अगले साल के शुरुआती महीनों मंे जिन पांच राज्यों के चुनाव होने जा रहे हैं, वे हैं गोवा, पंजाब, उत्तराखंड मणिपुर और उत्तर प्रदेश। उनमें से दो राज्यों- उत्तराखंड और मणिपुर- मणिपुर में कांग्रेस की सरकारें हैं, जबकि गोवा में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। पंजाब में प्रकाश सिंह बादल की सरकार है, जिसमें भारतीय जनता पार्टी भी शामिल है।

लेकिन इन पांचों में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव है। वह चुनाव देश की राजनीति का भविष्य तय करने वाला है और भारतीय जनता पार्टी के लिए काफी महत्व रखता है। वहां से देश की लोकसभा में 80 सांसद चुनकर जाते हैं और केन्इ्र सरकार के गठन में यहां की काफी बउ़ी भूमिका होती है। आज यदि मोदी सरकार आरामदेह बहुमत में है, तो उसका सबसे बड़ा कारण यही है कि भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दल के वहां 80 में से 73 सीटें मिल गई हैं। 71 सीटें तो खुद भारतीय जनता पार्टी के पास में ही है।

लेकिन भाजपा की विडंबना यह है कि उत्तर प्रदेश की विधानसभा में उसकी उपस्थिति बहुत कमजोर है। उसके पास वहां महज सीटें हैं। उसकी इतनी ही सीटों पर जीत हुई थी और बाद में हुए उपचुनावों के बाद आज वास्तविक सीट उसके पास उतनी भी नहीं है। भारतीय जनता पार्टी की गिनती वहां की दो सबसे मजबूत पार्टियों में नहीं होती, जबकि वहां लोकसभा की 90 फीसदी से भी ज्यादा पर उसी का कब्जा है।

कहने की जरूरत नहीं कि वहां भाजपा बेहद कमजोर है और लोकसभा की उसकी जीत सिर्फ मोदी मैजिक के कारण हुई थी। उपचुनावों में मोदी मैजिक काम नहीं कर रहा है। इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि विधानसभा के आमचुनाव में मोदी मैजिक वहां दिखता भी है या नहीं।
वैसे लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में काफी अंतर होता है। लोकसभा के चुनाव के मुद्दे अलग होते हैं, जबकि विधानसभा के चुनाव के मुद्दे बिलकुल अलग। इसमें स्थानीय मुद्दे हावी रहते हैं। उत्तर प्रदेश की दो सबसे मजबूत पार्टियां समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ही हे। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बहुजन समाज पार्टी लोकसभा के चुनाव में अपना खाता भी खोल नहीं पाई थी और समाजवादी पार्टी के वे सारे उम्मीदवार जो मुलायम सिंह यादव के परिवार के नहीं थे, चुनाव हार गए थे।

आज भी बहुजन समाज पार्टी काफी मजबूत है और उसके पास एक ठोस जनाधार है। यही बात मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के साथ भी लागू होती है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के पास ठोस जनाधार नहीं है। उसे नरेन्द्र मोदी के मैजिक के भरोसे रहना है, लेकिन यह मैजिक विधानसभा चुनाव में कितना काम करता है, इसे लेकर अनेक लोगों को अभी से संदेह हो रहा है, क्योंकि मोदी मैजिक न तो पड़ोसी दिल्ली में काम कर पाया और न ही पड़ोसी बिहार में।

पर असम की जीत से भाजपा उत्साहित है और उससे सीख लेते हुए वह यहां एक स्थानीय नेता को सामने रखकर चुनाव लड़ना चाह रही है। उसने केशव प्रसाद मौर्य को अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। श्री मौर्य ओबीसी हैं और उनके द्वारा भारतीय जनता पार्टी ओबीसी के मतदाताओं को आकर्षित करना चाहती है। राम मंदिर के मुद्दे को भी वह अपना केन्द्रीय चुनावी मुद्दा बनाने की ओर बढ़ रही है। (संवाद)