दिल्ली के मुख्यमंत्री को पता है कि दिल्ली वाले उनके विकास कार्य से इतने खुश हैं कि चौपाल से लेकर चाय-पान की दुकान पर प्रवचनों का सिलसिला प्रारंभ हो गया है। इसका फीडबैक उनके कार्यकर्ता ईमानदारी से दे रहे हैं इसलिए जून की भयानक गर्मी में केजरीवाल जी माथा भन्नाता है तो उसकी भंड़ास सीधे प्रधानमंत्री पर निकलती है। क्योंकि केजरीवाल जी यह मानते हैं कि इस देश में उनके एकमात्र बराबर के विरोधी केवल और केवल प्रधानमंत्री हैं। क्योंकि दिल्ली विधानसभा चुनाव में उन्होंने जो जीत दर्ज की वह कथित तौर पर प्रधानमंत्री मोदी की राजनीतिक हार थी। अगर किसी संवेदनशील दिल्ली के नागरिक को केजरीवाल सरकार के किसी बड़े विकास कार्य को देखना हो तो वह एक बात जरूर फुटनोट में लिख सकता है कि 12 करोड़ की लागत से बीआरटी कॉरीडोर को तोड़ा जा रहा है। इसके अलावा कोई और बड़ी योजना दिखती हो तो उसे इस लेखक को बताया जाए। ध्यान रहे डीडीए और केंद्र सरकार की योजनाएं जैसे मेट्रो आदि दिल्ली सरकार के विकास बजट का हिस्सा नहीं होतीं।

अब चलते हैं सीधे बिहार जहां सुशासन बाबू और शराब निषेध प्रबंधन के हीरो नीतीश कुमार के पास। जी हां, बिहार में सुशासन और विकास का ऐसा कॉकटेल बना है कि रोज ब रोज हत्याएं, अपहरण, फिरौती और लूट की दर्जनों किस्से सुर्खियां बटोर रही हैं। इसके लिए दोष विरोधी पार्टी को दिया जा रहा है कि वह बिहार को बदनाम करने पर तुली हुई है। गोया भाजपा ने ही इन सुर्खियों को बनवाने के लिए अखबारों और टीवी चैनलों के दफ्तरों में अपने आदमी बिठा रखे हों। यहां भी सुशासन बाबू आजकल शराब निषेध का शील्ड उठाए पूरे देश में प्रधानमंत्री मोदी के सबसे बड़े उत्तराधिकारी के तौर पर अपने को पेश कर रहे हैं। उनके तरकश के हर तीर सीधे मोदी के सीने को भेदने को बेताब है जैसे उन्हें लग रहा है कि अब पीएम की कुर्सी उनका बेसब्री से इंतजार कर रही है और मोदी को उतरने को कह रही है। बिहार में डॉक्टर से स्पीड पोस्ट से लेकर एसएमएस, व्हाट्सएप तक से रंगदारी मांगी जा रही है। पत्रकारों को खुलेआम गोलियां मारी जा रही है। व्यवसायी दिन दहाड़ लूटे जा रहे हैं, अपहरण का नया उद्योग अंगड़ाई लेने लगा है, पुराने दिगगज अस्त्र शस्त्र से लैस होकर मैदान में उतर आए हैं। चारा घोटाले की फाइलें गायब होने लगी हंै। यह सब सुशासन नहीं तो और क्या है? दिल्ली के मुख्यमंत्री को यहां जंगलराज सताने लगा है उसका दोष सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिया जा रहा है लेकिन बिहार मेें क्या हो रहा है वह केजरीवाल जैसे लोगों को नहीं दिखता, जो काम बिहार में हो रहा है वह सुशासन है और उसमें से ही एक छोटा कांड दिल्ली में हो जाए तो वह जंगलराज है? तर्क को अपने तर्क ढूंढऩे पड़ रहे हैं।

बिहार की खबरें लिखने वाले दिल्ली के कथित सेकुलर पत्रकारों के लिए भी यह दुविधा कायम है कि वे सांप्रदायिक भाजपा को कैसे सही लिखें। केजरीवाल से लेकर लालू यादव पर सामाजिक समरसता का घोल चढ़ाना जितना आसान है उससे ज्यादा कठिन है भाजपा के वास्तविक विकास के बारे में सच सच लिख देना।

सबसे ज्यादा पीड़ा मीडिया में ही देखी जा रही है। हर खबर के लिए हर चैनल के अपने अपने सच हैं। एक ही खबर को विभिन्न चैनलों पर भांति भांति के सच के आइने में पेश किया जा रहा है। अखबारों में भी यह रोग आने लगा है। जनता जो सब कुछ जानती है, उसे कन्फ्यूज करने का पूरा प्रयास किया जा रहा है। लेकिन एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि इन टीवी-अखबारी खबरों से इतर सोशल मीडिया पर भी खबरें हैं, जिस पर युवा वर्ग का अडिग विश्वास कायम होता जा रहा है। यही चिंता का सबब उन बिकाऊ टीवी पत्रकारों-एंकरों को परेशान कर रहा है कि जो खबर वे चला रहे हैं ठीक उसके उलट खबर फेसबुक और व्हाट्सएप पर प्रसारित हो जाती है। अब सच को परखने के तीन आईने हैं। कौन आईना ज्यादा विश्वसनीय है इसके बारे में पुख्ता तौर पर हरेक नागरिक की अलग अलग सोच है जैसे गरीबी हटाओ, अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और सेकुलरिज्म पर अलग-अलग दलों के बुद्धिजीवियों की अलग अलग सोच हैं।

कुल मिलाकर अरविंद केजरीवाल की आरोपित करो, स्वयं को मुक्त रहो वाली नीति कहां तक सफल होगी कहना मुशि£क नहीं है। बिहार जलता रहे तो जले नीतीश कुमार अपनी ब्रांडिंग पूरे देश में करने से कौन रोकेगा? आखिर मद्य निषेध के राष्ट्रीय हीरो जो बने हैं। अब शराब ताड़ी पर रोक के बाद उसके विरोध की आंच कहां निकलेगी यह समय के गर्भ में है?