अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने असम गण परिषद के साथ गठबंधन कर लिया, लेकिन गठबंधन के कारण असम गण परिषद में ही विभाजन हो गया है। भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन का विरोध कर रहे गुट ने पार्टी तोड़ दी है और एक अलग पार्टी का गठन कर लिया है। नई पार्टी का नाम रखा गया है असम गण परिषद (आंचलिक)। इस नई पार्टी ने प्रदेश की 126 में से 45 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करने का एलान किया है।
नई पार्टी द्वारा उम्मीदवार खड़ा करने का असर भाजपा गठबंधन के उम्मीदवारों पर पड़ सकता है। भले ही नई पार्टी अपने उम्मीदवारों का जिता नहीं सके, लेकिन भाजपा और सहयोगी पार्टियों के उम्मीदवारों को हराने की उसकी क्षमता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
असम गण परिषद के साथ ही भारतीय जनता पार्टी ने बोडो पीपल्स फ्रंट के साथ भी गठबंधन किया है। इस पार्टी का बोडो क्षेत्रीय परिषद पर कब्जा है। इसके जवाब में कांग्रेस उसके प्रतिद्वंद्वी यूनाइटेड पीपल्स पार्टी के साथ समझौता कर लिया है। बोडो क्षेत्रीय परिषद में बोडो से ज्यादा गैरबोडो लोगों की आबादी है। इसलिए वहां का मुकाबला दिलचस्प होगा और यह कहना गलत होगा कि भारतीय जनता पार्टी को बोडो की इस पार्टी से गठबंधन का लाभ मिलेगा ही।
भारतीय जनता पार्टी बहुत ही आक्रामक रूप से धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही है। इसका असर असम के मुस्लिम समुदाय पर पड़ रहा है। मुसलमानों पर आॅल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की मजबूत पकड़ है। इसके कारण उसके पास इस समय विधानसभा में 18 विधायक हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में भी तीन लोकसभा सदस्य इस पार्टी के ही चुने गए थे।
लेकिन ध्रुवीकरण की भाजपा की राजनीति के कारण मुसलमाने आॅल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट को छोड़कर कांग्रेस की ओर आत दिखाई पड़ रहे हैं। इस पार्टी के कुछ विधायक कांग्रेस की सदस्यता स्वीकर कर चुके हैं और व ेअब कांग्रेस के टिकट से ही अगला चुनाव लड़ रहे हैं।
मुसलमानों को पता है कि आॅल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट एक क्षेत्रीय पार्टी है और वह राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ नहीं लड़ सकती। भाजपा के खिलाफ कांग्रेस ही लड़ सकती है। मुस्लिम सिर्फ विधानसभा चुनाव को ही नहीं देख रहे। उनकी नजर में 2019 में होने वाला लोकसभा चुनाव भी है, जहां भारतीय जनता पार्टी की हार को कांग्रेस के द्वारा ही सुनिश्चित किया जा सकता है। यही कारण है कि ज्यादा से ज्यादा मुसलमान कांग्रेस की ओर आ रहे हैं, जिसके कारण भाजपा की जीत की संभावना धूमिल होती जा रही है।
कांग्रेस के नेता दावा कर रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी, असम गण परिषद और यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के अनेक नेता उनकी पार्टी में शामिल होने वाले हैं। उनका दावा गलत भी नहीं है, क्योंकि भाजपा के कुछ नेता भी कांग्रेस में शामिल हो गए हैं।
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद उसके नेता हेमंत बिस्वाल शर्मा ने पार्टी छोड़ दी थी और 9 कांग्रेसी विधायकों के साथ वे भाजपा में शामिल हो गए। उसके कारण भाजपा के स्थानीय नेताओं में बेचैनी छा गई, क्योकि उन्हें लगा कि हेमंत बिस्वाल मुख्यमंत्री बनने का दावा कर सकते हैं। उस बेचैनी को समाप्त करने के लिए भाजपा ने सर्बनंद सोनोवाल को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया।
अखिल गोगोई की कृषक मुक्ति संग्राम समिति की भूमिका भी इस चुनाव में महत्वपूर्ण साबित होगी। इस समिति ने जवाहललाल नेहरू विश्वविद्यालय के अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी के विरोध में एक बड़ा प्रदर्शन आयोजित किया था। यह सीधे चुनाव में शामिल नहीं है, लेकिन इसके नेता संकेत दे रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी को हराना उनकी प्राथमिकता है। जाहिर है, भारतीय जनता पार्टी की जीत उतनी आसान नहीं रह गई है, जितना यह कुछ समय पहले लग रही थी। (संवाद)
असम विधानसभा चुनाव: भाजपा की राह आसान नहीं
बरुण दास गुप्ता - 2016-03-17 17:44
जिन पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं, उनमें से एक असम ही ऐसा राज्य है, जहां भारतीय जनता पार्टी अपनी सरकार बनाने की उम्मीद कर रही है। पर स्थिति यहां अब उसके अनुकूल नहीं दिखाई पड़ रही है। पिछले कुछ सप्ताह में यहां बहुत कुछ बदल गया है।