भारतीय जनता पार्टी मुख्य रूप से मध्यवर्ग की पार्टी है और इसके कारण इस वर्ग को उससे खास उम्मीदें होती हैं। जैसे आयकर छूट की सीमा बढ़ाना और आयकर की दर में कमी करना इत्यादि। मध्यवर्ग यह भी चाहता है कि उसके उपभोग की वस्तुएं सस्ती हों। और यदि सस्ती न भी हो तो कम से कम वह महंगी न हो। लेकिन इस मोर्चे पर उन्हें निराशा ही हाथ लगी है। आयकर में कोई छूट नहीं मिली है। उसके स्लैब में कोई बदलाव नहीं आया है और सरकार ने जो सेवा करों में वृद्धि की है, उसके कारण लगभग सभी वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होने वाली है।
कहने को यह बजट ग्रामीण क्षेत्रों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों को ध्यान में रखा भी जाना चाहिए, क्योंकि उनकी स्थिति लगातार खराब होती जा रही है। खेती एक घाटे का धंधा बन गई है और किसानों की आत्महत्याओं की खबरें लगातार आ रही हैं। सच कहा जाय, तो 1991 में शुरू किए गए आर्थिक सुधार कार्यक्रमों के बाद सबसे ज्यादा नुकसान किसानों का ही हुआ है। जब उनकी फसलें अच्छी होती हैं, तो उन्हें सही कीमतें नहीं मिल पाती। उन्हें कम कीमतों पर अपने उत्पादों को बेचना पड़ता है और जब वे बाजार मंे उपभोक्ता के रूप में प्रवेश करते हैं, तो उसकी बढ़ी कीमतें उन्हें देनी पड़ती है। और जब सूखे या बाढ़ के कारण उनकी फसलें बर्बाद हो जाती हैं, तो फिर तो उनकी जान पर बन आती है।
इसी को ध्यान में रखते हुए बजट मे किसानों और ग्रामीण सेक्टर के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं, जिनका कुछ न कुछ लाभ तो किसानों को जरूर मिलेगा, पर असली समस्या यह है कि प्रशासन भ्रष्ट और अक्षम है, जिसके कारण अधिकांश कल्याणकारी कार्यक्रमों के लाभ लक्षित तबके तक पहुंच ही नहीं पाते। यदि लक्षित तबका कमजोर और कम शिक्षित हो, तो फिर ज्यादा उम्मीद यही है कि उनके लिए लाभ पहुंचाने के कार्यक्रम सरकारी बंदरबाट के शिकार हो जाते हैं। इसलिए यदि इस बजट में किसानों के लिए पेश किए गए कार्यक्रमों को सफल बनाना हो, तो नौकरशाही में भ्रष्टाचार को समाप्त या कम करना ही होगा।
आर्थिक सुधार कार्यक्रमों के साथ प्रशासनिक सुधार कार्यक्रमों को भी चलाया जाना चाहिए था, पर दुर्भाग्य से वैसा नहीं किया गया। नई आर्थिक नीतियो के तहत सुधार कार्यक्रमों के 25 साल पूरे होने के हैं, लेकिन अभी तक प्रशासनिक सुधार कार्यक्रमों को चलाया ही नहीं गया है। अब तो डिजिटीकरण का दौर चल रहा है और इसके तहत प्रशासन में आमूलचूल परिवर्तन किया जा सकता है। इस दिशा में कोशिश चल भी रही है और इसक झलक भी वित्तमंत्री अरुण जेटली के बजट भाषण में दिखाई पड़ी, लेकिन प्रशासन के डिजिटाइजेशन को जिस युद्ध स्तर पर चलाया जाना चाहिए, वह अभी बाकी है। अभी तो डिजिटाइजेशन हो रहा है, वह वर्तमान प्रशासनिक ढांचे के अंतर्गत ही हो रहा है, जबकि जरूरत इस बात की है कि डिजिटाइजेशन की जरूरतो को देखते हुए पूरी प्रशासनिक व्यवस्था का ही पुनर्गठन हो।
टैक्स के मोर्चे पर मोदी सरकार ने किसी को भी उल्लेखनीय राहत नहीं दी है। आवास निर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए पहली बार घर खरीदने वालों को उन्होंने कुछ राहत जरूर दी है, लेकिन वह ऊंट के मुह में जीरा के समान है। जीएसटी की दिशा में कोई प्रगति नहीं होना, यह जाहिर करता है कि सरकार इस दिशा में आगे बढ़ने को तैयार नहीं है और कांग्रेस व विपक्ष के विरोध को वह एक बहाना बना रही है। इसका कारण यह है कि कांग्रेस से इस मसले पर सही तरीके से बात नहीं कर रही है। दोनों के बीच जो मतभेद हैं, उन्हें बातचीत करके सुलझाया जा सकता है और मतभेद को कमकर सहमति पर पहुंचा जा सकता है, लेकिन सरकारी पक्ष झुकने के लिए तैयार नहीं है।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की स्थिति बहुत खराब है। लाखों करोड़ों रुपये का उनके द्वारा किए गए कर्ज डूब रहे हैं। वे कर्ज बड़े बड़े व्यापारिक घरानों को ही दिए गए हैं। सरकार सही कानून बनाकर उनकी वसूली कर सकती है। वसूली करने में सरकार बैंकों को सहायता कर सकती है, लेकिन इस दिशा में सरकार सक्रिय नहीं। अभी तक जो संदेश मिल रहे हैं, उससे तो यह लगता है कि सरकार काॅर्पोरेट सेक्टर के पक्ष में काम कर रही है, लेकिन उसके कारण बैंकों को भारी नुकसान हो रहा है।
कच्चे तेल की घटती कीमतों ने सरकार का काम बहुत आसान कर दिया है। उसके पास विपुल विदेशी मुद्रा भंडार है। निर्यात में कमी आने के बाद भी उसके पास विदेशी मुद्रा का भंडार बढ़ता जा रहा है। तेल की कीमतें कम होने के कारण उसके राजकोष में भी वृद्धि हो रही है, क्योंकि सरकार तेल उत्पादों पर टैक्स लगातार बढ़ाते जा रही है। इसके कारण वह अपना खर्च तो दुरुस्त रख रही है, लेकिन दुर्भाग्य से इसका जितना फायदा देश को होना चाहिए, उतना फायदा वह उसे नहीं पहुंचा रही है। (संवाद)
मोदी सरकार का तीसरा बजट: मध्यवर्ग के लिए कोई राहत नहीं
उपेन्द्र प्रसाद - 2016-03-01 11:34
अरुण जेटली द्वारा पेश किए गए इस तीसरे बजट को मोदी सरकार का पहला असली बजट माना जा रहा था। उम्मीद थी यह बजट कठोर होगा, क्योंकि लोकप्रिय बजट तब पेश किया जाता है, जब सरकारी पार्टियों को चुनाव का सामना करना पड़ता है। चूंकि चुनाव 2019 में है, इसलिए 2016 और 2017 मे पेश किए गए बजट को कठोर बनाने में सरकारी पार्टियों को कोई नुकसान होता दिखाई नहीं पड़ता है।