लेकिन मई में हुए निकले विधानसभा चुनाव के नतीजों ने उन कांग्रेसियों को निराश किया है। केरल ही नहीं, असम में भी कांग्रेस की हार हुई है और वह हार कोई छोटी मोटी हार नहीं है, बल्कि बहुत बड़ी हार है। चुनाव के नतीजे उम्मीदों के अनुरूप नहीं होने के बावजूद ’राहुल को कांग्रेस अध्यक्ष बनाओ’ अभियान एक बार फिर शुरू हो गया है। कभी राहुल से नाराज रहने वाले कैप्टन अमरींदर सिंह भी इसकी मांग कर रहे हैं और इशारों और इशारों में दिग्विजय सिंह भी इसकी मांग कर रहे हैं। राहुल गांधी के दोस्त उमर अब्दुल्ला भी इस अभियान में शामिल हो गए हैं।
लेकिन इस अभियान के बावजूद राहुल गांधी अध्यक्ष बन ही जाएंगे, इसके बारे मे दावे से कोई कुछ कह नहीं सकता। अभी कहा जा रहा है कि वर्तमान राज्य सभा के द्विवार्षिक चुनावों की पूरी प्रक्रिया समाप्त हो जाने के बाद राहुल अध्यक्ष बन जाएंगे। जिन्हें लगता है कि वे अध्यक्ष नहीं बन पाएंगे, वे कह रहे हैं कि कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता उनके अध्यक्ष बनने का विरोध करते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि यदि सोनिया अध्यक्ष पद से हटी तो उनका राजनैतिक जीवन समाप्त हो जाएगा।
इसमें कोई दो मत नहीं कि कांग्रेस में पीढ़ी टकराव की स्थिति है। कांग्रेस के जो नेता सोनिया गांधी से जुड़कर पार्टी के संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, वे यथास्थिति बनाए रखने के पक्ष में हैं। राहुल को कुछ और अधिकार दे दिया जाय, इसे लेकर उनका विरोध नहीं है, लेकिन वे चाहते हैं कि कांग्रेस का अध्यक्ष पद सोनिया के पास ही बना रहे। दूसरी तरफ, जिन्हें लगता है कि राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी में उनका अपना रुतबा बढ़ जाएगा और वे महत्वपूर्ण पदों पर आ जाएंगे, वे पार्टी अध्यक्ष का पद राहुल के हाथ में देखना चाहते हैं। कांग्रेस के इन नेताओं को लगता है कि कांग्रेस में जो लगातार गिरावट का दौर चल रहा है, वह राहुल के अध्यक्ष बनते के साथ थम जाएगा।
यह सच है कि कुछ लोग सोनिया को अध्यक्ष के पद पर बैठे देखना चाहते हैं और कुछ कांग्रेसी अध्यक्ष पद पर राहुल को बैठे देखना चाहते हैं, लेकिन इस बात पर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं कि सोनिया गांधी आखिर क्या चाहती हैं? सोनिया गांधी राहुल गांधी की मां हैं और उनके साथ उनकी कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है। वह सभी हालातों मंे राहुल का भला ही चाहंेगी, लेकिन क्या वह पार्टी का पद छोड़ देना चाहेंगी? यह सवाल भी महत्वपूर्ण है कि कांग्रेस का अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद सोनिया गांधी की अपनी क्या भूमिका रह जाएगी? क्या वह राजनीति से संन्यास ले लेंगी या कांग्रेस में बिना किसी पद लिए ही वह इसकी सबसे ताकतवर नेता बनी रहेगी? सवाल यह भी है कि अध्यक्ष पद से हट जाने के बाद क्या सोनिया गांधी अपने तरीके से कांग्रेस को चला पाएंगे? इस सवाल का संबंध इस सवाल के जवाब से है कि क्या राहुल गांधी सोनिया की बात उसी विनम्रता से मानते चले जाएंगे, जिस विनम्रता से मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री की हैसियत से मान लिया करते थे।
भारत में वंशवादी राजनीति के अनेक उदाहरण रहे हैं। लगभग सभी क्षेत्रीय पार्टियां वंशवादी हैं। लेकिन हमारे देश के वंशवाद की राजनीति में ऐसा एक भी उदाहरण नहीं मिलता कि किसी ने अपने बेटे या बेटी के लिए अपने आपकों राजनीति से ही अलग कर लिया हो? अपने बेटे या बेटी का इस्तेमाल सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए किया जाता है। मुलायम सिंह यादव ने भले ही अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री के पद पर बैठा दिया हो, लेकिन पार्टी पर अभी भी उनका कब्जा है और अखिलेश यादव अभी भी उनके मातहत ही हैं। लालू यादव ने राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री का पद उस समय दिया था, जब वे उसपर बैठने योग्य नहीं रह गए थे। प्रकाश सिंह बादल 90 की उम्र में पहुंच गए हैं। उन्होंने अपने बेटे को उपमुख्यमंत्री भी बना रखा है, लेकिन सत्ता की कुंजी उनके अपने हाथ में हैं। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भी शायद वे ही अपने दल का मुख्यमंत्री उम्मीदवार हों। करुणानिधि ने भी खराब स्वास्थ्य और 93 साल की उम्र के बावजूद मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में अपने को पेश किया। फारुक अब्दुल्ला एक अपवाद हो सकते हैं, जिन्होंने अपने बेटे के लिए कुर्सी का पद छोड़ दिया, लेकिन वह उनकी मजबूरी थी। कांग्रेस के समर्थन से उनकी पार्टी की सरकार जम्मू और कश्मीर में बन रही थी और कांग्रेस व खुद राहुल गांधी ने फारुक अब्दुल्ला पर दबाव देकर उन्हें मुख्यमंत्री बनने के मोह को त्यागने के लिए मजबूर कर दिया था।
इसलिए वर्तमान परिस्थितियों मंे यह सवाल महत्वपूण है कि यदि राहुल गांधी कांग्रेस का अध्यक्ष बनते हैं, तो सोनिया गांधी क्या करेंगी? क्या वह राजनीति मे रहेंगी या राजनीति छोड़ देंगी? यदि वह राजनीति में बनी रहने का निर्णय करती हैं, तो फिर पार्टी में उनकी क्या भूमिका होगी? कौन सा पद उनके पास होगा? ये सवाल कुछ ऐसे हैं, जिनके जवाब में राहुल का अध्यक्ष बनना या न बनना निहित है। यदि सोनिया गांधी राजनीति छोड़ देने का फैसला करती हैं, तब तो उनके लिए राहुल को अध्यक्ष बनाना आसान है, लेकिन यदि वह राजनीति मेंबनी रहने का फैसला करती हैं, तो वह वह अध्यक्ष पद क्यांे छोड़ना चाहेंगी? (संवाद)
राहुल के कांग्रेस अध्यक्ष बनने का सवाल
आखिर सोनिया क्यों छोड़ेगी अध्यक्ष पद?
उपेन्द्र प्रसाद - 2016-06-06 17:29
राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने की मांग एक बार फिर तेज हो गई है। पिछले दो साल से इस तरह की मांग कई बार उठती है और फिर वह मांग दब जाती है या दबा दी जाती है। इस बार यह मांग कुछ ज्यादा ही तेजी से उठी है। वैसे 2014 के लोकसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस के पास उत्सव मनाने के लिए बहुत ही कम मौके हैं। उसके बाद हुए विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस की कुछ छोटे अपवादों को छोड़कर हार ही हुई है। लगातार हारते हारते उसे बिहार की छोटी सी जीत पर जश्न बनाने का एक छोटा मौका मिला। फिर सभी कांग्रेसियों को पिछले मई में संपन्न हुए विधानसभा के चुनावों से बहुत उम्मीद थी। उन्हें लग रहा था कि असम में किसी तरह कांग्रेस की सरकार बन जाएगी और उसे राहुल गांधी की जीत के रूप में प्रचारित किया जाएगा और तब कांग्रेस के अध्यक्ष के पद पर उनकी धूमधाम से ताजपोशी होगी।