लेकिन सरकार की असली बड़ी चुनौती इसे अमल में लाने की है। वह कह रही है कि आगामी साल 1 अप्रैल से इसे लागू कर दिया जाएगा। तो क्या यह समझा जाएगा कि जीएसटी के अमल में आते ही कराधान की समस्या समाप्त हो जाएगी?
दरअसल इससे देश के लोगों को लाभ तभी होगा जब जीएसटी की दर कम होगी। आमतौर पर माना जा रहा है कि इसका फायदा लोगांे तक पहुंचाने के लिए इसकी दरों को 18 फीसदी तक ही सीमित रखना होगा। कांग्रेस तो मांग कर रही थी कि 18 फीसदी इसकी ऊपरी सीमा तय कर दी जाय। लेकिन वह मांग नहीं मानी गई, लेकिन सच्चाई यही है कि यदि हमें इस कर व्यवस्था का फायदा देखना है, तो दरों को 18 फीसदी से कम ही रखना होगा।
लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि केन्द्र और राज्य सरकारें कम दरों पर सहमत होती हैं या नहीं। जब दरें कम होंगी, तभी उपभोक्ताओं को लाभ होगा और वस्तुओं व सेवाओं की मांग बढे़गी। मांग बढ़ने के बाद ही उत्पादन को बल मिलेगा और इसके कारण देश का आर्थिक विकास तेज होगा। अर्थव्यवस्था को तेज विकास के रास्ते पर ले जाने के लिए बाजार का विकास होना बहुत जरूरी है और इसके लिए जीएसटी की दरों को कम रखना होगा।
यदि मांग तेज हुई और उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री बढ़ी, तो इसके कारण टैक्स राजस्व में अपने आप वृद्धि हो जाएगी। यही कारण है कि टैक्स दर बढ़ाकर अपना राजस्व बढ़ाने की जगह केन्द्र और राज्य सरकारों को टैक्स दर घटाने की नीति अपनानी चाहिए।
आमतौर पर विलासिता की वस्तुओं पर ज्यादा टैक्स की मार की जाती है, लेकिन यदि राजस्व मे वृद्घि और तेज विकास चाहिए, तो विलासिता की वस्तुओं को भी ज्यादा टैक्स की मार से मुक्त रखना होगा। यदि टैक्स बढ़ा दिया गया, तो विलासिता की उन वस्तुओं की मांग सिर्फ धनी लोगों तक ही सीमित रह जाएगी और उन वस्तुओं का बाजार भी सीमित हो जाएगा, जिसके कारण उनका उत्पादन प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता।
यदि घरेलू उत्पादन बढ़ाना है तो सभी प्रकार की वस्तुओं पर टैक्स कम लगाना होगा। मेक इन इंडिया को सफल बनाने के लिए यह जरूरी है। जब यहां उत्पादन की लागत कम होगी, तभी स्थानीय उद्यमी उत्पादन कार्यों को बढ़ाएंगे और विदेशी उद्यमी भी यहां अपने उद्योगों को लेकर आएंगे।
मुद्रास्फीति की दर सीमित रखने के लिए भी जीएसटी का कम होना जरूरी है। केन्द्र सरकार ने मुद्रास्फीति की दर को 4 से 6 फीसदी तक सीमित रखने का लक्ष्य चिन्हित किया है।
केन्द्र सरकार को टैक्स की कम दर रखने का संकेत दे रही है, लेकिन प्रदेश सरकारों के अपने एजेंडे हैं। कुछ राज्य सरकारों जीएसटी की दरों को कम नहीं रखना चाहतीं। उन्हें लगता है कि यदि ये कम रखी गई, तो उन्हें आवश्यक खर्च करने के लिए भी राजस्व हासिल नहीं हो पाएगा। यह इस तथ्य के बावजूद कहा जा रहा है कि केन्द्र सरकार ने उन्हें आश्वस्त कर रखा है कि यदि जीएसटी के कारण उनको राजस्व की हानि होती है तो उसकी पूर्ति केन्द्र की सराकर करेगी। लेकिन कोई राज्य नहीं चाहता कि वह केन्द्र से उधार लेकर खर्च करे। यही कारण है कि टैक्स की दर को ही ज्यादा रखना चाहता है, ताकि उसे पर्याप्त पैमाने पर राजस्व हासिल हो सके और अपने खर्चों को वे पूरा कर सकें।
इसलिए अनेक राज्य सरकारें चाहती है कि जीएसटी की स्टैंडर्ड दर 23 फीसदी के आसपास हो। केरल की सरकार तो चाहती है कि यह दर 24 फीसदी हो। लेकिन हमें अपने विकास के लक्ष्य को हासिल करने हैं और बाजार का विस्तार करना है, तो टैक्स की दरें कम होनी चाहिए। दरों को कम रखना अब केन्द्र सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। (संवाद)
जीएसटी कानून बनने के बाद की चुनौती
कर की दरों को कम रखना होगा
नन्तू बनर्जी - 2016-08-09 09:50
संसद द्वारा संविधान के 122वें संशोधन को पारित कर दिया गया है। राज्यसभा में इसे पास होने को लेकर असली समस्या हो रही थी। अब वह अवरोध समाप्त हो गया है और आने वाले समय में यह कानून बन जाएगा।