पिछले ढाई दशकों से इस विवाद में सुप्रीम कोर्ट को भी दखल देना पड़ रहा है। कावेरी नदी प्राधिकरण का गठन इस समस्या को सुलटाने के लिए किया गया है। लेकिन उन दोनों के आदेशों के बावजूद जब तब तनाव उभर ही जाते हैं और दक्षिण भारत के दोनों राज्यों के बीच तलवारें खिंच जाती हैं।

अभी ताजा विवाद सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद पैदा हुआ है। उस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार को आदेश दिया है कि वह 10 दिनों के अंदर तमिलनाडु के लिए 15 क्यूसेक पानी छोड़े। तमिलनाडु के किसानों को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश जारी किया था।

कावेरी जल न्यायाध्किारण ने 2007 में एक आदेश जारी किया था, जिसके तहत कर्नाटक को 192 टीएमसी पानी तमिलनाडु को देना है। यदि बरसात अच्छी हुई हो और नदी में पानी की कमी नहीं हो, तब तो कोई समस्या नहीं होती है, लेकिन जब नदी में पानी कम आता है, इस आदेश को मानने में समस्या आने लगती है।

हमारे देश में अनेक राज्यों के बीच जलविवाद चलता रहता है। देश की अधिकांश नदियां एक से अधिक राज्यों से गुजरती हैं। जिस राज्य से नदी पहले गुजरती है, उसे तो ज्यादा समस्या नहीं होती, लेकिन जो राज्य बाद में आते हैं, उनकी शिकायत रहती है कि पहले वाले राज्य ने उनके लिए नदी में पानी रहने ही नहीं दिया।

इस तरह की समस्या बहुत ही पुरानी है। हरियाणा और पंजाब के बीच जमुना और सतलज नदी के पानी के बंटवारे का हल आज तक नहीं हो सका है। महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के बीच भी इस तरह की समस्या है। इसी तरह की समस्या अब आंध्र प्रदेश और उससे अलग होकर बने तेलंगाना के बीच पैदा होने वाली है।

जब कभी सूखा पड़ता है तो तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच जबर्दस्त तनाव होता है। पानी एक भावनात्मक मुद्दा भी है, इसलिए इसके कारण भाषाई तनाव भी पैदा होने लगते हैं। इसके कारण राजनैतिक दलो के नेता विवके को ताक पर रख कर अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने लगते हैं। सभी पार्टियां दिल्ली पर दबाव डालने लगती हैं।

कावेरी जल विवाद अंग्रेज के जमाने से ही चल रहा है और इसके सवा सौ साल हो चुके हैं। कावेरी नदी पश्चिमी घाट से निकलती है और 800 किलोमीटर चलकर पूर्वी घाटी को पार करती हुई बंगाल की खाड़ी में जाकर मिल जाती है। इसकी 320 किलोमीटर लंबाई कर्नाटक में है, तो 416 किलोमीटर लंबाई तमिलनाडु में हैं। 64 किलोमीटर यह कर्नाक और तमिलनाडु की सीमा बनाती है।

अंग्रेजों के जमाने में मद्रास प्रेसिडेंसी और मैसूर रियासत के बीच एक समझौता 1924 में हुआ था, जिसके तहत जल का बंटवारा होता था। वह समझौता 50 साल के लिए था और उसकी अवधि 1974 मे पूरी हो गई। उस समय तक कर्नाटक और तमिलनाडु नाम के दो प्रदेश अस्तित्व में आ गए थे। 1974 के बाद इस विवाद ने बहुत ही गंदा रूप लेना शुरू कर दिया।

विवाद को हल करने के लिए कावेरी जल न्यायाधिकरण का गठन 1990 में हुआ। दोनों पक्षों के पक्ष के 17 सालों तक सुनने के बाद 2007 में न्यायाधिकरण ने जल बंटवारे का फार्मूला 2007 में पेश कर दिया। इसके तहत तमिलनाडु को 419 टीएमसी, कर्नाटक को 270 टीएमसी, केरल को 30 टीएमसी और पुदुच्चेरी को 7 टीएमसी पाटी दिया गया है।

विवाद बढ़ने का एक कारण आबादी का बढ़ जाना भी है। ऐसी फसलें भी समस्या का कारण हो गई हैं, जिन्हें उगाने के लिए ज्यादा पानी चाहिए। 1991 में 50 लाख लोग कावेरी के पानी पर निर्भर थे। लेकिन अब वैसे लोगों की संख्या बढ़कर 3 करोड़ हो गई है। इस समस्या को हल करने के लिए अब केन्द्र सरकार को कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड का गठन कर देना चाहिए।(संवाद)