सच तो यह है कि जहरीला शराब पीकर लोगों के मरने की यह कोई पहली घटना बिहार में नहीं हुई है। यदि हम पिछले 30 से 40 साल के बीच इस तरह की त्रासदियों के इतिहास पर नजर डालें, तो इससे भी ज्यादा खौफनाक घटनाएं घटी हैं। अनेक घटनाओं में गोपालगंज की इस घटना की तुलना में ज्यादा लोग मरे हैं और वे सब घटनाएं उस समय हुईं, जब बिहार में शराबबंदी नहीं थी और बाजार में सरकार द्वारा मान्यताप्राप्त दुकानों से शराब आसानी से उपलब्ध थी।

गोपालगंज में जो कुछ भी हुआ, वह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण और अफसोसजनक है। वहां के एक मुहल्ले का नाम लिया जा रहा है, जहां अवैघ शराब बहुत पहले से बनती थी और लोग उसे पीते भी थे। यह जानना जरूरी है कि वैध शराब के समानान्तर अवैध शराब कारोबारियों का घंधा भी फलता फूलता रहा है। वैध शराब से सस्ती होने के कारण अवैध शराब का सेवन वे गरीब लोग करते रहे हैं, जो महंगी होने के कारण वैध शराब की खरीद या तो नहीं सकते या जब सस्ती उपलब्ध है, तो महंगी नहीं खरीदना चाहते।

यानी शराबबंदी क पहले जो लोग अवैध तरीके से शराब बना रहे थे, उन लोगों ने अपना व्यापार शराबबंदी के इस दौर मे भी जारी रखा है। उनका धंधा बढ़ गया होगा, इसकी संभावना बहुत ज्यादा है, क्योंकि वैध शराब बंद होने के कारण अब वे लोग भी अवैध शराब के सेवन में लग गए होंगे, जिनकी क्रयशक्ति ठीकठाक है। अवैध शराब की मांग बढ़ने से उसकी कीमत भी बढ़ गई होगी और मांग को पूरा करने के लिए अवैध शराब का उत्पादन भी बढ़ गया होगा।

यहीं प्रशासन की भूमिका प्रमुख हो जाती है। शराबबंदी के बाद अवैध शराब के कारोबार की संभावना बढ़ने के साथ साथ प्रशासन की सक्रियता बढ़ना भी जरूरी है। लेकिन जब प्रशासन भ्रष्ट हो, तो प्रशासन और अवैध शराब के कारोबारियों के बीच एक नापाक गठबंधन बनने की आशंकी भी बनी रहती है। बिहार इसी आशंका के दौर से गुजर रहा है। गोपालगंज की इस घटना की सही तरीके से जांच हो, तो पुलिस- प्रशासन के साथ साथ अवैध शराब के कारोबारियों का गठबंधन सामने आ जाएगा।

जहरीली शराब से मरे एक व्यक्ति की बीवी का यह कहना सही है कि जब सबको पता है कि अवैध शराब कहां मिलती है, तो फिर यह बात पुलिस को कैसे मालूम नहीं होगी। 15 अगस्त की शाम को लोगों ने शराब पी थी और लोगों के मरने का सिलसिला अगले दिन यानी 16 अगस्त से ही शुरू हो गया। एक नया कड़ा कानून बन रहा है, जिसके तहत जिस घर में शराब पाई जाएगी, उसके सारे व्यस्क निवासियांे पर मुकदमा चलाने का प्रावधान है। इस प्रावधान के डर से शुरुआती कुछ मौतों के बाद परिवार वालों ने चुपचाप मृत व्यक्तियों का अंतिम संस्कार तक कर दिया।

मरने वालों की संख्या बढ़ी और बीमार लोगों को हाॅस्पीटल में भी भरती कराया गया, लेकिन प्रशासन ने यह मानने से ही इनकार कर दिया कि वे मौतें शराब पीने से हुई हैं। हद तो तब हो गई, जबकि पोस्ट मार्टम रिपोर्ट तक में बता दिया गया कि मृत व्यक्तियों के शरीर में अल्कोल नहीं पाए गए हैं। जब दर्जन भर से ज्यादा मृतकों के परिवार बता रहे हों कि मौत शराब पीने से हुई है, तो फिर उनकी बातों को गलत साबित करने वाले प्रशासन और पोस्ट मार्टम के दावों से साफ साबित होता है कि प्रशासन और शराब कारोबारियों के बीच नापाक गठबंधन होगा और जो शराब बनाने वाले लोग हैं, वे काफी प्रभावशाली हैं।

शराब में अरबों का रुपया है और शराब कारोबारियों की लाॅबी बहुत मजबूत है। यह लाॅबी शराबबंदी के खिलाफ अभियान चलाने के लिए इस कांड का इस्तेमाल कर रही है। वह कुछ इस तरह से बातें कर ही है कि यदि शराब आसानी से खुले बाजार में खुले रूप से उपलब्घ हो, तो इस तरह की घटना नहीं घटेगी। वे यह झूठ फैला रहे हैं, क्योंकि जिन राज्यों मंे आज शराबबंदी नहीं है, वहां भी जहरीले शराब से लोगों के मरने की खबरें आती रहती हैं। शराब लाॅबी जिस तरह से इस घटना का इस्तेमाल शराबबंदी के खिलाफ कर रही है, उससे किसी किसी को यह शक होना लाजिमी है कि कहीं इसी लाॅबी ने तो इस घटना को अंजाम नहीं दे दिया।

कौन लोग इस त्रासदी के लिए जिम्मेदार हैं, इसका पता तो जांच से ही लगेगा, लेकिन इस घटना के बाद शराबबंदी के पालन को और भी सख्त बना दिए जाने की जरूरत है। इसके लिए प्रशासन को चुस्त और दुरुस्त रहना होगा, लेकिन समस्या यह है कि हमारी नौकरशाही सुस्त, निकम्मा और भ्रष्ट है। उसे अनेक प्रकार के कानूनी संरक्षण मिला हुआ है, जिसके कारण उसकी सामाजिक और प्रशासनिक जिम्मेदारी बहुत ही कमजोर हो जाती है।

अभी जो कानून बना है, उसमें शराब पीने वालों से लेकर बनाने और बेचने वालों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है। इसमें पीने वालों पर सख्ती कम कर बनाने और बेचने वालों पर बढ़ा दी जानी चाहिए। प्रशासकों की निजी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। यदि किसी थानेदार के इलाके में शराब का निर्माण हो रहा है और वहां के लोगों को पता है, तो फिर थानेदार को भी उसके लिए जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए। बिहार में पंचायती राज भी है। प्रत्येक पंचायत के मुखिया से समय समय पर यह लिखवाते रहना चाहिए कि उसके पंचायत में शराब का उत्पादन और कारोबार नहीं होता। यदि कोई गलत साबित हो तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई की जानी चाहिए। यानी अब जरूरत शराबबंदी को और भी कड़ाई से लागू करने की है। (संवाद)