उसी कहावत को अरुणाचल प्रदेश में दुहरा दिया गया है। वहां कांग्रेस की सरकार अदालत के आदेश से एक बार फिर सत्ता में आ गई थी। कांग्रेस की वह सरकार अपने सारे मंत्रियों के साथ अरुणाचल पीपल्स पार्टी का हिस्सा हो गई। कांग्रेस विधायक दल के एक सदस्य को छोड़कर अन्य सारे विधायक भी अरुणाचल पीपल्स पार्टी के विधायक हो गए। यानी अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडु पूरी कांग्रेसी भजनमंडली के साथ नई पार्टी में आ गए और नया भजन शुरू कर दिया।

इस तरह अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार नहीं रही। उसकी सरकार इस साल के शुरुआती दिनों में भी समाप्त हो गई थी। तब 24 कांग्रेसी विधायको ने पार्टी छोड़ दी थी और अरुणाचल पीपल्स पार्टी की सदस्यता हासिल कर ली थी। दलबदलू विधायकों ने अपना एक नेता चुन लिया था और उस नेता पुल भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से मुख्यमंत्री बन गए थे।

जब भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ उसके विरोधी काफी मुखर हो गए थे। राज्यपाल की भूमिका को लेकर भी सवाल किए जा रहे थे। सुप्रीम कोर्ट में मामला गया और सुप्रीम कोर्ट ने पुल की सरकार को अवैध घोषित कर दिया और कोर्ट के आदेश से ही उनके पहले मुख्यमंत्री रहे नबाम तकी मुख्यमंत्री बन गए। उन्हें विधानसभा में अपना बहुमत साबित करना था। लेकिन कांग्रेसी विधायकों की संख्या कम थी। इसलिए एक समझौते के तहत कांग्रेस से पीपल्स पार्टी में गए 24 विधायक वापस कांग्रेस में आ गए और पेमा खांडू को मुख्यमंत्री बना दिया गया। इस तरह तीन दिनों में तीन मुख्यमंत्री का रिकार्ड अरुणाचल प्रदेश ने बना दिया। यानी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पहले पुल मुख्यमंत्री थे। फैसले के बाद तुकी मुख्यमंत्री हो गए और फैसले के अगले दिन पेमा खांडु मुख्यमंत्री बना दिए गए।

पेमा खांडु अभी भी मुख्यमंत्री हैं, लेकिन अब वे कांग्रेस की सरकार का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे हैं, बल्कि वहां की एक क्षेत्रीय पार्टी अरुणाचल पीपल्स पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं, जो भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी पार्टी है। पीपल्स पार्टी का कोई विधायक नहीं था। यानी आज वहां सत्ता में वह पार्टी है, जिसका एक भी उम्मीदवार पिछले चुनाव में नहीं जीता था। वह पार्टी इसलिए सत्ता में आई, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी यही चाहती थी। यदि भारतीय जनता पार्टी चाहती की पेमा खांडु के नेतृत्व में कांग्रेसी विधायक उसमें शामिल हो जाएं, तो वह भी हो जाता, लेकिन उसने यही चाहा कि इस पूरे मसले पर वह विवाद में नहीं पड़े।

अरुणाचल प्रदेश कांग्रेस के हाथ से निकल गया है और अब उसके पास पूर्वाेत्तर की तीन राज्य सरकारें ही रह गई हैं। जिन तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार है, वे हैं- मणिपुर, मेघालय और मिजोरम। त्रिपुरा में सीपीएम की सरकार है, असम में भाजपा सत्ता में है और नगालैंड में भाजपा का एक सहयोगी दल सरकार में है। अरुणाचल प्रदेश के बाद मणिपुर भी कांग्रेस के हाथ से निकल सकता है, क्योंकि वहां भी पार्टी के अंदर मतभेद काफी गहरा रहे हैं।

जिस तरह से कांग्रेस पूर्वाेत्तर में सत्ता से बाहर हो रही है, उससे तो यही लगता है कि पूरे देश को कांग्रेस मुक्त करने का सपना भले ही प्रधानमंत्री पूरा न कर पाएं, लेकिन भारत के पूर्वोत्तर को तो वह कांग्रेस मुक्त कर ही देंगे।

आखिर पूर्वाेत्तर में वैसा हो क्यों रहा है? उसका एक कारण तो यह है कि कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व उन राज्यों में अपनी पार्टी को संभाल नहीं पा रहा है, लेकिन उससे भी बड़ा कारण यह है कि पूर्वोत्तर के राज्य कोष के लिए केन्द्र पर निर्भर हैं और इस निर्भरता का फायदा उठाकर केन्द्र की पार्टी वहां की सरकारों को प्रभावित कर लेती है और दल बदल करवा लिया जाता है। अरुणाचल में भी ऐसा ही हुआ है। इसलिए इसमें आश्चर्य की ज्यादा गुंजायश नहीं है। (संवाद)