जिन पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, उनमें से किसी में भी भाजपा की सरकार नहीं है। सच तो यह है कि किसी भी प्रदेश में भाजपा मुख्य विपक्षी पार्टी भी नहीं है। केरल और तमिलनाडु में तो उसका अस्तित्व तक नहीं है। पुदुचेरी का भी यही हाल है। पश्चिम बंगाल में भी उसकी उपस्थिति सिर्फ कहने को है। असम में उसे अच्छे वोट मिलते रहे हैं, लेकिन विधानसभा सीटों के लिहाज से वहां पिछली विधानसभा में बहुत पीछे थी। लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में उसे कुल 14 में से 7 सीटें हासिल हो गईं और वोट भी अन्य पार्टियों की अपेक्षा सबसे ज्यादा मिले। यही कारण है कि असम में वह सत्ता की प्रबल दावेदार बनी हुई है। दो स्थानीय पार्टियों के साथ गठबंधन कर उसने अपना दावा और मजबूत किया है।

इन चुनावों में किसी तरह के नतीजे आएंगे? इस सवाल पर अनुमानों का दौर जारी है। लेकिन जहां तक पश्चिम बंगाल की बात है, तो सभी लोग यह मान रहे हैं कि वहां ममता बनर्जी एक बार फिर सत्ता में आ रही है। वहां वाम दलों ने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर रखा है, लेकिन उनका गठबंधन ममता बनर्जी की लोकप्रियता के सामने नहीं टिक पा रहा है। पश्चिम बंगाल के लोगों ने अब विचारधारा के ऊपर व्यावहारिकता को तरजीह देना शुरू कर दिया है। ममता बनर्जी के शासनकाल में उन्हें अनेक किस्म की रियायतें मिल हैं और उनसे वहां के लोग खुश हैं। यही कारण है कि ममता बनर्जी अभी भी विजय पताका फहराती दिखाई पड़ रही है।

जो पश्चिम बंगाल के लिए सच है, वह तमिलनाडु के लिए भी सच है। वहां मुख्यमंत्री जयललिता एक बार फिर मुख्यमंत्री बनती दिखाई पड़ रही है। एमजीआर के बाद वह दूसरी ऐसी मुख्यमंत्री होंगी, जो लगातार दो बार चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री की शपथ लेगी। वहां उनके सामने कांग्रेस और डीएमके गठबंधन मुख्य मुकाबले में है, लेकिन यह गठबंधन जयललिता की लोकप्रियता के सामने कहीं टिकता नहीं दिख रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में डीएमके के साथ कांग्रेस का गठबंधन था, लेकिन उसमें गठबंधन की बहुत बुरी हार हुई थी। यह सच है कि जयललिता ने भी उस समय एक मजबूत गठबंधन बना रखा था, जो इस बार अनुपस्थित है, लेकिन इस बार जयललिता की अपनी लोकप्रियता ही उन्हें एक बार फिर मुख्यमंत्री बनाने के लिए काफी है। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने तमिलनाडु की लगभग सारी सीटे जीत ली थीं। उनके खिलाफ उनके विरोधी इस बार बुरी तरह बंटे हुए हैं। विरोधी मतों का बिखराव उनकी जीत आसान कर रहा है।

भारतीय जनता पार्टी ने बहुत कोशिश की, लेकिन तमिलनाडु की राजनीति में अपनी जगह बनाने में वह सफल नहीं हुई है।

केरल में मुकाबला बहुत भीषण है और उसके नतीजों के बारे में अनुमान लगाना कठिन है। 92 साल के वीएस अच्युतानंदन एक बार फिर विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं और सीपीएम के चेहरा वही बने हुए हैं। उन्होंने 1938 में 18 साल की उम्र में राजनीति शुरू की थी और वे छठी बार विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। उनकी लोकप्रियता के बावजूद वाम लोकतांत्रिक मोर्चा के लिए सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। (संवाद)