मुकुन्दन की वापसी का पार्टी के अंदर जबर्दस्त विरोध हो रहा था, लेकिन केन्द्रीय नेतृत्व को लगा कि उनके पार्टी में आ जाने से संगठन में जान आ जाएगी। लेकिन वैसा कुछ हुआ नहीं। उलटे उसके कारण पार्टी के अंदर की दरार और चैड़ी हो गई है।

सबसे पहले तो पार्टी में उन्हें फिर से शामिल किए जाने पर उनका सूखे गले से स्वागत किया गया। उनकी वापसी के समारोह में पार्टी के कोई बड़े नेता उपस्थित नहीं थे। एक तरह से उस समारोह का उन लोगों ने पूरी तरह से बहिष्कार किया।

यह किसी से छिपा हुआ तथ्य नहीं है कि प्रदेश भाजपा का एक गुट अभी भी मुकुन्दन के प्रति शत्रुतापूर्ण रुख रखता है। हालांकि उन लोगांे ने उनके खिलाफ खुली बगावत नहीं की है, क्योंकि वे केन्द्रीय नेतृत्व को नाराज नहीं करना चाहते। पार्टी के प्रादेशिक नेताओं ने समारोह मंे अपनी अनुपस्थिति के लिए कहीं और व्यस्त होने के बहाने बनाए।

मुकुन्दन को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का पूर्ण समर्थन प्राप्त है, लेकिन जिस तरह से प्रदेश के नेताओं ने उनकी वापसी के प्रति उदासीनता दिखाई है, उससे साफ है कि पार्टी के अंदर उनके लिए काम करना आसान नहीं है।

मुकुन्दन का यह मामला अपने आप में अकेला मामला नहीं है। उनके पहले के रमन पिल्लै ने भी पार्टी की सदस्यता फिर से प्राप्त की थी। उनकी पार्टी में वापसी का भी स्वागत नहीं किया गया, जबकि उनको पार्टी मंे फिर से लाने का काम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का ही था।

मुकुन्दन के पार्टी में वापस आने पर जिस तरह का स्वागत बयान पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राजशेखरन ने दिया, उससे भी स्थिति साफ हो जाती है। प्रदेश पार्टी अध्यक्ष ने कहा कि मुकुन्दन की पार्टी में वापसी बिना किसी शर्त की हुई है और वे पार्टी के अंदर एक सामान्य सदस्य के रूप में रहेंगे। मुकुन्दन के लिए संदेश स्पष्ट था। संदेश था कि वे पार्टी के अंदर किसी पद की उम्मीद न करें।

प्रदेश पार्टी अध्यक्ष मुकुन्दन के प्रति चाहे जैसे रुख अपनाएं, लेकिन यह एक तथ्य है कि प्रदेश के संघ कार्यकत्र्ताओं और पार्टी सदस्यों के बीच मुकुन्दन की लोकप्रियता का ग्राफ बहुत ऊपर है। केन्द्रीय नेताओं ने उनकी सेवा इसलिए लेनी चाही है, क्योंकि उनकी सांगठनिक क्षमता पर उन्हें पूरा भरोसा है और इसके अलावा उनकी ईसाइयों के अलग अलग पंथों पर अच्छी पकड़ है। दक्षिण केरल में पार्टी की स्थिति बेहतर करने के लिए ईसाइयों के बीच पार्टी अपनी पहुंच बढ़ाना चाहती है। लेकिन ईसाइयों के बीच जिस तरह की प्रतिक्रिया मुकुन्दन के भाजपा में शामिल होने के बाद दिखाई पड़ रही है, उससे तो यह पता चलता है कि उन्हें ईसाइयों का समर्थन भाजपा को दिलाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ेगी।

सच कहा जाय, तो संघ और भाजपा के अंदर मुकुन्दन की जो अपार लोकप्रियता है, उसके कारण ही पार्टी के अंदर उनका पतन हो गया था और उसके कारण ही उन्हें पार्टी छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा था।

अमित शाह को लगता है कि मुकुन्दन को पार्टी में फिर से वापस लेने से पार्टी नायरों के बीच अपनी स्थिति सुधार लेगी, लेकिन नायरों की प्रतिक्रिया भी बहुत अनुकूल नहीं रही है। (संवाद)