लेकिन उन्होने वैसा क्यों किया? विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार उन्होंने अमेरिका परस्त राजनेताओं और नौकरशाहों के दबाव में यह किया। अमेरिका को गुटनिरपेक्ष आंदोलन कभी पसंद नहीं रहा। जब दो ध्रुवों- अमेरिका और सोवियत संघ- के बीच बंटी दुनिया में गुट निरपेक्ष आंदोलन चल रहा था, उस समय भी अमेरिका इसे नापसंद करता था और जब सोवियत गुट ध्वस्त हो गया और पूरा विश्व एक ध्रुवीय हो गया और वह ध्रुव खुद अमेरिका बन गया, तब भी अमेरिका गुट निरपेक्ष आंदोलन को पसंद नहीं करता।

लगता है कि भारत के हुक्मरान अब अपने आपको अमेरिका के खेमे का मानने लगे हैं और इसलिए गुटनिरपेक्षता में अपने आपको फिट नहीं मानते। लेकिन यदि ऐसी बात है, तो हमारे हुक्मरानों की भूल है। अमेरिका भारत का हितैषी नहीं हो सकता। परमाणु आपूर्तिकत्र्ता समूह में भारत के प्रवेश को लेकर अमेरिका ने जो नाटक किया, वह यही साबित करता है।

भारत में यह झूठ बहुत प्रचारित हुआ है कि अमेरिका ने इस समूह में भारत के प्रवेश के लिए अपनी सारी ताकत लगा दी और चीन के विरोध के कारण ही भारत को इसमें प्रवेश नहीं मिल पाया। चीन ने भारत का विरोध किया था, इसमें कोई दो मत नहीं, लेकिन क्या अमेरिका वास्तव में भारत को इसकी सदस्यता दिलवाने में दिलचस्पी दिखा रहा था?

अमेरिका दिलचस्पी नहीं दिखा रहा था, बल्कि दिलचस्पी दिखाने का नाटक कर रहा था। वह इस बात से साबित हो जाता है कि अमेरिका के पिछलग्गू कुछ देश भी भारत का विरोध करते दिखाई पड़े। वे देश स्वीट्जरलैंड और आस्ट्रिया जैसे देश हैं, जो आम तौर पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अमेरिका की हां में हां मिलाया करते हैं। यदि उन देशों को अपना राष्ट्रीय हित मारा जाय, तब भी वे अमेरिका का ही साथ देते हैं।

लेकिन भारत के परमाणु आपूर्तिकत्र्ता समूह में प्रवेश को लेकर उनका कोई राष्ट्रीय हित प्रभावित नहीं हो रहा था, इसके बावजूद वे अमेरिका का साथ छोड़कर चीन की हां में हां क्यों मिला रहे थे? क्या वे अपने आका अमेरिका के कहने पर ऐसा कर रहे थे? लगता तो यही है।

आखिर अमेरिका ऐसा क्यों कर रहा था? इसका एक कारण यही हो सकता है कि वह खुद भारत को इस समूह का सदस्य बनाने मे दिलचस्पी नहीं रखता और उसकी असली दिलचस्पी भारत को चीन से भिड़ाने में है। वह भारत का हमदर्द दिखना तो चाहता है, लेकिन उसके दर्द को अपना दर्द नहीं समझता। वह चीन की बढ़ती ताकत को संभालने के लिए भारत को अपने खेमे में लाना चाहता है। जब वह देख लेगा कि भारत उसके खेमे में पूरी तरह आ गया है, तभी वह इस समूह की सदस्ता उसे दिलाने मे ंदिलचस्पी रखेगा।

पर भारत अमेरिका के इस मंसूबे को नहीं समझ रहा है और लगातार उसकी ओर खिंचता जा रहा है। इसी का नतीजा है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का वेनेजुअला में सपन्न हुए गुट निरपेक्ष आंदोलन के शिखर सम्मेलन में उपस्थित नहीं होना। लेकिन इससे भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अपनी स्थिति कमजोर कर रहा है, जिससे उसे फायदा नहीं बल्कि नुकसान होगा। इसके कारण अमेरिका पर दबाव बनाने की उसकी ताकत कमजोर हो जाएगी और दुनिया के अनेक देश उससे नाराज हो जाएंगे। रूस और चीन की भारत से दूरी लगातार बढ़ रही है और इसे साफ तौर पर देखा जा सकता है। और जिस अमेरिका पर अपनी निर्भरता हम बढ़ाते जा रहे हैं, वह समय पर काम आने वाला दोस्त नहीं साबित होगा। (संवाद)