पर 15 मई को हुए 13 नगर निगम पार्षदों के उपचुनावों के नतीजे ने दिखा दिया है कि केजरीवाल हमेशा जीतते रहने के प्रति आश्वस्त नहीं रह सकते हैं। उनकी पार्टी पहली बार नगर निगम का चुनाव लड़ रही थी। सभी 13 सीटों पर उसके उम्मीदवार थे, पर जीत हुई मात्र 5 सीटों पर। इससे भी ज्यादा खराब बात यह रही है कि जिन 8 सीटों पर उनकी पार्टी हारी, उनमें से मात्र 3 पर ही उसके उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे।

जाहिर है, आम आदमी पार्टी का बुखार उतरता नजर आ रहा है। और इसका फायदा कांग्रेस को हो रहा है। कांग्रेस के 4 उम्मीदवारों की जीत हुई और उसका एक विद्रोही उम्मीदवार भी विजयी हुआ है, जिसने दुबारा पार्टी में शामिल होने की घोषणा कर दी है।

आम आदमी पार्टी का उदय कांग्रेस के मतों की शिफ्टिंग से हुआ था। उसके जनाधार को आम आदमी पार्टी ने अपनी ओर खींच लिया है। इसके कारण उसका सूफड़ा दिल्ली से साफ हो गया। इसके कारण पिछले विधानसभा चुनाव में उसके एक भी विधायक नहीं जीत सके थे। अब जब आम आदमी पार्टी का ग्राफ गिर रहा है, तो स्वाभाविक है कि कांग्रेस का ग्राफ उठता दिखाई पड़ रहा है।

इन उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी को भी निराशा का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी को लग रहा था कि कांग्रेस का देश में सफाया हो रहा है। दिल्ली देश की राजधानी है और उसे लग रहा था कि दिल्ली से कांग्रेस साफ हो चुकी है, लेकिन दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी से बेहतर प्रदर्शन कांग्रेस का ही रहा।

जाहिर है, आम आदमी पार्टी की हार से भारतीय जनता पार्टी केा जो खुशी हो सकती है, उसे कांग्रेस ने उससे छीन लिया है। तितरफा मुकाबले में जो पार्टी तीसरे स्थान पर होती है, उसके बारे में खराब मनोवैज्ञानिक संदेश मतदाताओं के बीच जाते हैं। इसके कारण सत्तारूढ़ पार्टी से मोहभंग का फायदा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी को मिलता है।

सवाल उठता है कि आखिर ऐसा हुआ क्यों? भारतीय जनता पार्टी पिछले लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी सातों सीटों पर विजयी रही थी और पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी से पराजित होने के बावजूद दूसरे नंबर की पार्टी भी यही थी। लेकिन उपचुनावों में यह तीसरे नंबर की पार्टी क्यों बन गई?

इसका एक कारण तो यह है कि नरेन्द्र मोदी का जादू अब दिल्ली की जनता पर नहीं चल रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में ही यह स्पष्ट हो गया था कि नरेन्द्र मोदी का जादू अब दिल्ली की जनता पर नहीं चलता। लेकिन कुछ लोग उसे अस्थाई बता रहे थे। पर उपचुनावों में जाहिर हो गया है कि अब नरेन्द्र मोदी को जनता का विश्वास जीतने के लिए भाषणों पर भरोसा कम कर देना चाहिए और उपलब्धियों के साथ जनता के बीच में जाना चाहिए।

दूसरा कारण पिछले दिनों जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में और उसके बाद की घटनाएं हो सकती हैं। कन्हैया के साथ जो किया गया, लगता है कि दिल्ली की जनता ने उसे पसंद नहीं किया। कारण चाहे जो भी हो, आम आदमी पार्टी के साथ साथ भारतीय जनता पार्टी भी चुनाव नतीजों को लेकर सदमे में है।(संवाद)