सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने टाटा ग्रुप की 15 अरब रुपये के मुआवजे की मंशा पर पानी फेर दिया है। लेकिन इसका बहुआयामी असर दिखाई पड़ने लगा है। यह असर राजनैतिक, आर्थिक और प्रशासनिक स्तरों पर देखा जा सकता है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि सरकार द्वारा सिंगूर में जमीन का अधिग्रहण नियम कायदों का उल्लंघन करते हुए किया गया था।
इसके कारण सीपीएम को भी करारा झटका लगा है, क्यांेकि उस समय उसी की सरकार थी। इस समय पार्टी के सेंट्रल कमिटी के साथ प्रदेश की स्थानीय ईकाई का वैचारिक संघर्ष चल रहा है। इस संघर्ष में स्थानीय ईकाई अब कमजोर हो जाएगी।
प्रशासनिक स्तर की बात करें, तो प्रदेश सरकार अब किसानों को 996 एकड़ जमीन वापस करना चाहती है। ये वे किसान हैं, जिन्होंने मुआवजा नहीं लिया था, पर अब वे जमीन के अलावा और भी बहुत कुछ लेना चाहते हैं।
उनका कहना है कि उन्होंने अपनी जमीन खो दी थी और 10 सालों तक कोई मुआवजा भी नहीं लिया। 10 सालों तक बिना जमीन को होने का वे मुआवजा चाहते हैं। उनका यह भी कहना है कि उन्होंने जमीन के अधिग्रहण के खिलाफ हो रहे संघर्ष में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था और उसके कारण ही प्रदेश में ममता बनर्जी मुख्यमंत्री बनी।
उनका कहना है कि आर्थिक रूप से उनका भारी नुकसान हो चुका है। इसलिए यदि उन्हे कोई मुआवजा भी मिलता है तो वह 2006 वाली दर पर नहीं मिलना चाहिए, बल्कि 2016 वाली दर पर मिलना चाहिए।
दूसरी तरफ जिन लोगों ने मुआवजा ले लिया था, वे काफी फायदे मे रहे। उन्हें 15 लाख रुपये से लेकर 45 लाख रुपये का मुआवजा मिला था। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद उन्हें भी जमीन वापस मिल जाएगी। यानी उन्हें मुआजवा भी और जमीन भी और जिन्होने उस समय मुआवजा लेने से इनकार कर दिया था, उन्हें सिर्फ जमीन ही मिल पाएगी। इसलिए उनमें भारी असंतोष है और जमीन के साथ साथ मुआवजा भी चाहते हैं और वह भी 2006 नहीं, बल्कि 2016 की दर पर।
इसलिए जब अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उत्साह से भर कर जमीन वापसी करने लगे, तो एकाएक उनका उत्साह मिट्टी में मिल गया। उन्होंने किसानो को जमीन देने के लिए कई कैंप खोल रखे थे। लेकिन जब मुआवजा नहीं लेने वाले किसानों ने अपनी मांगें सामने रखीं, तो उन्हें अपना कैंप बंद करना पड़ा। अब वे मुख्यमंत्री के आदेश का इंतजार कर रहे हैं, जो इस समय व्यापारियों और उद्यमियों की एक टीम लेकर जर्मनी का दौरा कर रही हैं।
ममता बनर्जी सिंगूर फैसले के लिए एक बड़ा उत्सव आयोजित करना चाहती थी, लेकिन अब नई मांग उठने के बाद उन्हें उत्सव मनाने के लिए और भी इंतजार करना होगा। जो मांग कर रहे हैं, वे सभी के सभी तृणमूल कांग्रेस के समर्थक हैं। उन्हें नाराज रखकर सरकार और पार्टी उत्सव नहीं मना सकती।
दिलचस्प यह है कि ममता बनर्जी के साथ जर्मनी की यात्रा में शामिल उद्यमियों में टाटा ग्रुप के प्रबंधक भी हैं। मुख्यमंत्री और कुछ अन्य तृणमूल नेताओं ने कहा भी है कि उनका टाटा ग्रुप से कोई झगड़ा नहीं है। उनका विरोध पूर्ववर्ती वाम मोर्चे की सरकार के साथ था, जिसने अधिग्रहण का गलत तरीका अख्तियार किया।(संवाद)
सिंगूर पर सुप्रीम कोर्ट आदेश
इसने भानुमति का पिटारा खोल दिया है
आशीष बिश्वास - 2016-09-07 10:03
लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के सिंगूर पर फैसले के बाद तृणमूल कांग्रेस और उसकी सरकार समय से पहले ही उत्सव के मूड में आ गई है।