उन सबके सामने एक काॅमन चुनौती संसाधन जुटाने की है, क्योंकि उन लोगों ने चुनाव पूर्व जो वायदे किए थे, उन्हें पूरा करने पर काफी खर्च होंगे। मतदाता अब फौरी नतीजा चाहते हैं। ममता बनर्जी और जयललिता के लिए तो चुनौतियां और भी कठिन हैं, क्योंकि दोनों की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं हैं। सोनोवाल के अलावा अन्य गैरभाजपाई मुख्यमंत्री हैं।
ममता बनर्जी के लिए जीत की भारी मार्जिन बहुत ही खुशी देने वाला रहा होगा, लेकिन उसके साथ ही लोगो की उनसे आशाएं बहुत ज्यादा होंगी। ममता बनर्जी के लिए सबसे बड़ी चुनौती बड़े राजकोषीय बोझ से सामना करना होगा। पिछले कई सालों से पश्चिम बंगाल सरकार कर्ज के बोझ से दबी हुई है। वह इस बोझ से उबरने के लिए केन्द्र से विशेष सहायता की मांग करती रही हैं, लेकिन उन्हें अबतक सफलता हासिल नहीं हो सकी है। पश्चिम बंगाल के वित्तमंत्री अमित मित्र के अनुसार पश्चिम बंगाल सरकार पर कर्ज अब बढ़कर 3 लाख 34 हजार करोड़ रुपये का हो गया है। 2011 के मई महीने में जब ममता बनर्जी की सरकार बनी थी, तो उस समय कर्ज 2 लाख करोड़ रुपये का था। कर्ज की वापसी के कारण पश्चिम बंगाल के राजकोष पर जबर्दस्त असर पड़ता रहेगा। सवाल यह है कि उन्होंने प्रदेश की जनता से जो वायदे किए हैं, उनके लिए पैसा कहां से आएगा?
ममता बनर्जी की दूसरी चुनौती पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्रोतों से निवेश आकर्षित करना है। पिछले साल पश्चिम बंगाल में ग्लोबल निवेशक सम्मेलन हुआ, लेकिन उसका फाॅलो अप किया जाना अभी बाकी है। अर्थव्यवस्था को भी मजबूत किए जाने की जरूरत है। उन्हें इस बात का भी ध्यान रखना है कि कांग्रेस और वाम पार्टियां 2019 तक पश्चिम बंगाल में पस्त हालत में ही पड़ी रहें और उनके लिए चुनौती नहीं बन पाएं, ताकि 2019 के लोकसभा चुनाव में वह कह सकें कि उनका प्रदेश मंे कोई अन्य विकल्प नहीं है। उन्हें उन मंत्रियों, विधायकों व अन्य तृणमूल नेताओं के खिलाफ कार्रवाई भी करनी है, जिनके नाम अनेक घोटालों से जुड़ रहे हैं। जहां तक कानूनी पक्ष का मामला है, तो वे घोटाले अभी भी अपनी जगह पर मौजूद हैं।
जयललिता को भी अपने बड़े बड़े वायदों को पूरा करना है। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने वे वायदे किए थे। सत्ता में आने के साथ ही उन्होंने किसानों द्वारा सहकारी बैंको से लिए गए कृषि कर्ज को माफ कर दिया। इससे उनकी सरकार पर 5780 करोड़ रुपये का बोझ पड़ रहा है। उनका दूसरा निर्णय प्रदेश के सभी घरों में 100 यूनिट तक बिजली का बिल माफ कर दिया जाना था। इससे उनकी सरकार पर 1607 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। उन्होंने सरकार द्वारा चलाए जा रहे शराब के 500 दुकानो को भी बंद कर दिया और बार का समय भी कम कर दिया। विधानसभा में जयललिता को मजबूत विपक्ष का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि डीएमके के विधायकों की संख्या इस बार पिछली विधानसभा की तुलना में बहुत ज्यादा है। कांग्रेस के विधायकों की संख्या भी इस बार ज्यादा हो गई है। (संवाद)
जयललिता और ममता के सामने कठिन चुनौतियां
लोगों को तेज विकास चाहिए
कल्याणी शंकर - 2016-06-03 17:43
नवनिर्वाचित मुख्यमंत्रियों के शपथग्रहण के बाद आम चुनाव के बाद उपजी उत्तेजना अब समाप्त हो गई है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और तमिलनाडु में जयललिता ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज कर फिर से मुख्यमंत्री बन गई हें। अन्य तीन पहली बार मुख्यमंत्री बने हैं। असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल के लिए अपना मुख्यमंत्री कार्यकाल परीक्षा की घड़ी होगी। केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन को लाल झंडे को ऊंचा बनाए रखना है। पुदुचेरी के मुख्यमंत्री वी नारायणस्वामी के सामने तो अपनी पार्टी के लिए कुछ अच्छा कर गुजरने की चुनौती है, क्योंकि उनकी पार्टी कांग्रेस आज आइसीयू में है।