पंजाब की इस समस्या को मीडिया में भी उठाया जाता रहा है। सिनेमा भी एक मास मीडिया है, जो बहुत ही प्रभावी है। यदि किसी फिल्म निर्माता की नजर इस समस्या पर गई और उसने इस पर फिल्म बनाने का निर्णय किया और बनाया, तो उसका सभ्य समाज के लोगों का स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन पहलाज निहलानी ने फिल्म निर्माताओं के मंशे पर ही सवाल उठाना शुरू कर दिया और सबसे पहले पंजाब शब्द पर आपत्ति कर दी। कहा कि इससे पंजाब की छवि खराब होती है। यह बहुत ही बेतुका तर्क था, क्योंकि उस फिल्म से बदनामी तो तब होती, जब वह समस्या होती ही नहीं और जबर्दस्ती उसे उस समस्या का शिकार बता दिया जाता। पर पंजाब के लोग और पूरे देश के लोग जानते हैं कि पंजाब में वह समस्या है। वहां के लोग उस समस्या से निजात भी चाहते हैं और उससे निजात दिलाने वाले किसी भी प्रयास का वह समर्थन ही करेंगे।

लेकिन निहलानी ने अपने पद के बेजा इस्तेमाल कर न केवल उस फिल्म के खिलाफ अभियान छेड़ दिया, बल्कि उस पर सेंसर की कैंची भी चलाने लगे। कहा गया कि वे उसका नाम ही बदलवाना चाहते हैं। सवाल उठता है कि जब समस्या पंजाब में है, तो क्या फिल्म में प्रदेश का नाम बंगाल का दे दिया जाय? अतीत में भी अनेक फिल्में बनी हैं, जिनमें शहरों, राज्यों और देशों के नाम पर ही उनका नामकरण हुआ है। जब बांग्लादेश की मुक्ति की लड़ाई चल रही थी, तो जय बांग्लादेश और जय बांग्ला नाम की फिल्में बनी थीं। अभी हाल ही में बासेपुर के नाम पर गैंग आॅफ बासेपुर बना है। फिल्म के नाम से फिल्म की कहानी का पता चलता है। इसलिए उड़ता पंजाब से पता चलता है कि फिल्म पंजाब की किसी समस्या पर ही है।

बिहार की समस्याओं पर भी अनेक फिल्में बनी हैं। बिहारी मूल के निर्माता प्रकाश झा ने बिहार को लेकर अनेक फिल्में बनाई हैं। उनमें बिहार के समाज के गंदे हकीकतों को दिखाया गया है, लेकिन उसके कारण उन फिल्मों को संेसर तो नहीं किया गया। सच कहा जाय, तो प्रकाश झा ने बिहार पर फिल्में बनाकर ही अपने आपको बाॅलीवुड में स्थापित किया है। उनका बिहार के लोगों ने कभी विरोध नहीं किया, क्योंकि जिन समस्याओं को वे अपनी फिल्मों में उठा रहे थे, बिहार के लोग उन समस्याओं से छुटकारा चाहते थे। उसी तरह अनुराग कश्यप फिल्म उड़ता पंजाब में जिस नशे की समस्या को उठा रहे हैं, उस समस्या से पंजाब के लोग छुटकारा चाहेंगे। उसमें पजाब को बदनाम करने जैसी कोई बात नहीं है। फिल्म का असर फिल्म देखने वालों पर पड़ता है। यदि वह फिल्म देखकर पंजाब के युवा नशे के चक्कर से दूर रहें या हो जाएं, तो इससे बेहतर और क्या हो सकता है?

जब पहलाज निहलानी द्वारा उड़ता पंजाब को संेसर करने की कोशिश की जा रही थी, तो इसका समाज के लगभग हर तबके ने विरोध किया। यह अच्छी बात है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने इस विरोध का विरोध नहीं किया और इसे प्रतिष्ठा का विषय नहीं बनाया, हालांकि इसके छुटभैये जबतब इस फिल्म के खिलाफ बोलते रहे। उन्हें डर इस बात का था कि इसके कारण पंजाब का आगामी चुनाव प्रभावित हो सकता है, जहां अकाली दल के साथ भाजपा की सरकार है। उन्हें लग रहा था कि इस फिल्म के कारण नशा पंजाब के चुनाव का एक बड़ा मुद्दा हो सकता है और उसमें अकाली दल के कुछ नेताओं के नाम घसीटे जा सकते हैं। इसलिए वह इस फिल्म के रीलीज को लेकर डरे हुए थे।

पर चुनाव के कारण रचनात्मक लोगांे की रचनात्मकता थम नहीं जाती। इसके कारण न तो कवि अपनी कविताएं लिखना बंद करते और न ही फिल्मकार फिल्में बनाना बंद करते। पंजाब की नशा की समस्या पुरानी है और पता नहीं, इस पर फिल्म कब से बन रही थी। इसे मात्र संयोग ही कहा जाएगा कि फिल्म उस समय रीलीज होने जा रही है, जब पंजाब में चुनावी माहौल बनने लगा है।

यदि इसके कारण नशा पंजाब का मुद्दा बनता है, तो यह मुद्दा अब तक बन चुका है और इसे बनाने में फिल्मकार अनुराग कश्यप से ज्यादा बड़ी भूमिका सेंसर बोर्ड के प्रमुख पहलाज निहलाली की रही है। जब उन्हें इस बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया था, तो इसका भारी विरोध किया जा रहा था और कहा जा रहा था कि वे उस पद के काबिल नहीं हैं। अब पहलाज निहलानी के खुद साबित कर दिया है कि उनमें इस पद पर बैठने की योग्यता नहीं है।

सबसे पहले तो उन्होंने आरोप लगा दिया कि इस फिल्म को बनाने के लिए आम आदमी पार्टी ने फिल्म निर्माता को पैसे दिए। उनसे पूछा गया कि यह आपको कैसे पता चला, तो उन्होंने कहा कि यह बात उन्होंने किसी से सुनी है। इस तरह के पद पर बैठे लोगों से इस तरह की लूज टाॅक की उम्मीद नहीं की जाती।

विवादों के बीच में ही पहलाज निहलानी ने कहा कि वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चमचे हैं। इस तरह के बयान से उन्होंने साबित कर दिया कि अपने पद पर वे अपनी काबिलियत के कारण नहीं, बल्कि चमचागीरी के कारण पदासीन हुए हैं। अच्छा हुआ कि संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने उस बयान के लिए उनकी लताड़ लगाई। लेकिन अच्छा हो कि उस तरह का बयान देने के लिए उन्हें उनके पद से बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए। (संवाद)