हत्याकांड और आगजनी के बाद पता चला कि वहां किसी रामबृक्ष यादव के नेतृत्व में कुछ हजार लोगों ने, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे, जवाहरबाग को अपने कब्जे में ले रखा था और हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद पुलिस पिछले एक साल से उन्हें वहां से हटा नहीं पा रही थी। घटना के बाद ही पता चला कि रामबृक्ष यादव ने कुछ हजार की छोटी आबादी पर अपनी समानांतर सरकार चला रखी थी और उस स्थल से संविधानविरोधी हरकतें की जा रही थीं।
यह मानने का कोई कारण नहीं कि वहां के प्रशासन को उस अवैध कब्जे के बारे में जानकारी नहीं थी। सच तो यह है कि जब रामबृक्ष यादव ने पहली बार वहां अपना जमावड़ा लगाया था, तो उसे प्रशासन का अनुमति प्राप्त थी। रामबृक्ष यादव सागर से दिल्ली की ओर एक मार्च को ले जा रहे थे और बीच में दो दिन ठहरने की लिए प्रशासन से इजाजत मांगी थी और प्रशासन ने उसके लिए उन्हें इजाजत दे भी दी थी। लेकिन एक बार जब वे वहां जम गए तो तो फिर जम गए। कहते हैं कि पहले दिन उनके साथ सिर्फ 200 के आसपास लोग ही मार्च में साथ थे। मार्च में साथ देने वाले को सत्याग्रही कहा जा रहा था।
रामबृक्ष यादव ने जवाहरबाग पर कब्जा ही कर लिया और उनके सत्याग्रहियों की संख्या बढ़ती चली गई। सवाल उठता है कि उन सत्याग्रहियों का आग्रह क्या था? दरअसल वे इस संविधान को मानते ही नहीं थे और उनका कहना था कि चुनाव की वर्तमान व्यवस्था को समाप्त कर दिया जाना चाहिए। इस तरह के आग्रह के पीछे भी एक इतिहास है। रामबृक्ष यादव बाबा जय गुरुदेव के शिष्य रह चुके थे। जयगुरुदेव ने एक पार्टी बना रखी थी, जिसका नाम था दूरदर्शी पार्टी। वह पार्टी कई बार चुनाव लड़ चुकी थी।
सच कहा जाय तो आजतक किसी भी बाबा या साधु ने उस बड़े पैमाने पर पार्टी बनाकर चुनाव नहीं लड़ा, जिस पैमाने पर जय गुरुदेव लड़ा और लड़ाया करते थे। उस धार्मिक बाबा की अपनी एक राजनैतिक सोच थी और उस सोच को आकार देने के लिए वे चुनाव लड़ते थे और देश के अनेक चुनाव क्षेत्रों में उनके उम्मीदवार खड़े होते थे। दूरदर्शी पार्टी के लोग बोरे (टाट) का कुर्ता और पायजामा पहना करते थे और कोई भी दूरदर्शी पार्टी और जय गुरुदेव के लोगों की पहचान आसानी से कर सकता था। वित्रित्र कपड़ों मे घूमने वाले दूरदर्शी पार्टी के उम्मीदवारों और उनके समर्थक आम लोगों का समर्थन हासिल नहीं कर सके और उनके उम्मीदवार चुनाव हारते रहे।
लगता है कि दूरदर्शी पार्टी की चुनावी हार ने रामबृक्ष यादव को चुनाव विरोधी बना दिया। और वे एक ऐसी राजनैतिक व्यवस्था के पैरोकार हो गए, जिसमें चुनाव का कोई स्थान नहीं हो सकता था।
जय गुरुदेव के साथ साथ रामबृक्ष यादव के राजनैतिक पृष्ठभूमि में आपातकाल और सुभाषचन्द्र बोस भी थे। आपातकाल में वे जेल में थे और उसके लिए उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार से पेशन भी मिलता था। उनका मानना था कि बाबा जय गुरुदेव कोई और नहीं, सुभाषचन्द्र बोस ही थे। जयगुरूदेव की 2011-12 में मौत हो गई थी और उनकी मौत के बाद उनकी विरासत की लड़ाई भी उनके समर्थकों में छिड़ गई थी। बाबा के ड्राइवर पंकज यादव ने विरासत की लड़ाई में सफलता पाई और रामबृक्ष यादव उनके प्रतिद्वंद्वी बने रहे। लगता है कि उसके बाद रामबृक्ष यादव ने खुद का अपना सेक्ट बनाना शुरू कर दिया और वे खुद को और अपने समर्थकों को सत्याग्रही कहने लगे और उनका देश की राजनैतिक व्यवस्था को लेकर अपना अलग नजरिया था। भारत एक लोकतांत्रिक देश है और कोई भी अपना नजरिया रखने के लिए आजाद है, शर्त यह है कि वह कानूनी दायरे में रहकर ही अपने विचारों का प्रचार प्रसार करता रहे।
लेकिन रामबृक्ष यादव ने गैरकानूनी तरीके से मथुरा के एक भूभाग पर कब्जा कर लिया था और वे कानून को चुनौती दे रहे थे। यहां सवाल यह भी है कि आखिर प्रशासन ने उन्हें वैसा करने का मौका क्यों दिया? जिस स्थान पर रामबृक्ष यादव ने अपना निवास बना लिया था, वहां से भारी पैमाने पर अवैध हथियार और विस्फोटक मिले, जिससे लगता है कि या तो वे भारत के खिलाफ हथियारबंद लड़ाई की तैयारी कर रहे थे अथवा वहां से अवैध हथियारों की खरीदफरोख्त हुआ करती थी। वहां हथियार बनाए जाने की बातें भी कही जा रही हैं।
मथुरा एक संवेदनशील शहर है। वहां कृष्ण जन्मभूमि और ईदगाह का विवाद है, जिसके कारण वह शहर सांप्रदायिक दृष्टि से भी संवेदनशील है। वहां सेना की कैंट है, इसके कारण भी वहां सुरक्षा व्यवस्था चुस्त दुरुस्त होने की उम्मीद की जाती है और आसपास प्रदेश तथा केन्द्र सरकार के खुफिया तंत्रों के सक्रिय रहने की भी उम्मीद की जाती है। इन सबके बावजूद वहां हथियार जमा होते रहे और प्रशासन ने अपने स्तर से उसे रोकने की कोई गंभीर कोशिश नहीं की। हाई कोर्ट के आदेश पर भी शुरू शुरू में कोई खास गंभीरत नहीं दिखाई गई। इससे स्पष्ट होता है कि रामबृक्ष यादव को राजनैतिक संरक्षण मिला हुआ था और उकसे कारण ही प्रशासन उनके खिलाफ सक्रिय नहीं रहता था। भारतीय जनता पार्टी के नेता प्रदेश के ताकतवर मंत्री शिवपाल यादव का नाम ले रहे हैं, हालांकि इसका खंडन भी किया जा रहा है।
सच्चाई क्या है, इसका पता प्रदेश की किसी जांच एजेंसी तो लगा नहीं सकती, क्योंकि संदेह की सूई प्रदेश सरकार के एक ताकतवर मंत्री की ओर ही है। इसलिए सच्चाई का पता तो सीबीआई जांच से ही लग सकता है, लेकिन क्या सीबीआई जांच होगी, इसकी संभावना बहुत कम हो गई है। इसलिए रामबृक्ष के राज का पता भी लगना लगभग असंभव ही है। (संवाद)
मथुरा कांड के लिए कौन जिम्मेदार?
सीबीआई जांच से ही सच्चाई सामने आएगी
उपेन्द्र प्रसाद - 2016-06-07 17:54
मथुरा के जवाहरबाग में जो कुछ हुआ, उसने देश के सभ्य समाज की सामूहिक मानसिकता को एक बार फिर झिंझोर कर रख दिया हैं। वहां एक सेक्ट के लोग गैरकानूनी तरीके से एक भूभाग पर काबिज थे, यह मथुरा के बाहर के लोगों ने उस घटना के पहले नहीं सुना होगा। उसके बारे में देश के अन्य भागों में रहने वाले लोगों को जानकारी तभी मिली, जब वहां कम से कम 24 जानें जा चुकी थीं और उन 24 जानों में दो तो पुलिस अधिकारियों की ही थी।