पिछले 3 अगस्त को प्रचंड नेपाल के 39वें प्रधानमंत्री बने। नेपाली कांग्रेस के साथ वे एक गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। प्रधानमंत्री के रूप में उनका पहला कार्यकाल बहुत छोटा था। हालांकि प्रचंड को भारत विरोधी नेता के रूप में जाना जाता है, लेकिन उनका यह कार्यकाल भारत के आर्शीाद के साथ शुरू हुआ है। नेपाल के नेताओं के साथ बातचीत में मध्यस्थ के रूप मे एनसीपी के नेता डीपी त्रिपाठी ने भूमिका निभाई। उसके कारण ही ओली की सरकार हटी और प्रचंड सत्ता मे आए। माना जा रहा है कि ओली के कार्यकाल मंे भारत और नेपाल के बीच का संबंध अपने सबसे नीचले पायदान पर था। उम्मीद की जा रही है कि प्रचंड के कार्यकाल में दोनों देशों के बीच संबंध सुधरेंगे।

प्रचंड के सामने अनेक चुनौतियां हैं। पहली चुनौती तो शांति प्रक्रिया को पूरा कर शांति की बहाली है। दूसरी चुनौती संविधान को लागू कराने की है। तीसरी चुनौती एक अच्छा प्रशासन देने की है, तो उनकी चैथी चुनौती अर्थव्यवस्था में सुधार की है। और उन सबके ऊपर भारत और चीन के रिश्ते को सुसंगत बनाना भी उनके लिए एक कठिन चुनौती है।

अपने एक इंटरव्यू में प्रचंड ने कहा है कि अब वे राजनैतिक रूप से परिपक्व हो गए हैं और प्रतिस्पर्धी राजनीति की विवशता को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। उन्होंने इस लेखक से बातचीत में पिछले साल कहा था कि उन्होंने अपरिपक्वता के कारण कुछ गलत निर्णय लिए थे। गिरिजा प्रसाद कोयराला को राष्ट्रपति नहीं बनाना उनकी भूल थी। सेना प्रमुख को बर्खास्त कर उन्होंने गलती की थी। उन्होंने कहा था कि यदि समय मिला तो वे अब उस तरह की गलती नहीं करेंगे। वे अब पहले की तरह भारत विरोधी भी नहीं हैं। इसीलिए अब भारत भी उनका समर्थन करता है। इस बार सत्ता पाने के बाद उनकी पहली विदेश यात्रा भारत होगी, जबकि पहली बार उनकी पहली विदेश यात्रा चीन थी।

दुबारा सत्ता में आने के बाद उन्होंने ओली सरकार से अलग रूख दिखाना शुरू कर दिया है। उन्होंने संविधान में संशोधन कर मधेशियों की मांगों को समाहित करने का वायदा किया है। समाज के सभी लोगों को अपने साथ ले जाने की बात भी वे कर रहे हैं। उन्होंने उपप्रघानमंत्री बिमलेन्द्र दीप्ति को अपना विशेष दूत बनाकर भारत भेजा है। निधि नेपाली कांग्रेस की हैं। उन्होंने घोषणा की है कि भारत के साथ वे बेहतर संबंध बनाएंगे और चीन व भारत के साथ समान दूरी बनाकर चलने का काम करेंगे। अपनी इस नीति के तहत उन्होंने अपनी पार्टी के वित्त मंत्री को चीन भेजा है।

निधि का भारत में चार दिनों का दौरा हुआ। उस दौरे में निधि ने भारत को आश्वस्त करने की कोशिश की कि नेपाल उसके साथ सभी मसलों पर सहयोग करेगा और भारत के साथ अपने संबंधों को सामान्य बनाने की भी कोशिश करेगा। गौरतलब हो कि नये संविधान के लागू होने के साथ ही भारत के साथ नेपाल के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए थे। भारत आकर निधि ने भारत के लगभग सभी बड़े और महत्वपूर्ण नेताओं से मुलाकात की। उनका मिशन प्रचंड की यात्रा के लिए भारत में एक बेहतर माहौल बनाना था। प्रचंड अगले महीने भारत आ रहे हैं। अपनी इस यात्रा में प्रचंड भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को नेपाल यात्रा का निमंत्रण देंगे और भारत के साथ अपने देश के मतभेदों को समाप्त करने की कोशिश करेंगे।

नई दिल्ली ने नेपाल के प्रति अपनी शुभकामना का इजहार किया है और सभी प्रकार के समर्थन का वायदा भी किया है, लेकिन दोनों देशों का संबंध कौन सी दिशा पकड़ता है, यह बहुत हद तक नेपाल की अंदरूनी राजनीति पर निर्भर करता है। लेकिन भारत को प्रचंड की इस यात्रा को सफल बनाने की कोशिश करनी चाहिए। (संवाद)