भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था संसदीय है, जिसमें संसद या विधायिकाओं को ही असली अधिकार मिला हुआ है। राष्ट्रपति और राज्यपालों को संसद और विधानसभाओं के प्रति जवाबदेह केन्द्रीय और प्रान्तीय सरकारों की सलाह पर ही काम करना होता है।
लेकिन दिल्ली एक केन्द्र शासित प्रदेश है और यहां केन्द्र का प्रतिनिधि उपराज्यपाल होते हैं, इसलिए उपराज्यपाल की ताकत किसी प्रदेश के राज्यपाल की ताकत से बहुत ज्यादा है। दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में लगभग इसी तरह की बात की है।
जब से दिल्ली में केजरीवाल की सरकार बनी है, तब से केन्द्र और दिल्ली प्रदेश की सरकारों के बीच तलवारें खिंची हुई रहती हैं। केजरीवाल की सरकार के आने के पहले भी दिल्ली की प्रदेश सरकार थी और तब भी उपराज्यपाल थे, लेकिन उस समय थोड़ा बहुत मतभेद के बावजूद मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच तालमेल बना रहता था और कोई अप्रिय स्थिति पैदा नहीं होती थी।
जमीन, पुलिस और व्यवस्था राज्यपाल के हाथों में होती थी और बाकी अन्य कामों में मुख्यमंत्री की ही भूमिका होती थी, लेकिन केजरीवाल ने उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में दखल देना शुरू किया, तो राज्यपाल ने केजरीवाल सरकार के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया।
इसके कारण दिल्ली में अजीब स्थिति बन गई है। उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में केजरीवाल सेंधमारी तो नहीं कर पाए, लेकिन उपराज्यपाल ने केजरीवाल सरकार के अनेक निर्णयों में अड़ंगा लगाना शुरू कर दिया।
इस तरह परंपरा से जो अधिकार दिल्ली सरकार के पास थे, उन्हें भी छीना जाने लगा और ऐसा करने में केन्द्र सरकार ने दिल्ली के उपराज्यपाल को भरूपर सहायता की।
उदाहरण के अंटी करप्शन ब्यूरो पहले मुख्यमंत्री के हाथों में होता था, लेकिन अब वह मुख्यमंत्री के हाथों से लेकर केन्द्र ने अपने पास रख लिया है और उसके प्रतिनिधि होने के कारण अब राज्यपाल के आदेश पर एसीबी चलता है।
पहले भी नौकरशाहों की नियुक्तियां होती थीं। नियुक्तियों मंे मुख्यमंत्री की ही चला करती थी। उपराज्यपाल उसमें हस्तक्षेप नहंीं करते थे। लेकिन अब उपराज्यपाल ने उसमें यह कहकर हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया कि यह उनके अधिकार क्षेत्र का मामला है।
केजरीवाल सरकार के अन्य अनेक फैसलों को उपराज्यपाल ने लागू होने से रोक दिया।
जाहिर है मामला हाई कोर्ट में गया, पर वहां केजरीवाल सरकार को निराश होना पड़ा है। अब आम आदमी पार्टी के के नेताओं को सुप्रीम कोर्ट का भरोसा है, जहां वे अपील करने वाले हैं, लेकिन इस बीच वे कैसे सरकार चलाएं, यह एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है।
केजरीवाल सरकार लोगों से बहुत वायदे करके सत्ता में आई है, लेकिन अब उसे पता चल रहा है कि उन वायदों को पूरा करने की शक्ति ही उनके पास नहीं है, बल्कि वह शक्ति उपराज्यपाल और केन्द्र सरकार के पास है और उपराज्यपाल उसके निर्णयों पर रोक लगाने का काम कर रहे हैं।
अब आम आदमी पार्टी के नेता दिल्ली के लोगों से कहने लगे हैं कि बिजली पानी जैसी समस्याओं के निदान के लिए वे उपराज्यपाल के पास जाएं, क्योंकि उन समस्याओं के निदान की ताकत उनके पास नहीं, बल्कि उपराज्यपाल के पास है।
आम आदमी पार्टी के नेताओं को उम्मीद है कि जिस तरह से उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश मंे सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार के निर्णयों को गलत बताते हुए आदेश जारी किए, उसी तरह दिल्ली प्रदेश की सरकार और केन्द्र सरकार के बीच शक्ति के बंटवारे के मामले में वह केन्द्र सरकार के खिलाफ आदेश जारी करेगा।
पर सवाल यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट से दिल्ली की केजरीवाल सरकार को राहत मिल पाएगी? (संवाद)
दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले से केजरीवाल सकते में
क्या सुप्रीम कोर्ट से मिल पाएगी राहत?
उपेन्द्र प्रसाद - 2016-08-06 16:15
नई दिल्लीः दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में स्पष्ट कर दिया है कि दिल्ली के प्रशासक उपराज्यपाल ही हैं और मुख्यमंत्री को उनके अनुसार ही अनुसरण करना होगा।