गौरतलब हो कि हैदराबाद केन्द्रीय विद्यालय में एक दलित छात्र रोहित वेमुला ने आत्महत्या कर ली। उसने अपनी आत्महत्या के लिए किसी को दोषी नहीं ठहराया था, लेकिन उसके जानने वालों का कहना था कि उसका फेलोशिप रोक दिया गया था, जिसके कारण वह और उसका परिवार भीषण आर्थिक संकट का सामना कर रहा था। फेलोशिप रोकने के बाद उसे हाॅस्टल से भी निकाल दिया गया। उसके बाद उसने आत्महत्या कर ली।
वेमुला के साथ जो कुछ हुआ, उसके लिए केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय सीधे तौर पर जिम्मेदार था। वेमुला और उसके साथियों का भाजपा की छात्र ईकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्रों से मारपीट हुई थी। उसी को आधार बनाकर मंत्रालय ने विश्वविद्यालय प्रशासन को एक के बाद एक सात पत्र लिखे और उसने प्रशासन को वेमुला के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए बाध्य कर दिया। संसद में खड़ी होकर स्मृति ईरानी ने वेमुला की मौत पर एक असंवेदनहीन बयान दे डाला और अपने मंत्रालय द्वारा एक के बाद एक लिखे गए 7 पत्रों को उचित करार दिया। उनका बयान झृठ का पुलिंदा था और उस पुलिंदे को प्रधानमंत्री ने अपने ट्विटर एकाउंट पर ’सत्यमेव जयते’ लिखकर डाल दिया। बाद में प्रधानमंत्री को भी पता चला कि जिस बयान को वे सत्य मान रहे थे, वह तो झूठ से भरा हुआ था। लिहाजा प्रधानमंत्री की भी काफी जगहसाई हुई।
उत्तर प्रदेश चुनाव में वेमुला का मुद्दा उठना ही था और उस मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी स्मृति ईरानी का बचाव नहीं कर सकती थी। इसलिए स्मृति ईरानी को मंत्रालय से ही हटा दिया गया है। लेकिन इसमें दो प्रकार की गलतियां हुई हैं, जिनके कारण भारतीय जनता पार्टी को दलित मतदाताओं में पैठ जमाने में दिक्कत हो सकती है।
एक गलती तो यह हुई है कि यह निर्णय बहुत देर से लिया गया है। वेमुला की आत्महत्या के तुरंत बाद यदि उसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए स्मृति ईरानी से इस्तीफा करवा दिया जाता या वेमुला की मौत में मंत्रालय की भूमिका की जांच की घोषणा कर स्मृति ईरानी को वहां से हटा दिया जाता, तो भारतीय जनता पार्टी की दलितों में साख बच सकती थी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
राजनैतिक नुकसान को कम करने के लिए भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और मंत्रियों ने वेमुला को अनुसूचित जाति मानने से ही इनकार कर दिया और वे कहने लगे कि वेमुला दलित नहीं, बल्कि ओबीसी था, मानो ओबीसी की मौत एक साधारण घटना हो। भाजपा नेताओं को लगा कि उसे ओबीसी साबित कर वे दलितों के गुस्से को कम कर देंगे, लेकिन वे यह भूल गए कि उन्हें सिर्फ दलितों का मत नहीं चाहिए, बल्कि उन्हें ओबीसी का मत भी चाहिए।
वेमुला की मां दलित है और पिता ओबीसी। साधारण स्थिति में वेमुला को ओबीसी ही होना चाहिए, लेकिन उसकी मां उसके पिता से पिछले कई सालों से अलग रह रही हैं और वेमुला अपनी मां के साथ ही रहता है। इसके कारण सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के तहत वेमुला दलित ही हुआ, क्योंकि वह अपनी मां की दलित पहचान के साथ समाज में रह रहा था न कि अपने पिता की ओबीसी पहचान के साथ। इसलिए भाजपा के मंत्री और नेता वेमुला के एसएसी होने को चुनौती देकर गलतबयानी ही कर रहे थे।
जाहिर है, वेमुला की मौत के कारण भाजपा का दलित प्रेम संदिग्ध हो गया है। वैसे भी दलितों के बीच उसकी छवि पहले से ही खराब रही है। इसलिए अच्छा होता कि स्मृति ईरानी को उसी समय मानव संसाधन मंत्रालय से बाहर कर दिया जाता। पर वैसा करने में बहुत देर कर दी गई।
स्मृति ईरानी के कारण अभी भी उत्तर प्रदेश में दलितों के बीच भाजपा को दिक्कत होगी। उसका दूसरा कारण यह है कि वह अभी भी मोदी मंत्रिमंडल में बनी हुई हैं। उन्हें मानव संसाधन मंत्रालय से हटाकर कपड़ा मंत्रालय में भेज दिया गया है। उनका मोदी मंत्रिमंडल में बने रहना निश्चित रूप से एक चुनावी मुद्दा होगा और मायावती अपना दलित आधार बचाने के लिए इस मसले को जरूर उठाएंगी।
भारतीय जनता पार्टी और खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए उत्तर प्रदेश का चुनाव बहुत अहम है। यदि आज केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में है, तो उसका कारण है उत्तर प्रदेश में उसे अभूतपूर्व सफलता मिलना। प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 73 पर भारतीय जनता पार्टी और उससे समर्थित अपना दल के सांसद हैं, जबकि 400 सीटो वाली उत्तर प्रदेश विधानसभा में भाजपा के पास मात्र 42 सीटें हैं। अगले चुनाव में उसे कितनी सीटें मिलती हैं, इससे पता चलेगा कि भारतीय जनता पार्टी वहां कितने पानी में है।
लोकसभा चुनाव में भाजपा को वह सफलता नरेन्द्र मेादी की लोकप्रियता के कारण मिली थी। श्री मोदी के लिए यह चुनाव इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि उसमें उनकी लोकप्रियता जांची जाएगी। बिहार में भी भाजपा और उसकी समर्थक पार्टियों को नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता का लाभ मिला था और 40 में से 31 सीटों पर जीत हासिल हुई थी, लेकिन विधानसभा चुनाव मंे उसकी दुर्गति हो गई।
बिहार में तो भाजपा सत्ता की मुख्य दावेदार के रूप में चुनाव लड़ रही थी, लेकिन उत्तर प्रदेश में तो वह उत्तर प्रदेश के दो मुख्य दावेदारों में शामिल भी नहीं हो पाई है। इसके कारण डर यह है कि कहीं उसकी स्थिति बिहार से भी ज्यादा खराब न हो जाय। इसलिए भाजपा सबसे पहले तो वह समाजवादी पार्टी की मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरना चाहेगी और उसके बाद ही वे बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर सकती है। इसे ध्यान में रखकर स्मृति ईरानी को मानव संसाधन मंत्रालय से हटाया गया है, लेकिन इस निर्णय में हुए विलंब के कारण इसका पूरा लाभ उसे शायद ही मिल पाएगा। (संवाद)
उत्तर प्रदेश चुनाव के कारण स्मृति की बिदाई
पर यह कदम देर से उठाया गया है
उपेन्द्र प्रसाद - 2016-07-07 10:32
इसमें कोई संदेह नहीं कि स्मृति ईरानी को उत्तर प्रदेश चुनाव के कारण मानव संसाधन मंत्रालय से हटाया गया है। भारतीय जनता पार्टी वहां दलितों का वोट हासिल करने के लिए अपनी सारी ताकत का इस्तेमाल कर रही है। लेकिन मायावती द्वार वेमुला कार्ड खेले जाने के कारण भारतीय जनता पार्टी का वह खेल बिगड़ रहा था। अपने बिगड़ते खेल को बनाने के लिए ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्मृति ईरानी को वहां से हटाया।