लेकिन अब स्थिति बदल गई है। न तो बहुजन समाज पार्टी को पैसे की कमी है और न ही मायावती को। इसलिए अब टिकट बेचने की बात बहुजन समाज पार्टी के नेताओं, कार्यकत्र्ताओं और समर्थकों को नहीं पच रही, क्योंकि उन्हें पता है कि अब पार्टी चलाने के लिए टिकटों की बिक्री जरूरी नहीं। टिकटों की बिक्री के साथ ही बहुजन समाज पार्टी का चरित्र बदल गया है। पहले पार्टी बहुजनों की बात करती थी, जिनमें दलित और ओबीसी दोनों शामिल थे। बसपा के समर्थकों ओबीसी लोग आर्थिक रूप से कमजोर भी थे, इसलिए वे टिकटों की नीलामी में या तो हिस्सा नहीं ले सकते थे या बोली में दूर तक नहीं जा सकता थे। इसका असर यह हुआ कि पैसे वाले अगड़ी जातियों के लोग बसपा टिकटों के एक बड़े हिस्से को कब्जियाने लगे। इससे कुल दिए गए टिकटों में ओबीसी समुदाय की भागीदारी घटती गई। दलितों की सीटें आरक्षित होती हैं। इसके कारण उनको टिकटों का नुकसान तो नहीं हुआ, लेकिन जिस विचारधारा के कारण वे बसपा से जुड़े थे, उसका अंत होता देखना उनके लिए भी पीड़ादायक था।

यही कारण है कि पहले टिकटों की बिक्री पर बुरा न मानने वाल बसपा नेता मायावती द्वारा टिकटों की अब नीलामी किए जाने से दुखी होने लगे। इसके कारण अनेक लोगों ने पार्टी छोड़ दी। पिछले दिनों इसी तरह का आरोप लगाकर स्वामी प्रसाद मौर्य ने पार्टी छोड़ी और बाद में आरके चैधरी ने भी पार्टी छोड़ दी। जिला और प्रखंड स्तर के अनेक नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है और निष्क्रिय हो गए हैं।

दयाशंकर सिंह जब कह रहे थे कि मायावती टिकटों को बहुत ही बेशर्म होकर बेचती हैं और बिके हुए टिकट को भी अधिक पैसे देने वाले को दुबारा बेच देती हैं, तो वे बसपा के अनेक नेताओं द्वारा लगाए जा रहे आरोपों को ही दुहरा रहे थे। उन्होंने गलती यह कर दी कि वे इस वाकये में वेश्या शब्द का इस्तेमाल भी कर बैठे। यह गलत था। इसके कारण उन्हें पार्टी से ही निकाल दिया गया और उन्हें मुकदमों का सामना भी करना पड़ रहा है। वेश्या शब्द गलत इस्तेमाल के अलावा दयाशंकर ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा, जिसके कारण उनकी निंदा की जाय।

लेकिन बसपा नेता दयाशंकर को दिए गए उस बयान पर अपनी राजनीति की रोटियां सेंक रहे हैं। इसके तहत संसद में हंगामा किया गया। यह गलत भी नहीं था। संसद एक ऐसी जगह है, जहां इस तरह की बयानबाजी की चर्चा की जा सकती है और इसके कारण समाज में एक अच्छा संकेत जाता है कि लोग बयानबाजी करते समय अपने शब्दों पर ध्यान दें। लेकिन मायावती ने इस मसले का सड़क पर भी उठाने का फैसला कर लिया।

उन्होंने गलती यहीं कर दी। सड़क पर उतरकर बसपा के नेताओं ने वही गलती की दी है, जिसके लिए वे दयाशंकर की आलोचना कर रहे हैं। यदि मायावती के अपशब्द का इस्तेमाल गलत है, तो दयाशंकर की मां, बहन और बेटी के लिए अपशब्द का इस्तेमाल सही कैसे हो सकता है? यह सच है कि अपशब्दों का इस्तेमाल कर बसपा नेताओ में खुद मायावती शामिल नहीं थी, लेकिन उन्होंने उसकी तत्काल निंदा नहीं की। जब दयाशंकर की पत्नी ने उस पर आपत्ति उठाई और अपनी बेटी की मनोदशा का वर्णन किया, तब मायावती ने उस तरह के गालीगलौज को गलत बताया, लेकिन साथ ही यह भी कह डाला कि दयाशंकर की पत्नी का अब अहसास हो रहा है कि किसी महिला को गाली देने पर उसका क्या दर्द होता है। इस प्रकार एक तरह से उस गंदी नारेबाजी का मायावती समर्थन भी करती दिखाई दे रही थी।

पर जब मामला पुलिस में गया, तब मायावती होश में आकर अपनी पार्टी के नेताआंे के खिलाफ नाराजगी जता रही हैं। जाहिर है, अब कानून का डर उन्हें भी है और उस नारेबाजी से अपने को अलग करने की वह कोशिश कर रही है। पर सवाल उठता है कि जब मायावती की तुलना वेश्या से करने पर भाजपा दयाशंकर सिंह को पार्टी से निकाल सकती है, तो मायावती दयाशंकर की बेटी, बहन और मां को उससे भी गंदी गंदी गालियां देने वाले बसपा नेताओं को पार्टी से क्यों नहीं निकाल सकतीं?

मायावती कह रही थीं कि यदि भाजपा के नेता दयाशकर पर उन्हें गाली देने के लिए मुकदमा करते तो वे बहुत खुश होतीं और भाजपा का आभार मानती। अब मायावती खुद क्यांे नहीं अपनी पार्टी के उन नेताओं पर मुकदमा करती है, जो दयाशंकर के परिवार की महिलाओं को सरे आम गरिया रहे थे?

जाहिर है, मायावती का दया कार्ड उलटा मार कर सकता है। इसका एक कारण तो यह है कि वेश्या शब्द के आपत्तिजनक इस्तेाल के अलावा दयाशंकर ने मायावती के खिलाफ जो कुछ भी कहा वह सत्य था और उसकी सच्चाई को खुद बसपा सुप्रीमो भी नकार नहीं सकती। बसपा के अंदर और उसके बाहर के लोग भी इस तथ्य को जानते हैं कि टिकट बेचते समय मायावती खरीदार की विचारधारा का ध्यान नहीं रखती, बल्कि सिर्फ पैसे का ध्यान रखती है और उसके कारण विचारधारा से जुड़े लोग पार्टी छोड़ते जा रहे हैं। इस घटना के बाद पार्टी छोड़ने वाले लोगों की संख्या और बढ़ेगी। अपनी जाति से बाहर मायावती के प्रति दयाशंकर के उस बयान के बाद जो सहानुभूति उमड़ी थी, वह भी दयाशंकर के परिवार की महिलाओं के लिए इस्तेमाला किए गए भद्दे शब्दों के बाद गायब हो गई है। (संवाद)