काकोदकर समिति ने रेलवे में सुरक्षा-संरक्षा पर, सैम पित्रोदा समिति ने रेलवे के आधुनिकीकरण पर, मित्तल समिति ने राजस्व बढ़ाने में तेजी लाने और श्रीधरण समिति ने रेलवे को अपनी परियोजना को अफसरशाही से मुक्त करने संबंधी अपनी-अपनी रिपोर्ट्स दी हैं।
बिबेक देबरॉय समिति ने रेलवे बोर्ड के अधिकारों को सीमित करने, मानव संसाधन को सुव्यवस्थित करने और व्यवसायिक अकाउंटिंग की ओर ध्यान देने की बात अपनी रिपोर्ट में कही है।

वहीं रेल मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि रेलवे ने काकोदकर समिति की सिफारिशों को अमल में लाने की तैयारी कर ली है क्योंकि इसके लिए उसके पास पर्याप्त फंड उपलब्ध हैं। वहीं सैम पित्रोदा समिति की रिपोर्ट समेत विभिन्न संतुतियों पर कार्य जारी है जिसमें लेवल क्रॉसिंग, मानव रहित लेवल क्रॉसिंग, ट्रेक की यांत्रिक तौर पर मरम्मत करना, नई तकनीकी क्षमता वाले लोकोमोटिव का ट्रैक पर लाने, हाईस्पीड जर्मन कोच लगाने, उपनगरीय सेवाओं में कोचों को बदलने, सभी तरह की पैसेंजर ट्रेन में ग्रीन टॉयलेट लगाने, वैगन टेयर को आधुनिक बनाने, स्टेशन और ट्रेनों में पैसेंजर सुविधाओं को बढ़ाने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप को बढ़ावा देने के लिए निवेश तंत्र की खोज और सेमी हाइस्पीड और हाईस्पीड कॉरिडोर बनाने पर कार्य चल रहा है। को खत्म करना भी शामिल है। वहीं पित्रोदा समिति ने जो सिफारिशें की हैं उसे लागू करने के लिए 5.6 लाख करोड़ रूपये निवेश करने होंगे जो रेलवे के आधुनिकीकरण कार्य के लिए होगा। यही सरकार के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।

जहां तक मित्तल समिति की सिफारिशों का सवाल है रेल मंत्री ने अपने बजट भाषण में कई सिफारिशों को अमल लाने की घोषणा कर दी है। अन्य सिफारिशों की जांच और क्रियान्वयन को लेकर मंत्रालय स्तर पर मंथन जारी है। रेल मंत्रालय के सूत्रों की मानें तो यह प्रक्रिया कुछ माह में पूरी हो जाएगी और सरकार इस पर अमल करने के लिए एक समय प्रक्रिया तय कर सकती है। जहां तक श्रीधरण समिति की सिफारिशों का सवाल है वह रेलवे में आमूल चूल सुधार की बात कहता है जिसमें एक बेहतरीन कार्यकारी तंत्र बनाने और महाप्रबंधक से लेकर अन्य बड़े अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने के साथ सभी तरह के निविदाओं और व्यवसायिक निर्णय को जांचतंत्र के दायरे में लाने की बात कही गई है, मंत्रालय इस पर गहन विचार विमर्श कर रहा है।

दूसरी ओर बिबेक देबरॉय समिति की रिपोर्ट में रेलवे के आधारभूत ढांचे को मजबूत करने की बात कही गई है जल्द ही लागू की जाएंगी। रेलवे को बिबेक देबरॉय समिति की अंतिम रिपोर्ट प्राप्त हो चुकी है और उस पर क्रियान्वयन का कार्य भी चल रहा है। रेल मंत्रालय की आलसी कार्यप्रणाली ने रेलवे के उन्नयन के लिए तैयार किए गए विभिन्न सिफारिशों को लागू करने में हीला हवाली की है इससे रेलवे में समयबद्ध कार्य संस्कृति का अभाव दिखता है और यह अंतत: रेलवे के विकास में बाधक है। कहना न होगा कि रेलवे मंत्रालय की इन नीतियों का असर ही है कि वह इन सिफारिशों को लागू नहीं करने के पीछे फंड नहीं होने का तर्क देती है लेकिन रेलवे का बहुत सारा धन तुच्छ कार्यक्रमों या देरी से चल रहे निर्माण कार्य में बर्बाद हो रहा है।

यहां एक उदाहरण देकर हम रेलवे के निर्णय और प्रगति को समझ सकते हैं। यह ध्यान देने योग्य बात है कि रेलवे सुधार पर सबसे पहली सरीन समिति न े 1973 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी जिस पर अमल 1996 में देवगौड़ा सरकार द्वारा किया गया जिसके अंतर्गत छह अन्य जोन देश में खोले गए बाद में वाजपेयी सरकार ने एक और जोन की स्थापना की इस तरह देश में कुल 16 जोन बनें। अब इस उदाहरण आप स्वयं समझ सकते हैं कि रेलवे अपने विकास और सुधार को लेकर कितना जागरूक और सक्रिय है? फिलहाल हम देश के इस नाड़ी तंत्र जीवन रेखा के उन्नयन की ही कामना करते हैं, उम्मीद है रेल मंत्रालय राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए रेलवे के विकास और उन्नयन को आगे बढ़ाए।

(अंग्रेजी से अनुवाद- शशिकान्त सुशंत, पत्रकार)