अब उन्होंने स्वयंघोषित गौरक्षकों के खिलाफ मुंह खोला है। उन्होंने पिछले महीने कुछ दलितों की पिटाई कर दी थी। वे दलित अपना परंपरागत काम कर रहे थे। उनका परंपरागत काम मरे हुए जानवरों के शरीर से चमड़ा निकालना है। उनकी पिटाई के बाद लगातार कई दिनों तक हंगामा होता रहा और प्रधानमंत्री भी लगातार चुप्पी बनाए रखे। लेकिन बहुत दिनों के बाद उन्होंने उस मसले पर भी चुप्पी तोड़ दी है।
इस तरह के मसलों पर प्रधानमंत्री की लंबी चुप्पी के कारण भारत की बहुत बदनामी होती है। इस चुप्पी के कारण ही न्यूयाॅर्क टाइम्स ने मोदी की चुप्पी को खतरनाक नाक चुप्पी बताया।
प्रधानमंत्री ने संघ परिवार की घर वापसी और लव जिहाद के कार्यकत्र्ताओं को शांत कर दिया है। योगी आदित्यनाथ भी चुप हैं। साक्षी महाराज को भी उन्होंने चुप कर रखा है। गौरतलब हो कि साक्षी महराज तो राष्ट्रपति गांधी के हत्यारे नाथू राम गोडसे का ही महिमामंडन कर रहे थे। फिलहाल महाराज चुप हैं। जब तब अपना मुह खोलने वाले सुब्रह्मण्यन स्वामी को भी प्रधानमंत्री ने चुप करा दिया है।
एक बात समझ में नहीं आती है कि जब संघ परिवार के आतताई अपना हिंसक कारनामा शुरू करते हैं, तो उसी समय प्रधानमंत्री क्यों नहीं उनके खिलाफ मुह खोलते हैं? वे उन्हें काफी समय दे देते हैं और इसके कारण ही संदेह पैदा होता है कि क्या वाकई प्रधानमंत्री उनलोगों के खिलाफ हैं?
संदेह व्यक्त किया जाता है कि प्रधानमंत्री उन आतताइयों के खिलाफ इसलिए मुह नहीं खोलते हैं, क्योंकि उन्हें आरएसएस का समर्थन हासिल है। प्रधानमंत्री की चुप्पी का यह नतीजा होता है कि सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गहलौत उन आतताइयों को सामाजिक संगठनों के सदस्य बता देते हैं। इसका मतलब हुआ कि मंत्रिमंडल की बैठकों में भी प्रधानमंत्री उन मसलों पर अपना मुह नहीं खोलते और मंत्रियों को यह पता नहीं होता कि प्रधानमंत्री का उन मसलों पर क्या रुख है।
प्रधानमंत्री खुद आरएसएस के प्रचारक रह चुके हैं। इसलिए उनको पता होगा कि ये आतताई कितने खतरनाक हो सकते हैं। लेकिन इसके बावजूद वे उन्हें खुला छोड़ देते हैं। जब उसका राजनैतिक नतीजा खतरनाक दिखाई पड़ने लगता है, तभी प्रधानमंत्री मोदी अपना मुह खोलते हैं। लेकिन तबतक बहुत नुकसान हो चुका होता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्मार्ट सिटी और बुलेट ट्रेन के द्वारा भारत को एक आधुनिक राष्ट्र बनाना चाहते हैं, लेकिन उनके साथ मध्ययुगीन मानसिकताओं से जुड़े लोगों की भरमार है। उनका साथ लेकर या उनपर लगाम लगाए बिना वे भारत को एक आधुनिक राष्ट्र नहीं बना सकते।
इसमें कोई शक नहीं कि यदि मोदी भगवा उग्रवादियों को अकल ठिकाने लगा देते हैं, तो देश के अन्य सभी तबके उनके साथ हो जाएंगे। हां, हिन्दुत्ववादी लोग उनके खिलाफ हो सकते हैं।
आगामी कुछ महीनों मे उत्तर प्रदेश सहित कुछ राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने उन राज्यों के चुनावों को ही ध्यान में रखकर गौररक्षकों के खिलाफ बयान दिया है। उन राज्यों में भाजपा दलितो का वोट लेने की कोशिश कर रही है। और दलितों पर इन गोरक्षकों द्वारा हमला किए जाने के कारण भाजपा के वे विरोधी होते जा रहे थे।
यदि दलित वोटों के खातिर ही प्रधानमंत्री ने गौररक्षकों के खिलाफ बयान जारी किया है, तो इसमें भी कुछ बुरा नहीं है। (संवाद)
क्या पीएम की दलित चिंता असली है?
कथित गौरक्षकों को संघ परिवार का समर्थन प्राप्त है
अमूल्य गांगुली - 2016-08-11 07:20
नरेन्द्र मोदी संघ परिवार के हिंसक लोगों के खिलाफ अपना मुंह खोलने में बहुत ज्यादा समय ले लेते हैं। जब अखलाक ही हत्या हुई थी, तो उन्होंने उसके खिलाफ एक शब्द बोलने में 10 दिन का समय ले लिया था।