93 साल के करुणानिधि कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सरकार मे एक बार फिर वापसी करने की उम्मीद पाले हुए थे। वे इसके प्रति बहुत ही ज्यादा आशान्वित थे और उन्हें लग रहा था कि वे एक बार फिर मुख्यमंत्री बन कर ही रहेंगे। लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हुई।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मतगणना समाप्त होने के पहले ही जयललिता को जीत के लिए बधाई दे डाली, हालांकि चुनाव प्रचार के दौरान वे जयललिता और करुणानिधि दोनों पर बरस रहे थे और कह रहे थे कि दोनों भ्रष्ट हैं। भ्रष्टाचार मुक्त सरकार के लिए वे लोगों से भाजपा को जीत दिलाने की अपील कर रहे थे। हालांकि वैसा कहते समय वे दोनों मे से किसी भी नेता का नाम नहीं ले रहे थे।
1984 के बाद जयललिता पहली ऐसी नेता बनी, जो दो कार्यकाल लगातार मुख्यमंत्री बन रही हैं। दो बार लगातार मुख्यमंत्री बनने का पहला रिकार्ड भी जयललिता के गुरू एमजी रामचन्द्रन ने बनाया था।
डीएमके गठबंधन सभी सीटों पर चुनाव लड़ रहा था। 176 सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार थे। 41 पर कांग्रेस लड़ रही थी वे शेष सीटों पर कुछ छोटी जिला स्तरीय पार्टियां चुनाव लड़ रही थीं।
करुणानिधि ने जयललिता की ताकत को कम करके आंका और अस्वस्थ होने के बावजूद खुद मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनकर एक बड़ी गलती कर दी। वे चुनाव प्रचार को गति देने के लिए शारीरिक रूप से बहुत सक्षम भी नहीं थे। उसके बावजूद वे छठी बार मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे थे।
चुनाव प्रचार की शुरूआत में ही उन्होंने बड़े बड़े वायदे करने शुरू कर दिए थे। शराब बंदी की भी वे घोषणा कर रहे थे। शारीरिक रूप से अक्षम होने के बावजूद वे चुनावी अभियान में सक्रिय थे और उनके पुत्र स्टालिन ने भी पूरे जोर शोर से प्रचार का काम किया था।
करुणानिधि ने यह भी संकेत दिया था कि सही समय देखकर वे स्टालिन को सत्ता सौंप देंगे। वे जयललिता विरोधी मतों पर भरोसा कर रहे थे और उन्हें लग रहा था कि जो जया के विरोधी हो गए हैं, वे अपना मत उन्हें ही देंगे।
लेकिन एक और तथ्य है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। डीएमके गठबंधन को 100 से ज्यादा सीटें मिल गई हैं। यह भी अपने आपमें छोटी उपलब्धि नहीं है। पिछले चुनाव मंे डीएमके को सिर्फ 23 सीटें ही मिली थीं। दूसरी तरफ जयललिता की 20 सीटें घट गई हें। इस चुनाव में मिला आधार स्टालिन की भविष्य की राजनीति के लिए काम आएगा।
जयललिता सत्ता में तो आ गई है, लेकिन उनके साथ विधानसभा में मजबूत विपक्ष भी उपस्थित रहेगा। जाहिर है, जया का काम पहले की तरह आसान नहीं रहेगा।
जब जयललिता की पार्टी को 118 सीटें आ गईं, तो उन्होंने अपनी जीत की घोषणा कर दी और कहा कि तमिलनाडु ने परिवार के शासन को नकार दिया है।
छह पार्टियों के तीसरे मोर्चे को भारी निराशा का सामना करना पड़ा है। इसके नेता और मुख्यमंत्री उम्मीदवार विजयकांत खुद अपना चुनाव हार गए। उसी तरह पीएमके को भी भारी निराशा हुई हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री अम्बुमणि रामदाॅस भी चुनाव हो गए। उनकी पार्टी ने उन्हें ही अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर रखा था। (संवाद)
तमिलनाडु में एक बार फिर जया
करुणा की उम्मीदों पर पानी फिरा
एस सेतुरमन - 2016-05-23 13:36
एक्जिट पोल सर्वे की रिपोर्ट को गलत साबित करती हुई जयललिता एक बार फिर तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बन गई है। ऐसा करके उन्हांेने एक इतिहास बना लिया है, क्योंकि पिछले दशकों से तमिलनाडु में किसी नेता ने लगातार दो बार मुख्यमंत्री का पदभार नहीं संभाला।