ के एक दीक्षांत समारोह मे बोलते हुए नरेन्द्र मोदी भावुक होकर लगभग रोने लगे थे। उससे भी उनकी कमजोरी ही सामने आई न कि दलितों के प्रति उनकी चिंता उस भावुकता में दिखाई पड़ी ।सच कहा जाय तो उनकी साख को इतना नुकसान पहुंचा है कि उसकी भरपाई करना उनके लिए आसान नहीं होगा। (संवाद)