यह झटका केरल कांग्रेस (मणि) के विभाजन से लगा है। मणि कांग्रेस के चार बड़े नेताओं ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है और पुराने केरल कांग्रेस (जोसफ) को फिर से खड़ा करने का फैसला किया है। इसका कारण यह है कि मणि ने उन लोगों को चुनाव लड़ने के लिए टिकट देने से मना कर दिया था।

वे चार नेता हैं- फा्रंसिस जाॅर्ज, एंटोनी राजू, के सी जोसफ और पी सी जोसफ। वे सभी के सभी पहले केरल कांग्रेस (जोसफ) में हुआ करते थे और जल संसाधन मंत्री पी जे जोसफ के वे सभी बेहद करीबी हैं। फिलहाल पी जे जोसफ ने उनके साथ पार्टी छोड़ने से मना कर दिया है और उन चारों के पार्टी छोड़ने पर निराशा जताई है।

केरल कांग्रेस(मणि) के नेता इस समय अपने आपको आत्मविश्वास से लवरेज दिखा रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि उनके पार्टी छोड़ने से पार्टी को कोई नुकसान नहीं होगा। लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और ही है।

पार्टी छोड़ने वाले चारोें नेता कह रहे हैं कि उन्होंने यह कदम टिकट नहीं मिलने के कारण नहीं उठाया, बल्कि वे पार्टी में वंशवाद की राजनीति का विरोध करते हुए बाहर आए हैं। वे पार्टी छोड़ने के लिए मणि के तानाशाही रवैये को भी एक कारण बताया है।

एक बड़ा कारण जो इस विभाजन के लिए जिम्मेदार है, वह गाडगिल और कस्तूरीरंजन कमिटियों की रिपोर्ट हैं। जोसफ गुट का कहना है कि मणि ने इस कमिटियों की रिपोर्ट से प्रभावित होने वाले किसानों के हितों को बचाने के लिए कुछ भी नहीं किया।

मणि गुट के नेता भाजपा के साथ भी तालमेल बैठाने या गठबंधन करने की कोशिश कर रहे थे। उनकी वे कोशिशें जोसफ गुट के नेताओं को रास नहीं आ रही थीं। उनका आरोप है कि पार्टी सुप्रीमो मणि के सांसद पुत्र भाजपा नेताओं से गठबंधन की बातचीत चला रहे थे।

केरल कांग्रेस (मणि) के इस विभाजन का क्या राजनैतिक असर होगा, इसे लेकर लोगों के मत विभाजित हैं। लेकिन इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि पार्टी से बाहर आने वाले चारों नेताओं का प्रदेश क तीन जिलों में अच्छा असर है।

अब जब ये चारों पार्टी से बाहर हो गए हैं, तो सबकी नजर एलडीएफ के ऊपर है। उसके नेता कह रहे थे कि पहले ये लोग पार्टी से बाहर आएं, तो फिर वे विचार करेंगे कि वे उनके साथ गठबंधन करें या न करें। अब वे पार्टी से बाहर आ गए हैं और अब एलडीएफ उनके साथ गठबंधन कर सकता है। लेकिन यह काम बहुत आसान भी नहीं है।

प्रदेश सीपीएम सचिव के बालाकृष्णन और पोलित ब्यूरो सदस्य पी विजयन ने उन चारों के पार्टी छोड़ने का स्वागत किया है, लेकिन विधानसभा में विपक्ष के नेता अच्युतानंदन उनको लेकर बहुत उत्साहित नहीं हैं। उन्होंने कहा है कि ये चारों भ्रष्ट चांडी सरकार के हिस्से थे और इसलिए उन्हें एलडीएफ में नहीं लिया जाना चाहिए। अच्युतानंदन के इस बयान से उनको मोर्चे में लेने को लेकर अनिश्चय पैदा हो गया है।

लेकिन के बालाकृष्णन और विनयन की राय अलग हैं। उनका मानना है कि उन्हें फ्रंट में लेने से केन्द्रीय केरल में उनकी स्थिति मजबूत होगी, जो फिलहाल कमजोर है उस क्षेत्र में विधानसभा की 25 से 30 सीटें हैं।

दूसरी तरफ इन चारों के पार्टी से बाहर होने से सत्तारूढ़ यूडीएफ की स्थिति और भी बदतर हो गई है। उनके लिए दुबारा सत्ता में आना और भी कठिन हो गया है। (संवाद)