रेल मंत्री से देश के लोगों की अपेक्षाएं ने केवल यात्री सुविधा से ही जुड़ी है बल्कि रेलवे के आंतरिक बजट को सुधारने के लिए ज्यादा से ज्यादा से आय अर्जन की व्यवस्था करना, विकास के लिए नई योजनाएं बनाना, सालाना 30 हजार करोड़ रूपये के कर्ज से निपटना, राष्ट्रीय कोष में डिवीडेंट अदा करना, विशेष रेल संरक्षा बजट में पैसा आवंटन करना जैसे कई समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं। इसके अलावा ट्रैक को दुरूस्त करना, नवीनीकरण करना, यात्री संख्या में हो रही कमी को बढ़ाने के उपाय करना, माल ढुलाई में उल्लेखनीय वृद्धि के लिए अलग से नीति बनाना और यात्री किराए से होने वाली सालाना 25 हजार करोड़ की हानि को कम करने के उपाय करने, पैसेंजर किराए में बढ़ोतरी किए बिना 15 फीसदी की आई परिचालन में बढ़ोतरी को कम करना, प्रीमियम ट्रेनों से कमाई बढ़ाने के उपाय करना, माल गाड़ियों में क्षमता भर ढुल ाई के लिए नीतियां बनाने जैसे कई सवाल खड़े हैं जिसकी मुक्कमल व्यवस्था करनी ही होगी ताकि रेल का पहिया देश के विकास में आगे बढ़ता रहे।

रेल मंत्री सुरेश प्रभु के समक्ष नीतिगत तौर पर दोहरी जिम्मेदारी है जिसे पूरा करने की अपेक्षा देश उनसे करता है। जहां एक ओर रेलवे में नवीनीकरण के लिए लाए गए सभी प्रोजेक्ट देरी से चल रहे हैं वहीं दूसरी ओर देश की सुरक्षा से जुड़े कई महत्वपूर्ण कारक प्रभावित हो रहे हैं। रेलवे के लिए अपना विकास और आमदनी बढ़ाने के उपाय तो करने ही होंगे साथ ही उसे सामाजिक जिम्मेदारी को भी पूरा करना होगा। देश के लगभग सभी राज्यों से जुड़ी रेलवे को देखकर हर देशवासी को खुशी होती है कि यह हमारे देश की सचल पूंजी है जिसका कोई जवाब ही नहीं हो सकता, आम आदमी की भावनाएं भी रेलवे से जुड़ी हुई हैं इसे भी कायम रखने की जिम्मदारी रेलमंत्री के समक्ष होती है इसलिए रेलवे विकास की योजना बनाते समय केवल मुनाफा को ही नहीं देखा जाता बल्कि देश के आम आदमी की जरूरतों का भी ध्यान रखना पड़ता है।

रेल भवन में चल रही अटकलों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि रेल मंत्री इस बार पैसेंजर किराए में 10 फीसदी और माल भाड़े में 6 फीसदी की बढ़ोतरी कर सकते हैं। उम्मीद है कि देश के सभी बड़े शहरों में बेकार पड़ी रेलवे की जमीन का व्यवसायिक उपयोग करके रेलवे की आर्थिक ताकत को बढ़ाने के लिए कुछ नई नीतियां लाने की योजना बना सकते हैं, यह भी संभव है कि सातवें वेतन आयोग की मार से बेहाल रेलवे की माली हालत को इससे कुछ संजीवनी मिल सके। यह भी संभव है कि रेल मंत्री इस बजट में कुछ ऐसे मार्केटिंग रणनीति की घोषणा भी कर सकते हैं जिससे रेलवे को अतिरिक्त आय जुटाने में सहूलियत हो। यही नहीं सड़क मार्ग पर 90 टन तक माल लेकर दौड़ रही ट्रकों से भी प्रतिस्पर्धा करनी होगी। इसे देखते हुए रेल मंत्री समर्पित माल गाड़ी रेलवे ट्रैक को समय पर पूरा करने के प्रति सख्त रवैया अपना सकते हैं।

यहां यह भी ध्यान देना होगा कि यात्री सुविधाओं में विस्तार को लेकर साल दर साल घोषित होने वाली योजनाओं पर अमल के लिए लीक प्रूफ प्रणाली को सामने लाने का प्रयास करना होगा। इसके अंतर्गत ट्रेनों-स्टेशनों पर साफ सफाई, स्वच्छ और अच्छा भोजन उपलब्ध कराना, ट्रेनों के समय सारणी को समयबद्ध करना जैसे कई कार्य हैं जिसे पूरा करने के लिए रेल मंत्री प्रभु को नई घोषणाएं करनी पड़ेगी। रेल मंत्री से यह भी अपेक्षा है कि वह कुलियों के लिए नई घोषणा करें और उन्हें स्वचालित ट्रॉली उपलब्ध कराने से लेकर उनके कार्य को प्राथमिकता के आधार पर रेलवे की कार्य सूची में शामिल कराएं। दूसरी ओर यह भी संभावना जताई जा रही है कि रेलवे बजट में इस बार बुजुर्गों, बच्चों और अन्य रियायत को समाप्त करने की घोषणा हो सकती है।

भारतीय रेलवे के लिए यह सुअवसर भी है और चुनौती भी कि वह न्यायपूर्ण ढंग से ऐसी नीति बनाए जिससे सामाजिक उत्तरदायित्व को भी पूरा किया जा सके और व्यवसायिक लक्ष्य को भी हासिल किया जा सके, यह रेलवे और देश दोनों के हित में है। देश के कोने कोने में रेलवे का जाल बिछे, यात्रियों को बेहतर सुविधा मिले और देश के विकास में अपनी भागीदारी को और ज्यादा बढ़ाए, एक संस्था के रूप में देश में चमके और विश्व के अन्य रेलवे की तुलना में कहीं ज्यादा आकर्षक और उदयीमान बने हमारा भारतीय रेल।