तमिलनाडु की राजनीति में स्टालिन महत्वपूर्ण हैं। उनका भविष्य क्या है, इसका पता विधानसभा चुनाव के बाद ही लगेगा। करुणानिधि ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर रखा है, लेकिन विधानसभा चुनाव के पहले वे कदम फूंक फूंक कर रख रहे हैं और ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहते, जिससे पार्टी में फूट उभरने लगे। यही कारण है कि वे खुद ही मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बने हुए हैं। हालांकि स्टालिन के समर्थक चाहते थे कि उन्हें ही पार्टी अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाकर पेश करे। लेकिन स्टालिन जयललिता की बराबरी नहीं कर सकती। यही कारण है कि करुणानिधि ने खुद को ही मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश करना ठीक समझा।
2009 में करूणानिधि ने स्टालिन को उपमुख्यमंत्री बना दिया था। उस समय तक वे निर्विवाद रूप से पार्टी के दूसरे नंबर के नेता थे, लेकिन उसके बाद उनके बड़े भाई अडागिरी और बहन कनिमोरी ने राजनीति में प्रवेश किया। इसके कारण उनको परिवार के अंदर से ही चुनौतियां मिलने लगीं। अडागिरी और कनिमोरी स्टालिन की जगह खुद को करूणानिधि का उत्तराधिकारी समझते हैं। इस समय अडागिरी तो रेस से बाहर हो गए हैं और कनिमोरी ने स्टालिन के साथ समझौता कर लिया है। यही कारण है कि व्यावहारिक रूप से स्टालिन ने पार्टी को अपने नियंत्रण में ले रखा है।
लेकिन कटु सत्य यह है कि आज जयललिता तमिलनाडु की राजनीति में बहुत मजबूत हैं और डीएमके-कांग्रेस गठबंधन के लिए उन्हें पराजित करना आसान नहीं है। कल्याणकारी कार्यक्रम चलाने में जयललिता ने करुणानिधि को बहुत पीछे छोड़ दिया है। तमिलनाडु ने उनके सभी राजनैतिक नारों पर भी कब्जा कर रखा है।
करुणानिधि के बाद डीएमके का क्या होगा, इसके लिए लोग अभी से अटकलबाजी कर रहे हैं और अधिकांश लोगों को तो लगता है कि उसके बाद डीएमके का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। उसके बाद पार्टी में विभाजन की स्थिति पैदा हो सकती है। पिछले 6 दशकों से करुणानिधि तमिलनाडु की राजनीति में केन्द्रीय भूमिका में रहे हैं। वे कभी प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं, तो कभी विधानसभा में विपक्ष के नेता।
इस सप्ताह एक खबर थी कि राहुल गांधी 2016 में ही कांग्रेस के अध्यक्ष बन जाएंगे। जब से राहुल गांधी पार्टी के उपाध्यक्ष बने हैं, तब से ही उनके कांग्रेस अध्यक्ष बनने की इस तरह की खबरें आती रहती हैं, लेकिन वे सभी बारी बारी से गलत साबित होती रहती हैं। हालांकि सोनिया गांधी ने अब बहुत कुछ राहुल गांधी को सौंप दिया है, लेकिन अध्यक्ष के पद पर अभी भी वे बनी हुई हैं।
जहां तक सुखबीर बादल का सवाल है, तो वे सरकार और संगठन दोनों पर पूरी तरह हावी हैं, लेकिन लोगों के बीच में चुनावी दृष्टि से उनके पिता की प्रासंगिक हैं। यही कारण है कि उनके पिता ही आगामी चुनाव में दल की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। (संवाद)
पार्टियां अभी भी पुराने नेताओं पर निर्भर
स्टालिन, सुखबीर और राहुल अभी भी प्रतीक्षालय में
कल्याणी शंकर - 2016-05-06 11:47
ब्रिटेन केेेे प्रिंस चाल्र्स, राहुल गांधी, डीएमके के स्टालिन और पंजाब के उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल में क्या चीज काॅमन है? वे सभी के सभी अपने पिता या माता से विरासत प्राप्त करने के लिए इंतजार कर रहे हैं। उनमें से कुछ तो बहुत ही बेचैनी से इंतजार कर रहे हैं, जबकि राहुल गांधी झिझक के साथ उस तरह का इंतजार कर रहे हैं। ब्रिटेन की रानी की उम्र 90 साल की हो गई है और उनके बेटे प्रिंस चाल्र्स पिछले कई दशकों से राजा बनने की चाह में आस लगाए बैठे हैं। करुणानिधि 94 साल के हैं, लेकिन वे अभी भी अपनी पार्टी के अध्यक्ष बने हुए हैं और तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में वे ही अपनी पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं। उनके बेटे स्टालिन को अभी भी अपने पिता की जगह लेने के लिए इंतजार करना पड़ रहा है। वही हाल पंजाब के उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल का है। उनके पिता प्रकाश सिंह बादल 87 साल के हो गए हैं, लेकिन अभी भी पार्टी प्रमुख वे ही हैं और उनके नेतृत्व में ही उनका दल पंजाब विधानसभा का चुनाव लड़ने की इच्छा जता चुका है।