हारने के बावजूद डीएमके के लिए यह चुनाव उतना खराब नहीं रहा, जितना 2011 का चुनाव था। उसमें उसे मात्र 23 सीटों पर ही जीत हासिल हुई थी, जबकि इस बार उसकी सीटों की संख्या बढ़कर 98 हो गई। इस बार विधानसभा में उसके नेता स्टालिन हैं और वे विधानसभा के सत्र के दौरान हंगामा खड़ा करना का मौका कभी नहीं चूकते। सच तो यह है कि बिना मौका मिले हुए भी वे हंगामा खड़ा करने लगते हैं। इसके लिए वे कोई न कोई बहाना खोज ही लेते हैं।
लेकिन विधानसभा में एक के बाद एक हो रहे हंगामों के लिए आल इंडिया अन्ना डीएमके के विधायकांे को भी पूरी तरह दोषमुक्त घोषित नहीं किया जा सकता। वे डीमके के नेताओं के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियां करते हैं। उन टिप्पणियों को विधानसभा की कार्रवाही के रिकाॅर्ड से बाहर करने की मांग डीएमके के विधायक करते हैं। उनकी मांग नहीं मानी जाती है और सदन मे हंगामा होता रहता है।
अब डीएमके को एक और मौका मिल गया है प्रदेश में अपनी ताकत के प्रदर्शन का। कुछ गैरराजनैतिक संगठनों में कर्नाटक में हो रहे आंदोलन से वहां रह रहे तमिलों के नुकसान के खिलाफ तमिलनाडु बंद का आह्वान कर दिया, तो उसमें डीएमके पूरी ताकत से कूद पड़ी। करुणानिधि की डीएमके के साथ साथ चुनाव में हारी अन्य राजनैतिक पार्टियां भी उस बंद में शामिल हो गईं।
इस बंद की कोई जरूरत नहीं थी। सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया, वह तमिलनाडु के पक्ष में था। इससे तमिलनाडु के लोग खुश हुए और कर्नाटक के लोगों को यह फैसला नागवार गुजरा। वे गुस्से में इस फैसले के खिलाफ आंदोलन करने लगे, लेकिन तमिलनाडु को आंदोलन करने की कोई जरूरत ही नहीं है।
कर्नाटक की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन किया और तमिलनाडु को पानी मिला। कनार्टक के लोगों ने आंदोलन किया और वहां की सरकार कानून व्यवस्था बनाए रखने में सफल नहीं हुई। सवाल उठता है कि वहां कानून व्यवस्था की विफलता से तमिलनाडु में उसी तरह की अव्यवस्था पैदा करना कहां तक तर्क संगत है? कर्नाटक के बंद के खिलाफ तमिलनाडु बंद का आह्वान करना इसलिए विवेकहीनता भरा कदम था कि इससे वहां का आंदोलन और तेज होने का खतरा पैदा हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश के खिलाफ किसी तरह के आंदोलन को गैरकानूनी करार दिया है और राज्य सरकार को कहा है कि वह आंदोलनकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे और कानून व्यवस्था की स्थिति को बिगड़ने न दे।
सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश 15 सितंबर को आया था। उसके बाद तो 16 सितंबर के प्रस्तावित आंदोलन को वापस ले लिया जाना चाहिए था, क्योंकि तमिलनाडु का यह बंद सुप्रीम कोर्ट के फैसले का नतीजा ही माना जाएगा। (संवाद)
एक दिन का तमिलनाडु बंद
डीएमके का राजनैतिक खेल
एस सेतुरमन - 2016-09-18 02:17
पिछले विधानसभा चुनाव में हारने के बाद डीएमके के नेता करुणानिधि और उनके बेटे स्टालिन इतने हताश हो गए हैं कि अब उनका सिर्फ एक ही काम रह गया है और वह है किसी भी तरह मुख्यमंत्री जयललिता को परेशान करना।