बाढ़ की खबरें हर साल मानसून के दौरान देश के विभिन्न क्षेत्रों से आती हैं और भारत जैसे विशाल देश मे यह स्वाभाविक भी है। चूंकि इस साल बारिश सामान्य से थोड़ी ज्यादा हुई है, लिहाजा बाढ़ की ज्यादा खबरें स्वाभाविक है। लेकिन ज्यादा समस्याएं बारिश के पानी के असंतुलित वितरण से पैदा हो रही है। बाढ़ का पानी वहां भी पहुंचा है, जहां बरसात कम हुई है। जाहिर है, इसके लिए सिर्फ मॉनसून को दोषी नही ठहराया जा सकता। पिछले कुछेक वर्षों में बाढ़ के पैटर्न को देखते हुए कहा जा सकता है कि जल प्रबंधन में लगातार हो रही चूक से यह संकट बढ़ा है।
भारतीय उपमहाद्वीप एक बहुत बड़ा भूभाग है और हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि किसी भी वर्ष हर जगह सामान्य बारिश होगी। वास्तव में हम जिसे भारत की सामान्य वर्षा कहते है, वह अनेक वर्षों का औसत निकालकर तय की गई है, और ठीक उतनी वर्षा शायद किसी भी साल नही हुई है। ऐसे में किसी इलाके में ज्यादा और किसी इलाके मे कम बारिश हर साल होगी। इस साल मौसम विभाग का सामान्य से ज्यादा बारिश का अनुमान सही होते दिख रहा है, फिर भी देश के कई हिस्सो में सामान्य से काफी कम बारिश भी रिकॉर्ड की गई है। इसके अलावा, पिछले कुछ वर्षों से मौसम में बदलाव, यानी ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बारिश ज्यादा अनियमित होने लगी है।
इन तमाम वजहों से पानी का सही प्रबंधन ज्यादा जरूरी है, ताकि बाढ़ से नुकसान न हो और पानी का संग्रह भी किया जा सके। यह दोनों बातें जुड़ी हुई है। पानी को रोकने और संग्रह करने के जरुरी इंतजाम नहीं किए गए हैं और पुराने इंतजाम कथित विकास की भेट चढ़ गए है, इसलिए बारिश का अतिरिक्त पानी बाढ़ पैदा करता है और बारिश के खत्म होने पर पानी की किल्लत पैदा हो जाती है।
इस सिलसिले में गंगा नदी में भर जाने का हवाला देते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बडे सवाल की ओर देश का ध्यान खींचा है। उनका कहना है कि गंगा में गाद भर जाने से उसकी गहराई कम हो गई है और बाढ़ आ गई है। उन्होंने फरक्का बांध का मुद्दा उठाया है। उनका कहना है कि इस बांध की वजह से गंगा नदी में लगातार गाद जमने लगी है, जिसके चलते नदी की गहराई बहुत कम हो गई है। बिहार के 12 जिलों में आई भीषण बाढ़ इसी का नतीजा है। नीतीश ने कहा है कि या तो फरक्का बांध को तोड़ दिया जाए, या गंगा तथा अन्य नदियों में जमी गाद की सफाई का एक बडा कार्यक्रम तत्काल शुरू कर दिया जाए। इसके बावजूद कुछ क्षेत्रों में बाढ़ को आने से रोकना तकरीबन नामुमकिन है, इसलिए बजाय उसे रोकने के उससे नुकसान न हो, ऐसे इंतजाम किए जाने चाहिए। जबकि कई जगह ऐसा भी हुआ है कि बाढ़ से बचने के लिए किए गए अवैज्ञानिक इंतजामों ने बाढ़ का खतरा और उससे होने वाला नुकसान कही ज्यादा बढ़ा दिया है।
नीतीश कुमार ने नदियों की सफाई का सवाल उठाया है लेकिन सचाई यह भी है कि गाद से सिर्फ नदियों की ही गहराई नहीं घटी है, बल्कि तमाम शहरों, कस्बों और गांवों में तालाब, झील, कुएं, नाले आदि भी या तो पट गए हैं या पाट दिए गए हैं। उन पर आधुनिक विकास के प्रतीक शॉपिंग मॉल या बहुमंजिला आवासीय इमारतें खडी हो गई हैं। शहरों का निकासी तंत्र बेहद कमजोर हो गया है। इसलिए जगह-जगह पानी का विध्वंस देखने में आता है। इसकी एक बडी और भयावह मिसाल हम पिछले वर्ष चेन्नई जैसे महानगर में भी देख ही चुके हैं, जहां बेमौसम भीषण वर्षा से जलप्रलय जैसे हालात बन गए थे, जिसकी वजह से सैकडों लोग मारे गए थे, हजारों लोग बेघर हो गए थे और अरबों की संपत्ति बर्बाद हो गई थी। वैसे औसत से थोड़ी ज्यादा बारिश भी बड़े शहरों का जीवन अस्त-व्यस्त कर देती है। पिछले महीने गुड़गांव और बेगलुरू इसकी मिसाल बने हुए थे।
विशेषज्ञ लगातार चेतावनी दे रहे है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से वर्षा का चक्र प्रभावित हो रहा है, इसलिए बाढ़ का खतरा पहले से कहीं ज्यादा भयावह रूप ले सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार बाढ़ की प्रवृत्ति, प्रकृति और बारंबारता में लगातार बदलाव आएगा और इसमें वृद्धि भी होगी। इसलिए वैज्ञानिकों का मानना है कि पारंपरिक जल स्रोतों को हमें हर हाल में फिर से मजबूत बनाना होगा। यह तभी संभव है जब विकास योजनाओं का स्वरुप बदले।
अब वक्त आ गया है कि भारत में जल प्रबंधन को अनियमित और फौरी तौर-तरीकों से निजात दिलाई जाए और एक दूरगामी नीति के तहत काम किया जाए। पिछले कई वर्षों से भारत के तमाम ग्रामीण इलाकों के अलावा कई महानगर बाढ़ की चपेट मे आ चुके है। इसी के साथ-साथ जल संकट भी बढ़ रहा है। अब भी अगर सरकार और समाज ने गंभीरता से उपाय नहीं किए तो बाढ़ और सूखा देश की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा बोझ बन जाएंगे। दुनिया में मौसम का चक्र जिस तरह से बदल रहा है, उसके रहते जल प्रबंधन को नेशनल एजेंडा बनाकर इसके तहत दूरगामी नीतियां बनानी होगी। सभी बाढ़ नियंत्रण योजनाओं को इसका हिस्सा बनाना होगा। इसके लिए केंद्र और राज्यों में समन्वय होना चाहिए। साथ ही एक सक्षम आपदा प्रबंधन आपदा प्रबंधन तंत्र भी विकसित किया जाना चाहिए। प्रकृति के मिजाज को पहचानकर उसके साथ जीने की कला हमें नए सिरे से सीखने की जरुरत है।(संवाद)
यह आपदा सिर्फ कुदरती नहीं
प्रकृति के साथ जीने की कला हमें नए सिरे से सीखने की जरुरत है
अनिल जैन - 2016-09-03 10:59
इस समय लगभग आधा भारत भारी बारिश और बाढ की चपेट में है। हिमालय से लेकर गंगा के मैदानी इलाकों सहित मध्य प्रदेश, राजस्थान और यहां तक कि गुजरात के भी कई इलाके तबाही झेल रहे हैं। बाढ प्रभावित राज्यों से लगातार लोगों के मरने की खबरें आ रही हैं। हजारों लोग बेघर होकर राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं। लाखों एकड खेत पानी में डूब गए हैं और फसलें चैपट हो गई हैं। इस पूरी विनाशलीला को कुदरत का प्रकोप बताया जा रहा है। लेकिन यह अधूरा सच है। पूरा सच यह है कि यह कुदरत का प्रकोप तो है ही लेकिन यह मानव निर्मित त्रासदी भी है जो हमारे आधुनिक विकास की अवधारणा पर सवाल खडे करती है।