अन्य महत्वपूर्ण और लोकप्रिय ट्रेनों जैसे शताब्दी और राजनधानी में डिब्बों की संख्या बढ़ाई जाएगी इससे यात्रियों को ज्यादा से ज्यादा बर्थ के विकल्प मिलेंगे और प्रतीक्षा सूची का खेल खत्म होने लगेगा। यही नहीं त्योहारी मौसम में रेलवे को ज्यादा से ज्याद यात्रियों का राजस्व प्राप्त होगा।

एक और महत्वपूर्ण फैसले के अनुसार रेलवे का आईआरटीसी विभाग इस प्रयास में लगा है कि देश के ज्यादा से ज्यादा भाषाओं में टिकट बुकिंग की सुविधा उपलब्ध कराई जाए ताकि हर वर्ग और पहुंच का व्यक्ति रेलवे में सफर करने में सहज महसूस करे।

यह भी कहा जा सकता है कि रेलवे ने अपनी नीतियों में सुधार की जो घोषणा की है उसके पीछे उन सस्ती एअरलाइन्स कंपनियों द्वारा देश के दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों में सस्ती हवाई सेवा शुरू करने की घोषणा को भी देखा जा सकता है। इन सस्ती एअरलाइन्सों द्वारा यदि छोटे शहरों में सस्ती सेवाएं उपलब्ध करा दी गई तो इसका आर्थिक दुष्प्रभाव रेलवे पर ही पड़ेगा जो उसके बजट के लिए अच्छा संकेतक नहीं होगा।

कुल मिलाकर रेलवे की नीतियां चाहे जितनी भी बदल जाए रेल यात्रियों के लिए दलालों के जाल से निकलना आसान नहीं दिखता। तत्काल टिकट मिलना आसान नहीं होने के कारण लोग परेशान होते हैं। इसे रोकने के लिए जोनल रेलवे का विजिलेंस विभाग और जीआरपी व आरपीएफ के साथ मिलकर की गई कार्रवाई का कोई विशेष फलदायी असर जमीन पर अभी तक देखने को नहीं मिल सका है। इस तरह के छापेमारी में पकड़े गए दलालों को दोबारा उसी टिकट खिडक़ी पर देखकर आप आश्चर्य में नहीं पड़ें क्योंकि ये सब सेटिंग गेटिंग का खेल होता है। यह इसलिए नहीं रोका जा सकता या रूकता क्योंकि पैसेंजर आरक्षण प्रणाली में ऐसे लोग बैठे हुए हैं जो इन दलालों के संरक्षक और हित पोषक बने हुए हैं, सबसे पहले रेलवे को अपने घर की बेहतरीन सफाई करनी होगी तब जाकर ही बाहरी दलालों से मुक्त हुआ जा सकता है। चाहे रेल मंत्री कोई भी फूलप्रूफ नीति बना लें कोई असर जमीन पर नहीं दिखता। इसके अलावा साफ सफाई और घटिया खान पान सेवा भी रेल मंत्री के लिए किसी चुनौती से कम नहीं हैं क्योंकि ये भी एक तरह का नया तंत्र विकसित कर चुका है जो कि सफल रेलमंत्री सुरेश प्रभु के लिए एक चुनौती है।

अंग्रेजी से अनुवाद- शशिकान्त सुशांत, पत्रकार