लेकिन उसके बाद समय बदला और कांग्रेस कमजोर होती चली गई। जिन नेताओं को पार्टी में कुछ नहीं मिल रहा था, वे पार्टी छोड़ने लगे। उनमें से कई ने पार्टी बना ली। उनमें से सबसे ताजा नेता हैं अजित जोगी, जिन्होंने छत्तीसगढ़ में अपनी पार्टी बना ली है। कांग्रेस में उनका महत्व कम हो रहा था और उनकी छवि भी खराब की जा रही थी। छत्तीसगढ़ के गठन के बाद अजित जोगी उसके पहले मुख्यमंत्री बने थे। 2003 में कांग्रेस की हार हो गई और वे सत्ता से बाहर हो गए। उसके बाद वहां लगातार भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी हुई है। पिछले 13 सालों में अनेक विवाद अजित जोगी के नाम से निकले और उन विवादों के बीच पार्टी ने उनका लगातार बचाव किया। इसलिए जब जोगी पार्टी से बाहर निकले हैं, तो कांग्रेस मे तो वहां जश्न होना चाहिए था, क्योंकि उससे लगता कि पार्टी में फिर से जान आ सकती है।

जोगी किसी को कह रहे थे कि कांग्रेस से निकलकर अनेक लोगों ने पार्टियां बनाई और वे सफल रहे हैं। लेकिन वे यह कहना भूल गए कि कांग्रेस से बाहर जाकर अनेक लोग विफल भी हुए हैं। उन्होंने ममता बनर्जी और शरद पवार का नाम लिया, जो पार्टी से बाहर जाकर भी सफल रहे हैं। लेकिन जोगी यह भूल रहे हैं कि इन दोनों नेताओ का अपने प्रदेशों में मजबूत जनाधार रहा है, जबकि जोगी का छत्तीसगढ़ में क्या आधार रहा है, यह उनको खुद पता होगा।

1998 में ममता बनर्जी ने कांग्रेस छोड़ दी। उन्होंने तृणमूल कांग्रेस बनाई और आज वहां 5 साल से भी ज्यादा समय से सत्ता में हैं। उसके पहले वह केन्द्र सरकार में मंत्री भी थीं। आज कांग्रेस पश्चिम बंगाल में कुछ जिलों तक सिमट कर रह गई है।

शरद पवार 1999 में कांग्रेस से बाहर हुए थे। उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया। उनकी पार्टी महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ ही गठबंधन कर सत्ता में रही और वे खुद भी कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में मंत्री रहे।

1999 में ही मुफ्ती मुहम्मद सईद ने कांग्रेस छोड़ी थी। उन्होंने पीपल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट बनाया। उनकी पार्टी आज वहां सत्ता में है। कांग्रेस के साथ वह पहले भी सत्ता में वहां रह चुकी है।

ये तीनों नेता उस समय कांग्रेस से बाहर हुए, जब कांग्रेस खुद केन्द्र की सत्ता से बाहर हो गई थी और केन्द्र में तब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार थी।

2011 में जगन मोहन रेड्डी ने कांग्रेस छोड़ी और अपनी एक अलग पार्टी बना ली। उसके बाद प्रदेश का विभाजन हुआ। विभाजित होकर बने तेलंगाना में कांग्रेस के पास विधानसभा की मात्र दो सीटें हैं, जबकि आंध्र प्रदेश में उसे एक भी सीट नहीं मिली है। गौरतलब हो कि उसके पहले हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अविभाजित आंघ्र प्रदेश में 156 सीटे मिली थीं और वह लगातार दूसरी बार जीतकर सत्ता में आई थी।

इस साल अरुणाचल प्रदेश में भी कांग्रेस में विभाजन हुए और कालिखो पुल भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से सत्ता में है। असम में पिछले साल कांग्रेस के नेता हेमंत बिस्व शर्मा पार्टी से बाहर हो गए। 2014 के चुनाव के पहले हरियाणा से चैधरी बीरेन्द्र सिंह और राव इन्द्रजीत सिंह भी पार्टी से बाहर आए। उत्तराखंड मंे कुछ समय पहले ही विजय बहुगुणा ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया।

इस तरह कांग्रेस में मची भगदड़ जारी है और इसे आने वाले समय मे भी जारी रहने की उम्मीद है। (संवाद)