इन सफलताओं के बाद यह तो नहीं कहा जा सकता कि कांग्रेस अपने पुराने गौरव पाने की ओर अग्रसर है, लेकिन इतना तो तय हो गया कि कांग्रेस समाप्ति की ओर नहीं है। नरेन्द्र मोदी सरकार ने कांग्रेस को कुछ ऐसे मुददे भी थमा दिए, जिससे लगने लगा कि कांग्रेस की वापसी एक बार फिर संभव है। खुद मोदी की सरकार जन आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतर रही है। लोकसभा चुनाव के पहले नरेन्द्र मोदी ने लोगों की आकांक्षाएं बहुत ज्यादा बढ़ा दी थी। खुद नरेन्द्र मोदी की छवि एक सुपरमैन की बन गई थी और देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को लग रहा था कि श्री मोदी देश की अनेक समस्याओं को हाथ लगाते समाप्त कर देंगे। लेकिन वैसा कुछ हुआ नहीं। और इसके कारण कांग्रेस एक बार फिर केन्द्र के शासन में आने की सोच रही है। वह अपने बूते सत्ता में आ जाएगी, ऐसा तो वह सोच नहीं सकती, लेकिन 2019 के बाद भाजपा विरोधी गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने की अनेक कांग्रेसी जरूर सोच रहे हैं।
कांग्रेस मुक्त भारत का नारा एक प्रभावशाली नारा साबित हुआ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की अनेक समस्याओं को कांग्रेस के वजूद से जोड़कर लोगों के सामने पेश किया और देश की आबादी के एक हिस्से को यह समझाने में सफल रहे कि कांग्रेस के कारण ही देश की अनेक समस्याएं है और उसकी समाप्ति के साथ ही वे समस्याएं भी समाप्त हो जाएंगी। अब उसी तर्ज पर बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने संघ मुक्त भारत का नारा दे दिया है।
एक नारा के रूप में यह भी एक शक्तिशाली नारा है। संघ देश की एक बड़ी आबादी के सामने एक खूंखार संगठन की छवि रखता है। देश की आबादी का करीब 20 फीसदी हिस्सा अल्पसंख्यकों का है। वे संघ के हिन्दुत्ववाद से डरे हुए रहते हैं। देश की 80 फीसदी ह्रिंदू आबादी का बहुमत भी संघ के हिन्दुत्व को संदेह की दृष्टि से देखता है। यह सिद्ध बात तो नहीं हैं, लेकिन गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को भी अधिकांश लोग संघी ही मानते हैं। अंबेडकर के हिन्दु विरोधी दर्शन को मानने वाले लोग भी संघ को देश के लिए खतरनाक मानते हैं। कम्युनिस्टों और संघियों के बीच में तो हमेशा से 36 का आंकड़ा रहा है और गौर करने लायक बात यह है कि भारत में कम्युनिस्ट और आरएसएस की स्थापना एक ही साल 1925 में हुई थी। आरएसएस के संस्थापको में से एक हेडगेवर और कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापकों में से एक एम एन राय एक साथ कभी अनुशीलन समिति में हुआ करते थे और अरबिन्दों घोष को दोनों अपना गुरु माना करते थे।
तो सच्चाई यही है कि देश की प्रबुद्ध आबादी का एक बड़ा हिस्सा हमेशा से संघ के खिलाफ रहा है। आजाद भारत में आरएसएस पर तीन बार प्रतिबंध भी लग चुके हैं। पहली बार इसे प्रतिबंधित सरदार पटेल ने किया था। वह प्रतिबंध गांधी की हत्या का बाद लगाया गया था। संघ भारतीय संविधान को मानने से इनकार कर रहा था और भारत के तिरंगे को भी राष्ट्रध्वज मानने से इनकार कर रहा था। जब संघ ने भारत के संविधान और राष्ट्रीय घ्वज तिरंगे में आस्था व्यक्त की, तो उस पर लगा प्रतिबंध हटा दिया गया। शायद उस समय तक सरकार को पता चल गया था कि नाथूराम गोडसे आरएसएस का सदस्य नहीं था। लिहाजा संघ पर से प्रतिबंध हटा दिया गया।
दूसरी बार संघ पर आपातकाल के दौरान प्रतिबंध लगाया गया। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में जनता पार्टी की सरकार बनी, जिसमें सघ की राजनैतिक शाखा भारतीय जनसंघ ( भारतीय जनता पार्टी का मूल नाम) भी शामिल थी। इसलिए जनता पार्टी की सरकार ने संघ पर इन्दिरा सरकार द्वारा लगाया गया प्रतिबंध हटा दिया।
तीसरी बार आरएसएस को नरसिंहराव सरकार ने प्रतिबंधित किया। वह प्रतिबंध बाबरी मस्जिद के विघ्वंस के बाद लगाया गया था। लेकिन अदालत ने सरकार के उन निर्णय को खारिज कर दिया और इस तरह संघ एक बार फिर प्रतिबंधमुक्त हो गया।
यानी अतीत में तीन बार भारत को संघ मुक्त बनाने की कोशिश की गई, लेकिन भारत संघ मुक्त नही हुआ। अब नीतीश कुमार कह रहे हैं कि हमें ऐसा करना है। सवाल उठता है कि आखिर वे ऐसा क्यों कह रहे हैं? इसका एक कारण तो यह हो सकता है कि वे इस बात को पूरी तरह नकारने की कोशिश कर रहे हैं कि वे फिर कभी भारतीय जनता पार्टी से नाता जोड़ सकते हैं। लालू के साथ नीतीश के रिश्ते बहुत खराब होने की स्थिति में, कुछ लोग अंदाज लगा रहे हैं, नीतीश भाजपा के साथ गठजोड़ कर अपनी सरकार कायम रख सकते हैं। नीतीश इस तरह की अटकलबाजी को समाप्त करना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने संघ के खिलाफ बहुत ही कड़ा बयान दिया है।
दूसरा कारण यह है कि नीतीश कुमार अब राष्ट्रीय राजनीति में सीधे तौर पर दस्तक दे रहे हैं। वे अपने दल का अध्यक्ष बन चुके हैं और केन्द की राजनीति में सीधे शामिल हो रहे हैं। इसके लिए संघ मुक्त भारत के नारे से बेहतर नारा उनके लिए और क्या हो सकता है? नीतीश की पार्टी का जनाधार बिहार तक सीमित है, लेकिल संघ पर सीधे और कठोर हमले कर वे देश भर के संघ विरोधियों का विश्वास हासिल करने में सफल हो सकते हैं।
तीसरा कारण यह है कि संघ की अब अपना जनाधार दलितों और ओबीसी में फैलाने की कोशिश कर रहा है। जहां कहीं भाजपा की जीत होती है, तो उसका मुख्य कारण ओबीसी का वोट होता है, लेकिन सत्ता में ओबीसी को साझेदारी नहीं दी जाती। नीतीश कुमार संघ मुक्त भारत का नारा देकर ओबीसी की बड़ी आबादी को उससे सचेत करने अभियान भी चला सकते हैं। (संवाद)
कांग्रेस मुक्त भारत के बाद संघ मुक्त भारत
आखिर क्या चाहते हैं नीतीश कुमार
उपेन्द्र प्रसाद - 2016-04-19 12:14
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लोकसभा चुनाव के पहले से ही कांग्रेस मुक्त भारत की बात कर रहे हैं। उनके कहने का मतलब है कि भारत में कांग्रेस पार्टी का वजूद ही समाप्त कर दिया जाय। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई और यह लगने लगा कि कहीं वास्तव में कांग्रेस समाप्ति की ओर तो नहीं बढ़़ रही है। पर एक के बाद एक हार का सामना करने के बाद अब कांग्रेसियों में विश्वास पैदा हो रहा है। बिहार के चुनाव में उसे अच्छी सीटें मिलीं। झबुआ-रतलाम लोकसभा की सीट भी एक उपचुनाव में उसे मिली। गुजरात के स्थानीय निकायों के चुनाव में भी उसे पहले से ज्यादा सफलता मिली।