इस सम्मेलन में 26 देशों के निवेशक हिस्सा ले रहे हैं। करीब 3600 निवेशको के हिस्सा लेने की संभावना है। इस तरह के अनेक सम्मेलन पहले भी हो चुके हैं और उनमे से एक को छोड़कर अन्य सभी इन्दौर मे ही हुए हैं। एक सम्मेलन खजुराहो में हुआ था।

निवेशकों को इस सम्मेलन में आकर्षित करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अमेरिका, यूरोप और चीन की यात्राएं की थी। उन्होंने हैदराबाद, मुंबई और बेंगलुरु के उद्यमियों से भी बात की थी। अखबारों में विज्ञापन देकर लोगों को बताया गया कि मध्यप्रदेश में निवेश क्यों किया जाना चाहिए।

स्थानीय अखबारों में प्रकाशित विज्ञापनों में दावा किया गया है कि व्यापार करने के मामले में मध्यप्रदेश देश के सबसे ज्यादा आसान 5 राज्यों में से एक है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए ऐसा दावा किया जा रहा है। वह रिपोर्ट 2015 की है। विश्व बैंक ने एक सर्वे के बाद वह रिपोर्ट तैयार की थी और भारत सरकार ने ही उसे यह सर्वे करने के लिए स्पौंसर किया था।

प्रदेश के पास 20 हजार एकड़ का एक लैंड बैंक है। प्रदेश में बिजली भी प्रचुर मात्रा में है। प्रदेश मे बिजली उत्पादन की क्षमता 4 हजार मेगावाट से बढ़कर 18,900 मेगावाट हो गई है। निवेशकों को प्रशासनिक समस्या से बचाने के लिए सिंगल विंडो की व्यवस्था की गई है। उद्योग के लिए जमीन बुक करने के लिए आॅनलाइन बुकिंग की व्यवस्था भी है। राज्य का मुख्य नारा है कि प्रदेश में व्यापार करना आसान है और उससे भी ज्यादा आसान है यहां निवेश करना।

लेकिन पिछले अनुभव को देखा जाय, तो पता चलता है कि वायदा करना तो आसान है, लेकिन उन्हे पूरा करना उतना ही मुश्किल है।मध्यप्रदेश में निवेश की इच्छा रखने वाले एक उद्यमी का कहना है कि प्रदेश की नौकरशाही और खराब हवाई सेवा दो सबसे बड़े व्यावधान हैं, जिनके कारण निवेश करने का जोखिम लेने के पहले बहुत बार सोचना पड़ता है। पिछले 5 सालों के दौरान इनमें कोई बदलाव नहीं हुआ है।

उद्यमियों और अन्य विशेज्ञयों का कहना है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री तो बार बार कहता है कि बिना किसी व्यवधान के यहां व्यापार करने का माहौल बनाया जा रहा है, लेकिन नौकरशाही ऐसा नहीं होने दे रही है। उसके कारण उद्यमियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

2007 से ही इस तरह के निवेशक सम्मेलन हो रहे हैं, लेकिन उनके नतीजे बहुत उत्साहजनक नहीं हैं। संपन्न निवेश बहुत ही कम है। इन निवेशक सम्मेलनों में अबतक 2357 सहमति पत्रों पर दस्तखत हुए थे और उनमें से सिर्फ 92 पर ही काम हुए। 537 को ता रद्द ही कर दिया गया।

उद्योगपतियों का कहना है कि विभागों के अंदर भी विभाग बने हुए हैं और सबसे ज्यादा परेशानी के सबब वही हैं।

एक उद्यमी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि निवेश अनुकूल माहौल वाले एक देश में सभी प्रकार की प्रशासनिक बाधाएं दूर करने में 30 मिनट लगते हैं, जबकि मध्यप्रदेश मंे दो साल का समय लग जाता है। (संवाद)