जब संकट शुरू हुआ था, तो अखिलेश ने कहा था कि अपना निर्णय खुद करते हैं, लेकिन वे जो भीरुता अभी दिखा रहे हैं, उसका क्या मतलब हो सकता है?

फिलहाल तो उनके पिता और चाचा उन्हें अपने हिसाब से चलने के लिए मजबूर कर रहे हैं। यह बिल्कुल वैसा ही हो रहा है, जैसा एक परंपरागत भारतीय संयुक्त परिवार में होता रहा है, जिसमें घर के बुजुर्ग परिवार के शेष सदस्यों पर अपनी बात थोप देते हैं और नई पीढ़ी के पास उसे मानने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं रह जाता है।

अखिलेश इस युगों पुरानी परंपरा से परिचित रहे हैं, क्योंकि गाय पट्टी के हिन्दी क्षेत्र मे तो यह कुछ ज्यादा ही मजबूत रही है। इसलिए यह थोड़ा आश्चर्यजनक लगता है कि उन्होंने अपने पिता और चाचा के खिलाफ विद्रोह करने की हिम्मत जुटाई।

गौरतलब है कि विद्रोह करते हुए उन्होंने अपने चाचा के अनेक मंत्रालय छीन लिए थे और कुछ मंत्रियों को भी बर्खास्त कर दिया था। पर बाद में उन्हें अपने चाचा के मंत्रालयों को वापस करना पड़ा था और एक मंत्री को भी फिर से कैबिनेट में लेना पड़ा था।

लेकिन अखिलेश के लिए सबसे ज्यादा अपमानजनक बात समाजवादी पार्टी के अंदर कौमी एकता दल का विलय है। कौमी एकता दल मुख्तार अंसारी की पार्टी है, जिसकी ख्याति एक अपराधी की है और जो जेल में बंद है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उस विलय का विरोध किया था और उस निर्णय को वापस लेने के लिए अपने पिता और चाचा को मजबूर कर दिया था।

अब अखिलेश की छवि तार तार हो रही है। उनके आलोचकों की वह बात सही साबित हो रही है, जिसके तहत वे कहा करते थे कि उत्तर प्रदेश सरकार में साढ़े चार मुख्यमंत्री हैं- मुलायम, शिवपाल, राम गोपाल और आजम खान मिलकर चार मुख्यमंत्री बनते हैं और अखिलेश यादव की हैसियत आधे मुख्यमंत्री की है।

यदि उसे सूची में अमर सिंह का नाम शामिल कर दिया जाय, तो कहा जा सकता है कि अब उत्तर प्रदेश में साढ़े पांच मुख्यमंत्री हो गए हैं।

जाहिर है, इस समय अखिलेश अपने राजनैतिक कैरियर के सबसे नीचले पैदान पर हैं। बहुत लोगों को आश्चर्य हो रहा है कि वे इस्तीफा क्यों नहीं दे रहे हैं।

क्या अखिलेश यादव के पास कोई योजना है, जिसपर वे काम कर रहे हैं? क्या वे माओ की गुरिल्ला रणनीति पर चल रहे हैं, जिसके तहत माना जाता है कि जब दुश्मन आगे बढ़ रहा हो, तब पीछे हट जाओ और जब दुश्मन रुक गया हो तो खुद भी रुक जाओ और जब दुश्मन पीछे हट रहा हो, तो आगे बढ़ जाओ?

अखिलेश को शायद लगता है कि अपमानित होने के बावजूद युवाओं और आम शहरियों में उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है।

एक ऐसी पार्टी में जिसकी छवि कुख्यात लोगों को संरक्षण देने की है, वे अपनी छवि सुधारने की कोशिश में लगे हुए हैं। यही कारण है कि वे मुख्तार अंसारी जैसे लोगों का विरोध करते हैं।

अखिलेश यादव को पता है कि जो कुछ हो रहा है, उससे पार्टी की हालत विधानसभा चुनाव में खराब ही होगी। शायद वे अपने पिता और चाचा को मोर्चे पर इसलिए आने देना चाहते हैं, ताकि पार्टी की हार का ठीकरा उनके सिर पर फूटे। वैसे भी पाकिस्तान के मसले पर सक्रियता दिखाने के कारण उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति बेहतर हो रही है, जिससे समाजवादी पार्टी का काम और भी कठिन हो गया है। (संवाद)