हिज्बुल मुजाहिदीन बुढ़न वानी की सुरक्षा बलो के हाथों मौत के बाद कश्मीर की हिंसा मे 30 से भी ज्यादा लोग मारे गए हैं और 3 हजार लोग घायल हैं। घायलों में 15 सौ सुरक्षा बलों के जवान है। जाहिर है, वह अशांति व्यापक पैमाने पर है। बहुत दिनों के बाद इस तरह की अशांति वहां देखने को मिल रही है। पिछली बार 2010 में वहां इस तरह की हिंसा में 120 लोग मारे गए थे। तब केन्द्र मे मनमोहन सिंह की सरकार थी। 2010 और 2016 की अशांति की घटनाओ को अंजाम देने वाले लोगों में ज्यादातर वे लोग हैं, जो 1990 के बाद पैदा हुए हैं।
इस अशांति के अनेक कोण हैं। इसके स्थानीय कोण हैं। इसके राष्ट्रीय और अतंरराष्ट्रीय कोण भी हैं। इसमें भारत और पाकिस्तान की जुड़ी समस्या का भी कोण है। बुढ़न की मौत के बाद पाकिस्तान भी सक्रिय हो गया है। वहां बुढ़न की तस्वीरें दीवारों पर चिपकाई जा रही है। सोशल मीडिया के वाॅल पर भ बुढ़न की तस्वीरें लगाई जा रही हैं। घाटी में अशांति की घटनाओं और 30 से ज्यादा लोगों के मारे जाने के बाद पाकिस्तान इस मसले का अंतरराष्ट्रीयकरण की करने की कोशिश में एक बार फिर जुट गया है। वहां के प्रधानमत्री नवाज शरीफ ने एक बार फिर मांग की है कि कश्मीर में जनमत संग्रह हो और वहां के लोगों को यह निर्णय करने दिया जाय कि वे भारत में रहना चाहते हैं या पाकिस्तान में रहना चाहते हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की मून ने अपील की है कि सभी पक्ष शांति से समस्या का समाधान निकालें। पिछले साल सितंबर महीने में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव से मुलाकात की थी और उनसे भी आग्रह किया था कि संयुक्त राष्ट्र संघ जम्मू और कश्मीर में जनमत संग्रह करवाए और वहां के लोगों का विचार जाने कि वे भारत में रहना चाहते हैं या पाकिस्तान में रहना चाहते हैं।
कश्मीर के मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला ने चेतावनी दी है कि बुढ़न की मौत कश्मीर समस्या और भी बदतर कर सकता है। उनका कहना है कि जिंदा बुढ़न जितना खतरनाक था, उससे ज्यादा खतरनाक मरा हुए बुढ़न हो सकता है। वह सोशल मीडिया का इस्तेमाल कश्मीर के युवकों को आतंकवाद की ओर आकर्षित करने के लिए कर रहा था। मरने के बाद वह और भी ज्यादा युवकों को आतंकवाद की ओर खींच सकता है।
कश्मीर में जो हो रहा है, वह एक दिन की उपज नहीं है। समस्याओ के संकेत पहले से ही मिल रहे थे, लेकिन केन्द्र और प्रदेश की सरकारें उन संकेतों को नजरअंदाज कर रही थीं। महबूबा मुख्यमंत्री तो बनी हुई हैं, लेकिन वह स्पष्ट फैसला नहीं ले पा रही हैं। इसका कारण यह है कि वह दो पाटों के बीच फंस गई है। 2010 में उन्होंने युवकों के उस अशांत विद्रोह का समर्थन किया था और आज मुख्यमंत्री के रूप में खुद उन्हें उसी तरह के असंतोष का सामना करना पड़ रहा है। उनकी सरकार भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से चल रही है। उन्हें क्या करना है, इसे लेकर वह स्पष्ट नहीं हैं।
वही हाल केन्द्र सरकार का है। केन्द्र में बीजेपी की सरकार है और प्रदेश की सरकार में भी बीजेपी शामिल है। कश्मीर मसले पर उसकी राय पहले कुछ और थी, लेकिन इस समय कुछ और हो गई है। इसलिए वह भी दो विचारों के बीच में फंसी हुई है। इसके कारण कश्मीर समस्या और उलझती जा रही है। (संवाद)
बुढ़न वानी और कश्मीर के सवाल
केन्द्र और राज्य सरकार ने समस्या उलझाई
कल्याणी शंकर - 2016-07-15 10:50
कश्मीर एक बार फिर सुलग रहा है। वैसे तो कश्मीर पिछले ढाई दशकों से अशांत है, लेकिन बीच बीच में यहां हिंसा की आग तेज हो जाती है और अभी वह तेज हो गई है। यह 21 साल के एक हिज्बुल कमांडर की मौत के बाद हुआ है। उस कमांडर की मौत सुरक्षा बलों के हाथों एक मुठभेड़ में हुई। 21 साल का वह कमांडर बुढ़न वानी नाम का एक युवक था, जिसके पिता एक शिक्षक हैं। उसके एक भाई की मौत भी सुरक्षा बलों के हाथों हुई थी। उसके बाद वह भी आतंकवादी गतिविधियों मे शामिल हो गया और वहां के आतंकवादियों का पोस्टर बाॅय बन गया था। वह सोशल मीडिया के माध्यम से कश्मीर के युवकों को आतंकवाद के लिए आमंत्रित करता था। पुलिस से खोज रही थी और उसकी गिरफ्तारी करवाने वालों को 10 लाख रुपये दिए जाने का एलान था।