मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का अपने चाचा शिवपाल के साथ मतभेद सार्वजनिक हो जाने से न केवल मुलायम सिंह मर्माहत हुए हैं, बल्कि उसके कारण पूरी पार्टी हौसलापस्ती के दौर से गुजर रही है।
शिवपाल और अखिलेश के बीच मतभेद इतना ज्यादा बढ़ गया है कि शिवपाल अब अखिलेश के साथ मंच भी साझा नहीं कर रहे हैं। जब मंत्रिमंडल का विस्तार हो रहा था और नये मंत्री शपथ ले रहे थे, तो शिवपाल वहां भी नहीं थे।
मंत्रिमंडल की बैठकों में भी वे नहीं जा रहे हैं। शिवपाल यादव अपने ही मंत्रालयों के उस सार्वजनिक कार्यक्रम में नहीं शिरकत कर रहे हैं, जहां मुख्यमंत्री की हैसियत से अखिलेश मुख्य अतिथि बनते हैं।
उस समय पूरी पार्टी और सरकार की पूरी मशीनरी स्तब्ध रह गई, जब शिवपाल सिंह यादव ने मंत्री के पद से इस्तीफे की धमकी दे दी। उन्होंने कहा था कि अधिकारी उनका आदेश नहीं मान रहे हैं और उनके द्वारा बार बार आगाह कराए जाने के बाद भी जमीन पर कब्जा करने वाले लोगों को खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा रही है।
गौरतलब हो कि शिवपाल सिंह यादव और आजम खान नहीं चाहते थे कि अखिलेश यादव प्रदेश के मुख्यमंत्री बनें। वे चाहते थे कि मुलायम सिंह ही मुख्यमंत्री का पद संभालें।
इन दोनों नेताओं को अखिलेश को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार कराने में मुलायम सिंह को थोड़ा समय लगा था। उसके बाद ही अखिलेश का मुख्यमंत्री के रूप में शपथग्रहण कराया गया था।
उसके बाद इन दोनों नेताओं (शिवपाल और आजम खान) को अपने मंत्रालय में पूरी छूट मिली हुई थी और उनके कामकाज में मुख्यमंत्री भी कोई दखल नहीं देते थे। लेकिन अखिलेश यादव उस समय परेशान हो गए, जब उनके चाचा शिवपाल को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी का प्रदेश प्रभारी बना दिया गया। गौरतलब हो कि अखिलेश मुख्यमंत्री होने के साथ साथ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं।
समस्या उस समय शुरू हुई, जब शिवपाल ने अखिलेश के दो बेहद करीबी नेता को पार्टी से बाहर कर दिया। इससे अखिलेश इतना नाराज हुए कि वे अनेक दिनों तक सेफई महोत्सव में भी नहीं गए।
उसके बाद अखिलेश अपने पिता मुलायम को अपने दो समर्थकों को पार्टी में वापस लाने के लिए तैयार करने में सफल हुए। उन दोनों को विधानपरिषद का सदस्य भी बना दिया गया।
उसके बाद कौमी एकता दल के पार्टी में विलय को लेकर भी चाचा और भतीजा में भिडं़त हो गई। मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल का विलय शिवपाल ने समाजवादी पार्टी में करवा दिया। लेकिन अखिलेश यादव ने उस विलय को पार्टी के संसदीय बोर्ड द्वारा खारिज करवा दिया।
शिवपाल यादव को लग रहा था कि मुख्तार अंसारी की पार्टी के समाजवादी पार्टी में विलय से पार्टी को बनारस और उसके आसपास के इलाकों मंे मुस्लिम समर्थन बढ़ेगा, क्योंकि वहां मुख्तार का अच्छा प्रभाव है।
पर अखिलेश यादव अपनी छवि को लेकर बहुत चिंतित रहते हैं। उन्हें लगा कि मुख्तार को पार्टी में लेने से उनकी छवि को झटका लगेगा, इसलिए उन्होंने कौमी एकता दल के विलय की घोषणा को रद्द करवा दिया।
अमर सिंह को समाजवादी पार्टी में दुबारा लाने में शिवपाल की भूमिका रही है और उनके कारण ही अमर एक बार फिर सपा के टिकट पर राज्यसभा का सदस्य बन गए हैं।
अमर सिंह के वापस आ जाने से रामगोपाल यादव और आजम खान नाराज हो गए हैं। उनका कहना था कि अमर सिंह पिछले पाच साल से मुलायम की आलोचना कर रहे थे, इसलिए उन्हें पार्टी में फिर से लाने का फैसला गलत है।
परिवार में बढ़ते झगड़े को शांत करने के लिए मुलायम को सार्वजनिक रूप से अखिलेश को लताड़ लगानी पड़ी। उनके प्रयासों के कारण शिवपाल और अखिलेश के बीच जारी संवादहीनता समाप्त हुई और शिवपाल अखिलेश से मिलने उनके घर गए। (संवाद)
अखिलेश और शिवपाल के बीच टकराव
मध्यस्थ की भूमिका में मुलायम
प्रदीप कपूर - 2016-08-23 13:07
लखनऊः समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के सामने आज की सबसे बड़ी चुनौती अपने परिवार को एक साथ बनाए रखने की है। एक रखकर ही वे आगामी विधानसभा चुनाव का सामना दृढता के साथ कर पाएंगे।