कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व भी हेमंत बिस्व शर्मा के महत्व को समझने में विफल रहा। वे कांग्रेस की हार का कारण बन सकते हैं, इसका अनुमान कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व नहीं लगा सका। यदि हेमंत की मांगों के प्रति कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व संवेदनशील होता, तो असम में कांग्रेस को ऐसे दिन देखने को नहीं मिलते।
राहुल गांधी की जिम्मेदारी सबसे ज्यादा थी। हेमंत शर्मा की शिकायत को उन्होंने सुनने तक से इनकार कर दिया था। उसके बाद हेमंत ने पार्टी ही छोड़ दी और वे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। लेकिन राहुल गांधी को उनका महत्व समझ में नहीं आया। इससे पता चलता है कि कांग्रेस का नेतृत्व पार्टी की गतिविधियों से कितना कटा कटा सा रहता है।
भारतीय जनता पार्टी चुनाव तो जीत गई, लेकिन सवाल यह भी है कि क्या सर्बानंद सोनोवाल हेमंत शर्मा को कैसे संभालते हैं। इसका कारण यह है कि सोनावाल बेहद महत्वाकांक्षी है। लेकिन यह भविष्य की बात है। फिलहाल तो कांग्रेस को असम में करारा झटका लगा है। असम में ही नहीं, केरल से भी उसकी सरकार चली गई है। बंगाल में वह लगातार विपक्ष में हैं और तमिलनाडु में डीएमके के साथ मिलकर चुनाव जीतने का उसका सपना मिट्टी में मिल गया है। वह पिछले कुछ सालों से एक के बाद एक चुनाव हारती जा रही है। 2013 में हुए विधानसभा चुनावों में भी वह हारी थी। उसके हाथ से उस साल दिल्ली और राजस्थान निकल गये थे। मध्यप्रदेश और छत्तीस गढ़ में भी उसकी हार हो गई थी।
2014 के लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस को बहुत ही शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था। उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में भी वह एक के बाद एक हारती चली गई। उसे हरियाणा खोया और महाराष्ट्र गंवाया। उसके बाद झारखंड के चुनाव में भी उसकी दुर्गति हो गई। पिछले साल 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में तो उसे एक भी सीट नहीं मिली। बिहार में लालू और नीतीश की सहायता से कुछ सीटें जीतने के बाद उसके केन्द्रीय नेताओं के चेहरे पर कुछ मुस्कान आई थी, लेकिन पिछले चुनाव नतीजों ने उनसे वह मुस्कान भी छीन ली।
भारतीय जनता पार्टी ने पूर्वाेत्तर में तो जीत हासिल कर ली है, लेकिन उसके मुख्य क्षेत्र में उसकी चुनौती कम नहीं हुई है। दिल्ली में वह अभी भी पराजित है। स्थानीय निकायों के कुछ उपचुनावों में वह आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बाद तीसरे नंबर पर रही। बिहार में उसकी करारी हार हो चुकी है और उत्तर प्रदेश में भी उसकी स्थिति बदतर बनी हुई है।
असम के अलावा अन्य राज्यों के नतीजे भी उम्मीदों के अनुसार ही आए हैं। पश्चिम बंगाल में ममता की स्थिति मजबूत बनी हुई थी और उनकी वापसी को लेकर बहुत कम लोग ही आशंकित थे। केरल में वही पुराना पैटर्न दोहरा दिया गया है। तमिलनाडु में जयललिता की स्थिति मजबूत थी और पुदुचेरी में कांग्रेस की सरकार बनने के अनुमान पहले से ही लगाए जा रहे थे। (संवाद)
असम की जीत से भाजपा का मनोबल बढ़ा
कांग्रेस की हार से नेतृत्व को झटका
अमूल्य गांगुली - 2016-05-21 10:03
असम में भारतीय जनता पार्टी की जीत आश्चर्यजनक नहीं है, क्योंकि इसकी पहले से ही उम्मीद की जा रही थी। लेकिन इस जीत ने भारतीय जनता पार्टी की उस इच्छा को पूरा कर लिया है, जिसके लिए वह लंबे समय से इंतजार कर रही थी। तरुण गोगोई भारतीय जनता पार्टी की इस इच्छा को पिछले 15 साल से पूरा नहीं होने दे रहे थे। लेकिन जब गोगाई ने हेमंत बिस्व शर्मा के साथ गलत व्यवहार किया तो भारतीय जनता पार्टी को मौका मिल गया और वह सत्ता में आ गई।