जिन विधायकों को शपथ दिलाई गई, उनमें से एक तो कांग्रेस पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। भाजपा में शामिल होने के पीछे उनका व्यापारिक हित था।
जिन दो मंत्रियों को इस्तीफा दिया गया, उनमें से एक तो पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल गौर हैं, जो इस्तीफे के वक्त प्रदेश के मंत्री थे। बाबू लाल गौर आज के नेताओं में वरिष्ठतम हैं। वे 1973 में पहली बार विधायक बने थे और उसके बाद वे लगातार विधानसभा का चुनाव लड़ते रहे और जीतते रहे। देश का शायद ही कोई अन्य नेता होगा, जो लगातार 43 साल तक विधायक या सांसद बना रहा हो।
बाबूलाल गौर से यह कहकर इस्तीफा लिया गया कि उनकी उम्र बहुत ज्यादा हो गई है और पार्टी की नीति के अनुसार उन्हें पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। मुख्यमंत्री ने एक विशेष संदेशवाहक भेजकर उनका इस्तीफा मांगा। परंतु श्री गौर ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया और कहा कि वे तभी इस्तीफा देंगे, जब केन्द्रीय नेता उनको इस्तीफा देने के लिए कहेंगे। उसके बाद भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव रामलाल गुप्ता ने उन्हें इस्तीफा देने को कहा। उसके बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
बाबूलाल गौर 86 साल के हैं और भारतीय जनता पार्टी ने नीति बनाई है कि 75 साल से अधिक उम्र के व्यक्ति को सरकार और संगठन में कोई पद नहीं दिया जाएगा। हालांकि इस उम्र में भी बाबू लाल गौर अपने आपको पूरी तरह फिट पा रहे थे और उनका कहना है कि किसी जवान व्यक्ति से कम उनमंे उत्साह और ऊर्जा नहीं। लेकिन केन्द्रीय नेतृत्व के आदेश को मानते हुए उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
सच्चाई यह भी है कि खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान श्री गौर को मंत्रिमंडल से हटाना नहीं चाहते थे, लेकिन पार्टी की नीति के खिलाफ उनकी एक नहीं चली और चाहते हुए भी वे श्री गौर को अपनी मंत्रिपरिषद में रख नहीं सके।
बाबूलाल गौर के अलावा सरदार सरताज सिंह ऐसे दूसरे वरिष्ठ मंत्री हैं, जिन्हें 75 साल से अधिक उम्र होने के कारण मंत्रिपरिषद छोड़ना पड़ा। श्री गौर की तरह उन्होंने भी पहले इस्तीफा देने से इनकार कर दिया था, लेकिन बाद में उन्हें भी पार्टी की बात माननी पड़ी। मुख्यमंत्री चैहान उन्हें भी अपनी सरकार मंे रखना चाहते थे।
सरताज सिंह समाजवादी पृष्ठभूमि के थे। वे बाद में भारतीय जनता पार्टी में आए थे, लेकिन लंबे अरसे से इसके साथ हैं। वे 5 बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं और दो बार विधायक भी रह चुके हैं। जब केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी, तो सरदार सरताज सिंह उनकी मंत्रिपरिषद के सदस्य थे।
कुल मिलाकर 9 नये मंत्री बनाए गए हैं। लेकिन मंत्रिपरिषद के विस्तार के कारण पार्टी के तमाम तबकों में निराशा का माहौल है। खुद मुख्यमंत्री भी इस विस्तार से खुश नहीं है, क्योंकि वे अपने मनमाफिक विस्तार नहीं कर सके। आरएसएस भी खुश नहीं है, क्योंकि उसकी सारी बातें नहीं मानी गई। (संवाद)
मध्य प्रदेश कैबिनेट का पुनर्गठन से पार्टी का कोई भी तबका संतुष्ट नहीं
एल एस हरदेनिया - 2016-07-02 17:19
भोपालः शिवराज सिंह चौहान ने अपने मंत्रिपरिषद का पुनर्गठन किया और उसके बाद अनेक विवाद छिड़ गए। विवाद के अनेक कारण हैं। पहला कारण तो यह है कि प्रदेश के दो वरिष्ठ मंत्रियों का इस्तीफा ले लिया गया। दूसरा कारण कुछ वैसे विधायकों को मंत्री नहीं बनाया जाना है, जिन्हें पहले मंत्री बनाने के बारे में जानकारी दे दी गई थी। तीसरा कारण कुछ ऐसे लोगों को मंत्री बनाना है, जिनके अतीत के बारे में लोगों की अच्छी राय नहीं है।