सीपीएम की प्रदेश कमिटी ने सरकार को उस संशोधन पर आगे बढ़ने के लिए हरी झंडी दिखा दी है। इसके साथ ही एलडीएफ अपना एक और चुनाव पूर्व वायदा पूरा करने जा रहा है।

वैसे यह कानून तो 2008 का बना हुआ है, लेकिन पिछली चांडी सरकार ने इसमें थोड़ा बदलाव कर दिया था और उस बदलाव के कारण अवैध ढंग से भरे गए सारे गड्ढों को वैध कर दिया गया था। इसके कारण खेती पर बुरा असर पड़ रहा था। धान की खेती सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही थी।

26 सितंबर से शुरू हुए विधानसभा के सत्र में ही संशोधन के लिए विधेयक पेश किए जा रहे हैं। इसकी जानकारी राजस्व मंत्री ई चन्द्रशेखरन ने दी और यदि वैसा नहीं हो पाया, तो सरकार एक अध्यादेश लाकर उस कानून में संशोधन करेगी, ताकि वह बदलाव जल्द से जल्द संभव हो पाए।

यूडीएफ सरकार ने उस कानून में बदलाव कर एक ऐसा प्रावधान कर दिया था, जिसके कारण गड्ढों, पोखरों औ तालाबों को अवैध रूप से भरकर कब्जा करने वालो को कब्जा बरकरार रखने की इजाजत दे दी थी, शर्त यही थी कि अवैध कब्जा करने वालो में दंड लगा दिया जाय।

उसके लिए एक तारीख भी तय कर दी गई थी। प्रावधान किया गया था कि 12 अगस्त, 2008 के पहले जिसने गड्ढा भरा है, सबूत देकर वह उसे वैध बना सकता है। सबूत के रूप में फोटा वगैरह देना था। उस कानून के कारण बाद में भी भरे गए गड्ढों को पहले का भरा हुआ बताकर वैध बनाया जा रहा था।

दस्तावेजों के साथ 500 रुपये का आवेदन शुल्क देकर यह कहा जाता था कि हमने 12 अगस्त 2008 के पहले वह गड्ढा भरा था और उसके वैधता मिल जाती थी। बाद में खिंची गई तस्वीर को पहले का बता दिया जाता था।

पानी के गड्ढ़ों को भरकर अनेक लोगों ने वहां मकान भी बना लिए हैं। उन मकानों का क्या होगा, इससे संबंधित प्रावधान भी विधेयक में देखने को मिलेंगे। अभी तक मिली जानकारी के अनुसार 1500 वर्ग फीट से छोटे मकानों को बिना किसी शुल्क लिए वैध घोषित कर दिया जाएगा और उससे बड़े मकानों को शुल्क लेकर वैध बनाया जाएगा।

एक सुझाव यह भी है कि यदि धान की खेती वहां संभव नहीं है, तो बंजर जमीन को किसी और अनाज के उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।

अरनमुला की 483 एकड़ जमीन को लेकर भी राज्य सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय किया है। वह जमीन पिछले दो दशक से खाली पड़ी हुई थी। वहां एक हवाई अड्डा बनाने का प्रस्ताव था। उसका भारी विरोध हो रहा था। अब उस जमीन पर खेती की जाएगी। (संवाद)