लेकिन इस बार थोड़ा अंतर है। 2015 में मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेशी निवेश सिर्फ 51 फीसदी ही होना था, पर इस बार यह निवेश 100 फीसदी तक हो सकता है। दूसरा अंतर यह है कि इस बार सिर्फ खाद्य और खाद्य उत्पादों के खुदरा व्यापार को ही विदेशी निवेश के लिए खोला गया है। एक अनुमान के अनुसार देश का कुल खुदरा व्यापार सालाना 24 लाख करोड़ रुपये का होता है और उसमें खाद्य उत्पादों के खुदरा व्यापार की राशि लगभग 4 लाख करोड़ रुपये है। दूसरे शब्दों में कहा जाय, तो देश के खुदरा व्यापार की 4 लाख करोड़ रुपये का बाजार विदेशी कंपनियों के लिए खोल दिया गया है।

हां, 2012 से तुलना की जाय, तो एक फर्क और है और वह यह है कि उस समय कंपनियां दूसरे देशों से भी माल आयातित कर भारतीय बाजार मे बेच सकती थी और स्थानीय स्रोतों से खरीद के लिए 30 फीसदी की न्यूनतम सीमा तक सरकार ने तय कर दी थी। इस बार विदेशी कंपनियां अपना 100 फीसदी माल स्थानीय स्रोतों से ही खरीदेंगी।

खाद्य सेक्टर के व्यापार में विदेशी निवेश की इस नीति को रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश की नीति के साथ ही घोषित किया है। लेकिन दोनों में फर्क है। रक्षा क्षेत्र में निवेश उत्पादन के लिए होगा, जबकि खाद्य क्षेत्र में निवेश मुख्य तौर से व्यापार के लिए होगा। जाहिर है, रक्षा क्षेत्र में निवेश मेक इन इंडिया कार्यक्रम का हिस्सा है, जब खाद्य क्षेत्र में निवेश मेक इन इंडिया कार्यक्रम का हिस्सा नहीं है। हम कर सकते हैं कि यह ट्रेड इन इंडिया कार्यक्रम का हिस्सा है और इसका विरोध 2012 में भारतीय जनता पार्टी ने उस समय किया था, जब वह विपक्ष में थी।

लेकिन सत्ता में आते ही राजनैतिक दलों के विचार बदल जाते हैं। दूसरा सच यह है कि सत्तारूढ़ दल के विपक्ष में आने के बाद उसके विचार भी बदल जाते हैं। इसलिए आज जब भाजपा की सरकार खाद्य रिटेल में शत प्रतिशत विदेशी निवेश की इजाजत दे रही है, तो विपक्षी कांग्रेस इसका विरोध कर रही है, जबकि कांग्रेस सत्ता में रहते हुए मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेश कंपनियों को आमंत्रित करने की विफल कोशिश कर चुकी है।

राजनैतिक पार्टियों के बदलते विचारों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण सवाल यह है कि सरकार की इस नई नीति से क्या हमारे देश के लोगों को फायदा है या इससे फायदा से ज्यादा नुकसान ही है। इस पर दो तरह के मत हैं। सरकार को लगता है कि इससे फायदा है। उसे लगता है कि इसके कारण देश में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा, अनाजों की बरबादी थमेगी, किसानों को लाभ होगा और उपभोक्ताओं को भी लाभ होगा। इसके कारण खाद्य उत्पादों के निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा और स्टोरेज कैपेसिटी का विस्तार होगा।

यदि ऐसा होता है, तो इस नीति में कुछ भी बुरा नहीं है, लेकिन 2012 में जब मल्टी ब्रांड रिटेल का विरोध करते हुए जो तर्क दिए जा रहे थे, उनमें से कुछ इसके लिए भी सच हैं। क्या इससे खुदरा दुकानदारों में बेरोजगारी नहीं बढ़ेगी और खाद्य प्रसंस्करण में लगी छोटी स्थानीय इकाइयां बंद नहीं होगी? उनके बंद होने से क्या बेरोजगारी नहीं बढ़ेगी? ये डर अपनी जगह अभी भी मौजूद हैं।

जहां तक किसानों की बात है, तो उनको तो किसी व्यवस्था में फायदा हो ही नहीं रहा है। जब फसल तैयार होती है, तो बाजार में आपूर्ति एकाएक बढ़ जाती है। अनाजों को स्टोर करने के लिए जगह तक नहीं रहती और इसके कारण किसानों को अपना उत्पाद जल्द से जल्द बेचना होता है। आपूर्ति बढ़ने के कारण कीमतें गिर जाती हैं और किसानों को कौड़ियों के भाव अपने माल बेचने पड़ते हैं। सवाल उठता है कि क्या विदेशी कंपनियों के आने के बाद यह स्थिति बदलेगी? विदेशी कंपनियां भी मुनाफे के लिए ही भारत आएंगी और किसानों की इस विवशता के कारण वह उनका शोषण नहीं करेगी, इसकी कोई गारंटी नहीं दे सकता। यानी जब बाजार में कीमत कम होंगी, तो विदेशी कंपनियां भारी पैमाने पर खरीद करेंगी और जमाखोरी कर भारी पैमाने पर मुनाफाखोरी करने की कोशिश करेंगी।

सवाल उठता है कि उपभोक्ताओं को क्या मिलेगा? इसमें दो मत नहीं कि उपभोक्ताओं को शुरुआती फायदा मिल सकता है, लेकिन वह फायदा अस्थायी भी साबित हो सकता है। इसका कारण यह है कि हमारे खाद्य बाजार में भारी अव्यवस्था का माहौल है और इस अव्यवस्था का शिकार किसान भी होते हैं और उपभोक्ता भी। फायदा बिचैलिए उठा लेते हैं। बिचैलिए आर्थिक रूप से जितने ताकतवर होते हैं, वे उतना ही ज्यादा फायदा उठाते हैं। रिटेल में हमने काॅपोरेट घरानों को इजाजत दे दी है और उसका असर दालों की बढ़ती कीमतों के रूप में हम देख रहे हैं। सुनने में जब तब आता है कि दालों की जमाखोरी कर बड़े काॅर्पोरेट घराने हजारों करोड़ रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं और उपभोक्ताओं से दाल के नाम पर लूट मची हुई है।

विदेशी कंपनियां तो आर्थिक रूप से और भी ताकतवर हैं। बिचैलियों के रूप में तो वे और भी कहर बरपा देंगी। इसलिए खाद्य व्यापार में शत प्रतिशत विदेशी निवेश रक्षा के नाम पर हत्या का सबब बन सकता है। (संवाद)