महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी लोकसभा चुनाव के समय राजग में नहीं थी। जम्मू और कश्मीर मे जब विधानसभा के चुनाव हो रहे थ, उस समय भी वह भाजपा के साथ गठबंधन में नहीं थी। लेकिन चुनाव के बाद दोनों ने मिलकर जम्मू और कश्मीर में सरकार का गठन किया था। पीडीपी के मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने थे। उनकी मौत के बाद महबूबा ने भारतीय जनता पार्टी को सांसत में डाल दिया है। वह सरकार बनाने के लिए कठोर शर्तें भाजपा के सामने रख रही है, जिन्हें मानना भाजपा के लिए कठिन ही नहीं लगभग असंभव भी है।

संसद का सत्र शुरू होने के पहले भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की बैठक बुलाई। उस बैठक मे महबूबा मुफ्ती को भी आमंत्रित किया गया था। लेकिन वह बैठक में नहीं आईं। बैठक में पंजाब के शिरोमणि अकाली दल का प्रतिनिधित्व सुखबीर सिंह बादल कर रहे थे और महाराष्ट्र की शिवसेना का प्रतिनिधित्व संजय राउत कर रहे थे। आंध्र प्रदेश की तेलुगू देशम की तरफ से खुद वहां के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू वहां उपस्थित थे।

इन तीनों ने केन्द्र सरकार और भाजपा द्वारा उनकी उपेक्षा किए जाने के सवाल को खड़ा किया। पंजाब के उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिह बादल भारतीय जनता पार्टी से बहुत निराश दिखे और इसके कारण वे अपनी भड़ास निकाल रहे थे। दरअसल वहां अगले साल के शुरू मंे ही विधानसभा के चुनाव होने हैं। 10 साल से उनके पिता प्रकाश सिंह बादल वहां के मुख्यमंत्री हैं। इस बार चुनाव में शिरोमणि अकाली दल को लेकर वहां के लोगों मंे गुस्सा है। भारतीय जनता पार्टी भी अकाली दल के साथ वहां सरकार में शामिल है। पिछले दोनों चुनाव दोनों मिलकर लड़ रहे थे।

इस बार भारतीय जनता पार्टी शिरोमणि अकाली दल के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ना चाहती है, क्योंकि उसे डर है कि अकाली दल की बढ़ रही अलोकप्रियता का खामियाजा उसे भुगतना पड़ सकता है। शिरोमणि अकाली दल को तो भावनात्मक आधार पर सिखों और खासकर अकालियों का समर्थन हासिल हो जाता है, इसलिए आपेक्षिक रूप से वह भाजपा से बेहतर प्रदर्शन कर लेगा, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के साथ मतदाता होते हैं, जो अकाली दल से बेहद नाराज है और उसके कारण वे भारतीय जनता पार्टी को आगामी विधानसभा चुनाव में ठेंगा दिखा सकते हैं।

यही कारण है कि भाजपा के पंजाब के नेता विधानसभा चुनाव अकेले लड़ना चाहते हैं। इसके कारण शिरोमणि अकाली दल भाजपा को लेकर सशंकित है। उसी आशंका के तहत राजग की बैठक मे सुखबीर सिंह बादल अपना बागी तेवर दिखा रहे थे, हालांकि अमित शाह ने उन्हें आश्वस्त किया कि भारतीय जनता पार्टी उनके दल के साथ मिलकर ही आगामी पंजाब विधानसभा का चुनाव लड़ेगी।

महाराष्ट्र की शिवसेना भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी है। पिछले लोकसभा चुनाव में भी वह भाजपा के साथ मिलकर ही चुनाव लड़ी थी और उसके सांसदों की संख्या अच्छी है। विधानसभा चुनाव में अलग होकर वह चुनाव लड़ी थी, लेकिन चुनाव के बाद वह महाराष्ट्र में भाजपा गठबंधन के साथ ही सरकार में है। उसे भी भाजपा के साथ बहुत शिकायत है। उसके नेता संजय राऊत ने कहा कि अनेक बार उन्हें तो यह लगता है कि केन्द्र सरकार उनकी है ही नहीं। वे भाजपा द्वारा अपने सहयोगी दलों को सरकार चलाते समय विश्वास में न लिये जाने की शिकायत कर रहे थे।

आंध्र प्रदेश के चन्द्रबाबू नयडू भी बैठक में खुश नहीं दिखे। अमित शाह ने उन्हें उनकी शिकायतों को दूर करने का भरोसा दिया और कहा कि कोई ऐसा मेकैजिज्म तैयार किया जाएगा, जिससे उनकी शिकायतों को दूर किया जा सके। (संवाद)