दोनों मुल्कों के बीच विवाद के मूल में कश्मीर का मसला है और इसका समाधान राजनीतिक पहल से ही निकलेगा। हमारी जो सेना अभी तक कश्मीर को भारत से जोडे रखने में अपनी भूमिका निभाती आ रही है, उसके आला अफसर भी कहने लगे हैं कि यह एक राजनीतिक मसला है। श्रीनगर स्थित सेना की उत्तरी कमान के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुड्डा ने भी पिछले दिनों कहा है कि कश्मीर का मसला कानून-व्यवस्था का नहीं बल्कि राजनीतिक मसला है और इसका समाधान राजनीतिक पहलकदमी से ही होना है। एक अनुभवी और आला सैन्य अधिकारी की इस राय को न तो हमारा सत्तारुढ राजनीतिक नेतृत्व तवज्जो दे रहा है और न ही युध्द-पिपासु मीडिया।
उडी के आतंकवादी हमले में हमारे जो जवान मारे गए हैं वे कमोबेश सभी किसान-मजदूर-शिक्षक या ऐसे ही किसी अन्य गरीब या निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों की उम्मीदों का सहारा रहे होंगे। उनके असमय दर्दनाक तरीके से मारे जाने पर उनके परिवारजनों का दुख और गुस्सा जायज है और उसमें पूरे देश को शामिल होना ही चाहिए। लेकिन कारपोरेट घरानों से नियंत्रित हमारे टीआरपी पिपासु टीवी चैनल उनके क्षोभ और शोक का निर्लज्जता के साथ व्यापार कर रहे हैं। जिस दिन उडी में हमला हुआ उस दिन से लेकर आज तक दिल्ली और मुंबई स्थित टीवी की खबरिया चैनलों पर शाम की तीतर-बटेर छाप बहसों में शामिल रक्षा तथा विदेश मंत्रालय, सेना एवं खुफिया सेवाओं के पूर्व अफसर देश में युध्दोन्माद पैदा कर रहे हैं। टीवी चैनलों के मूर्ख एंकर भी वीर बालकों की मुद्रा में उनके सुर में सुर मिला रहे हैं।
ये 'रक्षा विशेषज्ञ’ किसी भी आतंकवादी हमले के बाद टीवी चैनलों के वातानुकूलित स्टुडियो में बैठकर पाकिस्तान को युध्द के जरिए सबक सिखाने का सुझाव देते हैं और साथ ही यह रुदन भी कर डालते हैं कि भारतीय सेना के पास संसाधनों का अभाव है। अपनी ऐसी बातों से यह लोग आम लोगों पर यही प्रभाव छोडने की कोशिश करते हैं कि वे बहुत बहादुर और देशभक्त हैं। लेकिन बात इतनी सीधी नहीं है। दरअसल, यह उच्च तकनीक वाले हथियारों के अंतरराष्ट्रीय कारोबार से जुडा मामला है। भारत हथियारों का बहुत बडा खरीदार है, लिहाजा हथियार बनाने वाली कई विदेशी कंपनियों के हित भारत से जुडे हैं। भारतीय सेना, सुरक्षा एजेंसियों, विदेश सेवा और रक्षा महकमे के कई पूर्व अफसर इन कंपनियों के परोक्ष मददगार होते हैं। यह कंपनियां ऐसे लोगों को उनके रिटायरमेंट के बाद अनौपचारिक तौर पर अपना सलाहकार नियुक्त कर लेती हैं। यह लोग इन कंपनियों के हथियारों की बिक्री के लिए तरह-तरह से माहौल बनाने का काम करते हैं। देश में युध्दोन्माद पैदा करना और सेना में संसाधनों का अभाव बताना भी इनके इसी उपक्रम का हिस्सा होता है। कहने की आवश्यकता नहीं कि इन लोगों को इस काम के लिए हथियार कंपनियों से अच्छा खासा 'पारिश्रमिक’ मिलता है। तो देशभक्ति के नाम यह इनका अपना व्यापार है जो इन दिनों जोरों पर चल रहा है।
युध्द का माहौल बनाने के सिलसिले में कुछ टीवी चैनलों ने यह भी बता दिया है कि दोनों देशों के बीच परमाणु युध्द होने की स्थिति में पाकिस्तान का नुकसान ज्यादा होगा, वह तबाह हो जाएगा, दक्षिण एशिया का भूगोल बदल जाएगा आदि-आदि। कुछ चैनल सुझा रहे हैं कि भारत युध्द न भी करें तो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में घुसकर आतंकवादियों के शिविर नष्ट कर दे। ऐसा सुझाव देने वाले यह क्यों भूल जाते हैं कि अमेरिका भी आतंकवाद के सफाए का इरादा जताते हुए ही अफगानिस्तान, इराक और सीरिया में घुसा था, लेकिन हुआ क्या? वह आतंकवाद का सफाया तो नहीं कर पाया बल्कि उल्टे खुद ही वहां ऐसी बुरी तरह फंस गया है कि उससे निकलते नहीं बन रहा है। खुद को सीमित युध्द में ही झोंकने से उसकी अर्थव्यवस्था चरमरा रही है, सो अलग। जब अमेरिका की यह हालत है तो भारत क्या खाकर पाकिस्तान में आतंकवादियों के शिविरों पर हमला करके उनका सफाया कर आएगा? इस तरह के मूर्खतापूर्ण सुझाव देने वाले चैनलों की टीआरपी में कितना इजाफा हो रहा है, यह तो पता नहीं लेकिन इससे यह जरुर पता चला रहा है कि देश के बडे-बडे मीडिया संस्थानों में कैसे-कैसे वज्र मूर्ख भरे हुए हैं।
भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान का यह मुगालता पुराना हे कि अमेरिका भारत का दोस्त है। इससे भी बडा मुगालता मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा उनके व्यक्तिगत दोस्त है। इसी मुगालते के चलते हमारी सरकार ने अमेरिका को अपना सामरिक साझेदार बनाते हुए उसकी सेना को अपने वायु सेना और नौ सेना अड्डों के उपयोग की अनुमति दे दी है। ऐसे सभी लोगों के लिए क्या यह सूचना महत्वपूर्ण नहीं है कि अमेरिकी ने उडी पर हुए आतंकवादी हमले की निंदा तो की है लेकिन उसने अपने बयान में किसी भी रूप में पाकिस्तान का जिक्र नहीं किया है। इसकी वजह यह है कि हथियार खरीदी के मामले में पाकिस्तान भी अमेरिका का कोई छोटा ग्राहक नहीं है। इसके अलावा अमेरिका ने अल कायदा से निपटने के नाम पर पाकिस्तान में अपना सैन्य अड्डा भी कायम कर रखा है और पाकिस्तानी सैन्य अड्डों का इस्तेमाल भी वह करता रहता है। जहां तक चीन का सवाल है, उसके तो और भी ज्यादा हित पाकिस्तान के साथ जुडे हुए हैं। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत-पाकिस्तान युध्द की स्थिति में कौन किसके साथ रहेगा! (संवाद)
कौन चाहता है युध्द?
युध्द की स्थिति में कौन किसके साथ रहेगा!
अनिल जैन - 2016-09-26 10:47
जम्मू-कश्मीर के उडी सेक्टर में भारतीय सेना के ठिकाने पर हुए भीषण आतंकवादी हमले से पूरा देश क्षुब्ध और उद्वेलित है। इस हमले में हमारे 18 जवान मारे गए। स्पष्ट हो गया है कि हमले में जैश-ए-मुहम्मद नामक कुख्यात आतंकवादी संगठन का हाथ है जिसे पाकिस्तानी सेना और आईएसआई से खाद-पानी मिलता है। कश्मीर घाटी में पिछले कुछ समय से जारी तनाव का पाकिस्तान फायदा उठाना चाहता है। एक तरफ वह संयुक्त राष्ट्र के मंच से कश्मीर मसले को उठा रहा है, वहीं दूसरी ओर कश्मीर घाटी में आतंकवादियों की घुसपैठ करा कर तथा नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम के उल्लंघन की उकसाने वाली कार्रवाई कर भारत पर दबाव बनाना चाहता है। उसकी इन हरकतों और इरादों से भारतीय जन-मन का दुखी और आक्रोशित होना स्वाभाविक है, लेकिन सरकार में जिम्मेदार पदों पर बैठे कुछ कुछ लोगों, सत्तारुढ दल के नेताओं-समर्थकों, निहित स्वार्थों से प्रेरित कुछ रिटायर सैन्य अफसरों और पूर्व नौकरशाहों तथा मीडिया के एक बडे हिस्से की ओर से इस जनाक्रोश को युध्दोन्माद में बदलने की जो कोशिशें की जा रही हैं वे मुद्दे से भटकाने वाली तो है ही साथ ही हमारे देश आर्थिक-सामाजिक तानेबाने के लिए भी कम नुकसानदायक नहीं हैं।