आगामी वित्तीय वर्ष के पहले दिन यानी एक अप्रैल से देश भर मंे वस्तु सेवा कर भी लागू किया जा रहा है। बजट संबंधित ताजा सुधार और वस्तु सेवा कर के प्रावधान के साथ साल 2017 देश के आर्थिक इतिहास में मील का एक पत्थर साबित होने वाला है। कहने की जरूरत नहीं कि पिछले 25 सालों के दौरान सरकार द्वारा किया गये गए दो सबसे बड़े आर्थिक सुधारों का शुरू करने का साल होगा।

केन्द्र सरकार बारी बारी से दो बजट संसद में पेश करती है। पहले रेल बजट पेश किया जाता है और उसके बाद आम बजट पेश किया जाता है। आखिर एक सरकार को दो बार बजट पेश करने की जरूत क्यों? हम यह भी नहीं कह सकते कि रेल बजट इसलिए पेश किया जाता है, क्योंकि इसमें राशि बहुत बड़ी होती है। सच तो यह है कि रेल बजट से ज्यादा बड़ा रक्षा बजट होता है।

रेल बजट को अलग से पेश करने की परंपरा बैकवर्थ समिति की सिफारिशों को मानते हुए 1924 में शुरू की गई थी। समिति चाहती थी कि रेल पर सरकार अलग से ध्यान दे, क्योंकि उस समय रेल का बहुत बड़ा सामरिक महत्व अग्रेज हुकूमत के लिए था। गांधीजी उसके कुछ पहले ही देश की आजादी की लड़ाई का नेतृत्व कर रहे थे। पहले चंपारण में उनके नेतृत्व में बड़ा आंदोलन हुआ था। उसके बाद खेड़ा आंदोलन हुआ। फिर उन्होंने असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया। उसके दौरान चैरीचैरा कांड हुआ, जिसमे लोगों ने थाने पर हमला कर अनेक पुलिस वालों को मार डाला था।

आजादी की लड़ाई का नेतृत्व गांधीजी के हाथों में आते ही देश के लोगों में जबर्दस्त राजनैतिक जागरूकता आई और 1857 की याद कर अंग्रेज हुकूमत सिहर उठे थे। किसी संभावित विद्रोह को दबाने के लिए सेना का एक जगह से दूसरी जगह तेजी से पहुंचना जरूरी था और इस काम के लिए अंग्रेज हुकूमत मुख्य रूप से रेल पर निर्भर थे। भारत के प्राकृतिक संसाधनो का शोषण करने के लिए भी सबसे ज्यादा इस्तेमाल रेल का ही हो रहा था। जाहिर है, आर्थिक और सामरिक दोनों नजरियों से रेल अंग्रेज हुकूमत के लिए बहुत महत्वपूर्ण थी। यही कारण है कि अंग्रेज सरकार इस पर विशेष ध्यान दे रहे थे और इसीलिए उसके लिए अलग से बजट पेश करने का प्रावधान किया गया और 1924 से वह परंपरा शुरू हो गई, जिसे 2017 से समाप्त किया जा रहा है।

यह आश्चर्य की बात नहीं है कि रेल बजट को आजादी के बाद भी अलग क्यों रखा गया। दरअसल हमने अंग्रेजो के काल की अनेक परंपरा को जारी रखा। अंग्रेजों के काल में बजट साढ़ पांच बजे पेश किया जाता था, क्योंकि तब इंग्लैंड में 12 बज रहा होता था। जाहिर है, वह समय इंग्लैंड की घड़ी को ध्यान मे रखकर तय किया गया था। पर हम इंग्लैंड से मुक्त होने के बावजूद उसकी घड़ी से बंधे रहे और कुछ साल पहले ही साढ़ पांच बजे बजट पेश करने की परंपरा को समाप्त किया गया। अलग से रेल बजट जारी करने की परंपरा को हमने फिर भी जारी रखा।

रेल बजट का कितना राजनैतिक इस्तेमाल किया गया है, वह हम पिछले दो दशकों से देख चुके हैं। रेल मंत्री अपने राजनैतिक फायदे के लिए रेल की अपनी जरूरतों को नजरअंदाज करते हुए अनेक बार बजट तैयार और पेश करता रहा है। नई नई गाड़ियां और प्रोजेक्ट की घोषणा करते हुए यह नहीं देखा जाता था कि आर्थिक रूप से वह सही है भी या नहीं। मंत्री बदलने के बाद पहले से जारी प्रोजेक्ट बंद हो जाते थे और नये प्रोजेक्ट शुरू हो जाते थे। इस तरह जहां काम चल रहा होता था, वहां अधूरा काम पड़ा रहता था और नयी जगह काम सालों तक अधूरा पड़े रहने के लिए शुरू हो जाता था। अब रेल बजट के आम बजट का हिस्सा बनने के बाद उस तरह के आर्थिक नुकसानों से बचा जा सकता है।

अब योजना और गैर-योजना खर्च के रूप में बजट के खर्च को दिखाने की परंपरा भी समाप्त हो जाएगी। योजना आयोग के समाप्त हो जाने के बाद ऐसा होना तो अवश्यंभावी हो ही गया था, लेकिन केन्द्र सरकार ने बजट पेश और पास करने की तिथियों को आगे करने का जो निर्णय लिया है, वह काफी महत्वपूर्ण निर्णय है।

वित्तीय साल 1 अप्रैल से शुरू होता है, लेकिन मई महीने तक बजट पास ही नहीं हो पाता। कभी कभी तो बजट पास होने में जून का महीना आ जाता है। इसके कारण सरकार को अप्रैल और उसके बाद के कुछ महीनों के लिए 31 मार्च के पहले एक लेखानुदान पास करवाना पड़ता है, क्योंकि बिना संसद की अनुमति के सरकार एक रुपये का भी खर्च नहीं कर सकती। इस तरह सरकार को दो दो बार संसद से खर्च करने की अनुमति लेनी पड़ती है।

लेखानुदान बड़ी समस्या नहीं है। असली समस्या यह है कि बजट प्रावधान साल भर के लिए होते हैं और उसके प्रावधानों के अनुसार काम 1 अप्रैल से शुरू हो जाना चाहिए, लेकिन जब बजट ही पास मई महीने में होगा, तो बजट प्रावधानों पर काम कैसे 1 अप्रैल से होगा? यही कारण है कि बजट तो एक साल का होता है, लेकिन उसके प्रावधानों के अनुसार काम के लिए मात्र 9 या 10 महीने ही उपलब्ध रहते हैं।

अब बजट 1 फरवरी को पेश होगा और 24 मार्च तक पास भी हो जाएगा। इसके कारण न तो लेखानुदान पास कराना होगा और न ही बजट प्रावधानों पर काम करने के लिए मई और जून महीने का इंतजार करना होगा। जाहिर है, यह एक बहुत बड़ा नीतिगत सुधार है। (संवाद)