मोदी सरकार के पहले दो साल में निजी निवेश को बढ़ाने के लिए अनेक उपाय किए गए, लेकिन वे उपाय निजी क्षेत्र के निवेश को उत्साहित करने में विफल रहे। यही कारण है कि अब केन्द्र सरकार ने सार्वजनिक सेक्टर के निवेश को बढ़ाने का इरादा कर लिया है। इन्फ्रास्ट्रक्चर में भारी पैमाने पर सरकारी निवेश करने की नीति अब सरकार अपना रही है।
सच कहा जाय, तो देश की अर्थव्यवस्था वहीं फंसी हुई है, जहां यह दो साल पहले थी। हालांकि वित्तमंत्री अरुण जेटली अर्थव्यवस्था के तेज विकास के दावे कर रहे हैं और अपनी बात को साबित करने के लिए वे आंकड़े भी जारी कर रहे हैं, लेकिन उनके आंकड़ों पर ही अब लोग सवाल लगाने लगे हैं।
सच्चाई यह भी है कि पिछले दो सालों में जो अच्छी स्थिति दिख रही है, वह वर्तमान सरकार के प्रयासों का नतीजा नहीं है, बल्कि 2013 में अंतरराष्ट्रीय मंदी के हालात में देश को ठीक रखने के लिए उस समय की यूपीए सरकार ने जो कदम उठाए, उसके कारण कुछ मोर्चो पर हमें अच्छे आर्थिक आंकड़े मिल रहे हैं। थोक मूल्य सूचकांकों के आधार पर मुद्रास्फीति की दर पर लगी लगाम और विदेशी घाटे में कमी उन्हीं प्रयासों का नतीजा है, जिसका श्रेय वित्तमंत्री अरुण जेटली लेने की कोशिश कर रहे हैं।
भारतीय जिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने भी कुछ साहसपूर्ण कदम उठाए। उसके कारण देश में विदेशी मुद्राभंडार की स्थिति मजबूत हुई है। इसके कारण चालू खाते पर होने वाले घाटे में भी कमी आई है और यह घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 2 फीसदी तक सीमित हो गया है।
मोदी सरकार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में कमी आने का भी बहुत फायदा हुआ। इसके कारण विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ने वाला कम हो गया। तेल आयात बिल में भारी कमी आई। इसके कारण भी मुद्रास्फीति की दर पर लगाम लगी। इससे सब्सीडी पर होने वाले खर्च में भी कमी आई।
लेकिन अर्थव्यवस्था के अनेक सूचकांक अच्छे नहीं हैं। खुदरा कीमतें तेजी से बढ़ने लगी हैं। पिछले जून महीने में यह 5 फीसदी के पार कर गई है। हमारे निर्यातों के लिए विदेशों से होने वाली मांग कमजोर हो रही है। भारत का विकास अभी भी मानसून पर निर्भर है और इस साल मानसून पूरी तरह मेहरबान नहीं है। कहीं बहुत ज्यादा बरसात हो रही है, तो कहीं कहीं बहुत कम।
सरकारी महकमों में भी निराशा का माहौल है। उन्हें लगने लगा है कि हम जो उम्मीदें बांधे थे, वे पूरी नहीं होने जा रही हैं। मध्यवर्ग की महत्वाकांक्षा बढ़ती जा रही हैं और उन महत्वाकांक्षाओं के सामने सरकार के पहले दो सालों के प्रयास बौने साबित हो रहे हैं।
यही कारण है कि अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नीति आयोग से कहा है कि वह देश के विकास के लिए 15 सालों का एक दृष्टि पत्र तैयार करे। इस तरह का काम योजना आयोग का हुआ करता था, जिसे समाप्त कर दिया गया है। लेकिन अब प्रधानमंत्री ने भी इस बात का अहसास किया है कि योजना का कोई विकल्प नहीं है। (संवाद)
मोदी ने बदलाव के लिए योजना की जरूरत स्वीकारी
नीति आयोग को 15 साल का दृष्टिपत्र तैयार करने को कहा गया है
एस सेतुरमन - 2016-08-02 17:32
आखिरकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके वरिष्ठ सहयोगियों ने इस बात को स्वीकार कर लिया है कि न तो विकास और न ही रोजगार सृजन के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले इन दोनों पर बढ़चढ़कर बातें की जा रही थी। सबका विकास करना भारतीय जनता पार्टी का एक प्रमुख चुनावी नारा था और उसके लिए सबका साथ मांगा जा रहा था। अच्छे दिन की लाने की बात की जा रही थी और उसके लिए बेरोजगारों को रोजगार देने के वायदे किए गए थे। लेकिन अभी जिस तरह के बदलाव हो रहे हैं, उन्हें देखते हुए कहा जा सकता है कि मोदी ने जितनी उम्मीदें पैदा कर दी थीं, उन्हें वे पूरा नहीं कर सकते।