सर्वे के नतीजे यह भी कहते हैं कि यदि आज लोकसभा के चुनाव हो जाएं, तो भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं प्राप्त होगा। 2019 में क्या होगा, उसके बारे में अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि लोगों का मूड अब तेजी से बदल जाता है और एक साल के नतीजे दूसरे साल ठीक वैसे ही आएं, कोई दावे से नहीं कह सकता।
लेकिन इतना तो यह है कि 2019 का चुनाव जीतने के लिए मोदी को अपने कौशल का पूरा इस्तेमाल करना होगा। उन्हें राजनीति, कूटनीति, राजनय और प्रशासन के हर मोर्चे पर कामयाबी हासिल करनी होगी। उन्हें उन लुभावनी घोषणाओं को तेजी से पूरा करना होगा, जिसके आधार पर उन्होंने लोगों का मत जीता था और सरकार बनाई है।
उन्हें धैर्य से भी काम करना होगा। जिस तरह से उन्होंने धैर्य रखकर जीएसटी विधेयक को पारित करवाया, अपने उसी कौशल को उन्हें अन्य मोर्चों पर भी दिखाना होगा। उनके सामने अनेक प्रकार की चुनौतियां हैं। उन्हें सीमा पा आतंकवाद से जूझना होगा। आर्थिक अस्थिरता की समस्या से देश को छुटकारा दिलाना होगा। सामाजिक उथलपुथल का भी ध्यान रखना होगा और देश में सांप्रदायिक सौहार्द बना रहे, इसे भी सुनिश्चित करना होगा।
लोग लगातार अधीर हो रहे हैं। वे एक दूसरे से पूछ रहे हैं कि क्या उनके अच्छे दिन आ गए। वे 15 लाख प्रत्येक एकाउंट में डालने की बात भी कर रहे हैं। वे यह जानना चाह रहे हैं कि क्या रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं। उनकी निराशा भी बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि प्रत्येक छह महीने बीतने के बाद उनकी और उनकी सरकार की लोकप्रियता थोड़ी गिर जाती है।
मोदी के लिए राहत की बात यह है कि उन्हें चुनौती देने वाला कोई नेता अभी नहीं दिखाई दे रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी, जयललिता और नवीन पटनायक अपने अपने राज्यों में नरेन्द्र पर बहुत ही ज्यादा भारी पड़े थे। दिल्ली विधानसभा के लिए पिछले साल हुए चुनाव में अरविंद केजरीवाल भी मोदी पर भारी पड़ गए थे। लेकिन ये तीनों क्षेत्रीय नेता राष्ट्रीय स्तर पर अभी भी मोदी के लिए कोई चुनौती पेश करने की स्थिति में नहीं हैं। हां, एक समय लग रहा था कि राहुल गांधी नरेन्द्र मोदी के लिए चुनौती बनकर उभर सकते हैं, लेकिन बाद में लगने लगा कि अभी भी श्री गांधी को और मेहनत करने की जरूरत है।
वैसे कुछ लोग कह रहे हैं कि पिछले 6 महीने में मोदी सरकार कुछ बेहतर करने लगी है। लेकिन मोदी के लिए चिंता की बात यह है कि महंगाई फिर से तेज होने लगी है और लोग बेरोजगारी और गरीबी से निजात नहीं पाते दिख रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी राज्यसभा में भारी अल्पमत में है। अपने सहयोगी दलों के साथ भी वह बहुमत से नीचे है। इसलिए उसे विधेयक पास कराने में एड़ी चोटी का पसीना एक करना होता है।
राजनैतिक पंडित कह रहे हैं कि कोई विकल्प नहीं होना मोदी की सबसे बड़ी मजबूती है। न तो उनकी अपनी पार्टी के अंदर उनका कोई विकल्प है और न ही पार्टी के बाहर उन्हें कोई चुनौती देने वाला है। लेकिन अगले कुछ महीनों मंे उनकी पार्टी और खुद उनके सामने देश की समस्याओं से जूझने की ऐसी चुनौतियां आएंगी, जिन पर काबू पाना उनकी अपनी लोकप्रियता बनाए रखने के लिए भी जरूरी होगा।(संवाद)
अनेक मोर्चे पर विफल हो रहे हैं मोदी
आने वाले दिनों में भाजपा को मिलेगी कड़ी चुनौतियां
हरिहर स्वरूप - 2016-09-06 08:04
नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल का लगभग आधा समय पूरा करने वाले हैं। अनेक अखबार और समाचार चैनल उनके, उनकी सरकार और उनकी पार्टी के बारे में लोगों का मूड जानने के लिए सर्वे करवा रहे हैं। अनेक सर्वेक्षणों के नतीजे सामने भी आ गए हैं। सभी सर्वेक्षणों के नतीजे कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अब उतने लोकप्रिय नहीं रहे, जितने वे 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले थे। लेकिन नतीजे यह भी कहते हैं कि लोकप्रियता के मामले में वे अभी भी अपने सभी राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों से आगे हैं।